अनुज हनुमत,
राजनीति अपने आर्थिक लाभों की पूर्ति का साधन बन जाए, ऐसे समय में भी कुछ ऐसे लोग हैं, जो अपनी पार्टी के लिए बिना किसी लाभ के 24×7 समय समर्पित रहते हैं। ऐसे ही एक स्टार प्रचारक से हमारी मुलाकात हुई, जो अपनी पार्टी के लिए रोजाना सैकड़ों किमी साईकिल दौड़ाते हैं। इसके बाद भी इनके माथे में थकावट की एक शिकन नही रहती और फिर अगले दिन साईकिल का पहिया चल पड़ता है एक नए क्षेत्र की ओर।
इलाहाबाद के करन सिंह यादव समाजवादी पार्टी के ऐसे ही एक समर्पित कार्यकर्ता हैं। एक रंगबिरंगी साईकिल, जिसमें पार्टी की कुछ योजनाओं का जिक्र है और पार्टी के तमाम बड़े नेताओं के नाम हैं।
करण सिंह से हमारी मुलाक़ात हुई समाजवादी पार्टी के इलाहाबाद जिला कार्यालय में। अगर उनकी रंग बिरंगी साइकिल की बात करें तो करन सिंह ने साईकिल में सबसे आगे अखिलेश यादव का चित्र बना झंडा लगाकर रखा है और उनका कहना है कि अखिलेश भैया अब तक के सबसे अच्छे मुख्यमंत्री हैं और मुझे विश्वास है कि वह पुनः सत्ता में वापसी करेंगे।
करण सिंह यादव से जब यह पूछा गया कि आपको क्या लगता है कि सूबे में होने वाले अगले चुनावों में समाजवादी पार्टी को किससे ज्यादा डर है, इस प्रश्न के जवाब में करण सिंह ने कहा कि सबसे ज्यादा डर बुआ जी से है। नोटबन्दी वाले निर्णय पर तो करण सिंह ने कुछ बात नहीं की, लेकिन उन्होंने इतना जरूर कहा कि उन्हें केवल अपनी पार्टी के प्रचार से मतलब रहता है।
करण सिंह खुद को पार्टी का स्टार प्रचारक बताते हैं और इस बात पर मुहर लगाती है उनकी साईकिल! जिसके आगे लिखा है करण सिंह यादव – स्टार प्रचारक। साईकिल में करण सिंह ने एक हूटर भी लगा रखा है, जो यह बताता है कि वह सूबे की सत्ता में काबिज मौजूदा सरकार के समर्पित कार्यकर्ता हैं।
करण सिंह ने हमें बताया कि वह रोजाना 100 से 150 किमी साईकिल चलाते हैं और सरकार की योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाते हैं। उनका कहना था कि वह जिस-जिस गाँव से गुजरते हैं, लगभग हर जगह लोग अखिलेश भैया के काम से खुश हैं। उनसे जब यह पूछा गया कि क्या आपको पार्टी की तरफ से कुछ सहयोग मिलता है ? उन्होंने बताया कि हाँ सहयोग तो मिल जाता है, लेकिन मुझे ज्यादा सहयोग की अपेक्षा नहीं रहती, क्योंकि मैं पार्टी का सच्चा सिपाही हूँ और मैंने अपनी पूरी जिंदगी पार्टी के हित में समर्पित कर दी है।
कड़ाके की ठंड भी करण सिंह के हौसले को पश्त नहीं कर सके। जैसे ही उनसे हमारी बातचीत खत्म हुई, वो अपनी समाजवादी साईकिल से चल पड़े दिन की अगली यात्रा पर जो शायद कभी न खत्म हो।