लालूजी! बोया पेड़ बबूल का, आम कहाँ से होय

लालू ने केंद्र सरकार पर साधा निशाना

जटाशंकर पाण्डेय- शिखा पाण्डेय
Navpravah.com

एक समय था, जब भारतीय फिल्मों में दिखाया जाता था कि किसी कारणवश, किसी मज़बूरी में या बदले की भावना से यदि कोई इंसान डाकू, लुटेरा या खूनी बन जाता था, तो मरने के समय या जेल जाते समय अपने बच्चों को जिसके सुपुर्द करता था, उससे वचन लेता था कि भविष्य में मेरे बेटे को इंसान बनाना, कानून का रक्षक बनाना,धर्म पर चलने वाला बनाना, गरीबों का हमदर्द बनाना, यही मेरी आखिरी इच्छा है। जिस नर्क की दुनिया को वह देख चुका है, उस दुनिया में वह अपनी औलाद को कतई नहीं जाने देना चाहता। मगर आज इंसान कितना नीचे गिर चुका है! अपने जीवन में बुराई की जिस उच्चतम सीमा तक वह खुद नहीं पहुँच पाता, उस सीढ़ी पर चढ़ने के लिए अपने बच्चों को प्रेरित करता है, यह कहते हुए कि ‘बेटा मेरी यह इच्छा अधूरी रह गई है, तू मेरा उत्तराधिकारी है और मुझे उम्मीद है कि तू मेरा नाम रौशन करेगा। तभी मेरी आत्मा को शांति मिलेगी।’ इन सारी ‘इनडायरेक्ट’ बातों का तात्पर्य आप अगली कुछ ‘डायरेक्ट’ पंक्तियों से बेशक साफ़ साफ़ समझ जाएंगे।

‘चारा’ , ‘लारा’ ले बुड़े, ‘लालू-दल’ की नाव
ठंडी पड़ गईं घुड़कियाँ, ठंडा पड़ गया ताव
ठंडा पड़ गया ताव ‘तेजस्वी’ पड़ गए फीके
ना नितीश, अखिलेश, मुलायम, राहुल दीखे
पेट कर गई गड़बड़ अब ‘होटल’ की ‘मिट्टी’
सीबीआई ने गुम कर दी है सिट्टी पिट्टी

जी हाँ! चर्चा है आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की। पिछले कुछ दिनों से लालू यादव की मुश्किलें उनकी संपत्ति की ही तरह दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती जा रही हैं। चारा घोटाला, जमीन घोटाला, मिट्टी घोटाला के बाद अब होटल टेंडर का मामला भी गले की फांस बनता जा रहा है। सीबीआई ने लालू यादव के 12 ठिकानों पर शुक्रवार सुबह करीब छह बजे से छापेमारी शुरू कर दी और केस भी दर्ज कर लिया। सीबीआई के शिकंजे में लालू प्रसाद यादव के अलावा उनकी पत्नी राबड़ी देवी और पुत्र तेजस्वी यादव समेत कुल सात लोगों और एक कंपनी का नाम है। इससे पहले के घोटालों की यदि बात करें, तो 2013 में, बहुचर्चित ‘चारा घोटाला‘ की जांच पड़ताल के बाद लालू को न्यायालय द्वारा 5 साल की जेल व 25 लाख रुपये जुर्माने की सजा भी हुई थी और ये रांची सेंट्रल जेल में बंद भी किए गए थे परन्तु मात्र 2 महीने में ही इनको जमानत मिल गई और आज तक ये जमानत पर ही चल रहे हैं। गुनहगार के लिए ऐसी सजा का क्या मतलब? गुनाह करने के बाद, सजा पा कर भी आदमी अपनी ऐश-ओ-आराम की जिंदगी जी रहा है, ऐसी सजा वास्तव में सजा नहीं, मज़ा है। करोड़ों रुपए का घोटाला कर के, इस रकम से उनका पूरा परिवार राजसी जीवन जी रहा है। इसीलिए ऐसे घोटालों से, लोगों में घोटाला करने की प्रेरणा भी प्रबल होती है। अपने लिए नहीं, अपने परिवार के लिए बहुत लोग समर्पित होने को उत्सुक होते हैं।

लालू

सीबीआई की पूछताछ के बाद मीडिया के बीच अपने प्रेस कांफ्रेंस में कल लालू यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव अपने कट्टर राजनीतिक दुश्मन नरेंद्र मोदी व अमित शाह के खिलाफ बिलकुल तने हुए नज़र आये। लालू यादव की बातें और तेजस्वी यादव का तेवर देखने जैसा था। जिसने भी तेजस्वी यादव का तेवर देखा होगा, वो खुद भी अंदाज लगा सकता है कि जनाब का तेवर अपना नहीं, अपने मद और पद का था और लालू यादव के द्वारा ‘देश’ के प्रति समर्पण की जो भावना घोली गई है अपने लाडले में, वह साफ झलकती नज़र आई। तेजस्वी यादव एक शरीफ आदमी की तरह बार बार अपने कमीज की बाँहों को ऊपर सरकाते हुए, अपनी बेइज्जती के ख़ौलते पानी को उबाल मार कर बाहर फेंक देने की कोशिश कर रहे थे। अब इस पूरे मामले में इन साहब की क्या गलती है, ये बेचारे तो पिता के द्वारा विरासत में दिए गए ‘घोटाले’ रुपी आशीर्वाद में फलित फूलित पुत्र हैं। पिता ने जो माल मत्ता इनको दिया है, वह इतना ज्यादा दिया है कि इनकी जेब में समा नहीं रहा है। किसी सुराख के माध्यम से जब यही माल मत्ता सीबीआई की आँखों में जा गड़ा, तो उसने अपना काम शुरू कर दिया।

सीबीआई के अनुसार जब लालू यादव रेलमंत्री थे तब रेलवे के दो होटलों के रखरखाव के लिए, एक प्राइवेट कंपनी को टेंडर दिया गया और इसके बदले में लालू यादव को तीन एकड़ जमीन दी गई। ये टेंडर साल 2004 से 2009 के बीच इंडियन रेलवे कैटरिंग ऐंड टूरिजम कॉर्पोरेशन (IRCTC) के जरिए दिए गए थे। टेंडर पाने वाली कंपनी की मालिक सरला गुप्ता हैं , जो सांसद प्रेमचंद गुप्ता की पत्नी हैं व मेसर्स डिलाइट मार्केटिंग को चलाती हैं। उन्होंने ये जमीन लारा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड (लालू-राबड़ी प्रोजेक्ट) को सिर्फ 65 लाख रुपए में हस्तांतरित कर दी। सोचने वाली बात यह है कि जिस ज़मीन का बाजार मूल्य करीब 94 करोड़ रुपए था, वह लालू परिवार को मात्र 65 लाख रुपये में दे दी गई! यहां तक तो ठीक था, लेकिन बाद में लालू के अनुज पुत्र एवं वर्तमान उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव भी लारा प्रोजेक्ट्स का हिस्सा बन गए और अब जाकर ये सारी ज़मीन लालू परिवार के गले में हड्डी की तरह अटक गई है और 2004 से 2014 के बीच रची गई इस साजिश के लिए लालू और अन्य आरोपियों के खिलाफ प्रिवेंशन ऑफ करप्शन ऐक्ट, 1988 के तहत केस दर्ज किया गया है।

अब बेचारे लालू सफाई देते नहीं थक रहे कि “भैया! जिन-जिन होटलों को लीज देने के नाम पर सीबीआई ने हमारे घर में छापा मारा है, वे अटल बिहारी वाजपेयी के सासनकाल में आबंटित किए गए थे। ई मोदी और अमित साह जिस मामले में हमारे तेजस्वी को फंसा रहा है, उस समय वह नाबालिग थे और उनकी उम्र 14 साल थी।” लालूजी खुद ये क्यों नहीं समझ पा रहे कि इतने बड़े लेन-देन में ‘नाबालिग तेजस्वी’ की टांग फंसाये ही क्यों! करोड़ों की ज़मीन का सौदा था, लेमन चूस थोड़े न था!

इधर भाजपा नेता सुशील मोदी ने लालू यादव पर आरोप लगाया है कि लालू फॅमिली द्वारा पटना के दानपुर स्थित सगुना मोड़ पर एक शॉपिंग मॉल के निर्माण से निकली मिट्टी को ‘संजय गांधी जैविक उद्यान‘ को बगैर टेंडर के बेच दिया गया। मिट्टी को 90 लाख रुपए में बेचा गया। नोट करने वाला मुद्दा दरअसल यह है, कि जिस उद्यान को मिट्टी बेची गई वह बिहार के पर्यावरण और वन विभाग के अंतर्गत आती है, जिसका मंत्रालय लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप के हाथ में है। साथ ही जिस मॉल का निर्माण हो रहा है, वह लालू परिवार का है। तो फिर सर पड़ा एक और घोटाला, ‘मिट्टी’ घोटाला’। अब एक ही साथ सिर पर आये इन तमाम बवालों से बौखलाए लालू भरी सभा में भाजपा, आरएसएस, मोदी, अमित शाह सबको जड़ से उखाड़ फेंकने की कसम तो खा चुके, लेकिन ये काम उनके द्वारा किए गए तमाम घोटालों जितना आसान नज़र नहीं आता।

यह बेहद दुःख की बात है कि तमाम माता पिता अपने गलत-सही धंधों में अपने बच्चों को खुद संलिप्त रखते हैं और भ्रष्टाचार और गुनाह की दुनिया में अपने ही संरक्षण में उन्हें विकास की ऊँचाई पर पहुँचा देते हैं। वे भूल जाते हैं कि भ्रष्टाचार और गुनाह की दीवारों की नींव कितनी भी मजबूत क्यों न हो, लेकिन वह एक दिन गिरती जरूर है। ऐसा नहीं है कि भ्रष्टाचार की यह दीवार बनाने में मेहनत नहीं लगती। इस दीवार को खड़ी करने में इंसान अपने तन,मन और धन को समर्पित कर देता है। अपनी सुख-शांति को गँवा देता है,अपनी आत्मा को बेंच डालता है। वह परिणामस्वरूप चाहता सुख और शांति ही है, लेकिन उसकी यात्रा उल्टी दिशा में शुरू हो जाती है और वह जितना आर्थिक विकास करता जाता है, सुख और शांति से उतना ही दूर भागता जाता है। क्यों? क्योंकि वह जो खाता है, जो पहनता है, वही उसका है, बाकी सब तो दूसरों का है। अगर वह अपने कर्म के सामने अपनी ‘मजदूरी’ देखे, तो शायद वह इन कर्मों से बाहर निकलने या छुटकारा पाने की कोशिश करे, लेकिन उस दीवार को खड़ा करने में उसके अहंकार को बड़ा आनंद आता है। यही दीवार एक दिन जब उसके सामने गिरती है,बिखरती है तो उसे कितना कष्ट होता है, यह बयाँ नहीं किया जा सकता और यह दीवार किसी न किसी दिन गिरती ज़रूर है।

समय लालू यादव के सामने परिणामपत्र लिए खड़ा है। संभव है कि अहंकार को सिर झुकाना पड़े। उसे भी यदि सहर्ष स्वीकार कर लिया जाये, तो मात्र अहंकार ही न टूटे, अब तक के कुछ पाप भी कट जाएँ शायद। अगर झुके नहीं,कटे नहीं तो यह अहंकारी जीवन तानाशाह सद्दाम हुसैन की तरह तड़प तड़प कर मौत को गले लगाते हुए ही समाप्त होगा, दूसरा कोई रास्ता बचता नहीं है। गलत रास्ते पर इंसान जितना आगे जाता है, उतना ही उलझता जाता है। फिर उस उलझन से बाहर निकलने के रास्ते पीछे से बंद होते जाते हैं और तड़प तड़प कर उसकी जिंदगी उसी में समाप्त हो जाती है। अंतिम समय में अगर वह विचार करता है तो शायद वह खुद महसूस करता है कि उससे क्या भूल हुई, लेकिन समय हाथ से जा चुका रहता है और फिर बस कहने को यही रह जाता है, “अब पछताए होत क्या, जब चिडिया चुग गई खेत!”

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