खतरे में भारतीय राजनीति, राष्ट्र के नाम 52 सेकंड भी देने में असहाय नेता!

जटाशंकर पाण्डेय

उच्चतम न्यायालय का एक बड़ा फैसला आया है कि पूरे देश के सिनेमा घरों में अब फिल्में दिखाने से पहले पर्दे पर तिरंगा दिखेगा, फिर राष्ट्रगान ‘जन गण मन अधिनायक जय हे भारत  भाग्य विधाता’ बजाया जाएगा। इसके सम्मान में सब दर्शक खड़े होंगे, जिसके बाद फिल्म शुरू की जाएगी। चलिए इसी बहाने कम से कम कुछ लोगों को राष्ट्रगान याद तो आएगा। शायद कुछ लोगों की राष्ट्र के प्रति श्रद्धा उपज जाए।

आज आलम यह है कि भाग दौड़ भरे इस माहौल में पूरे देश के लोग अपने निजी जीवन में इतने व्यस्त हो चुके हैं कि देश के बारे में सोचने के लिए उन्हें जरा भी फुर्सत ही नहीं है। तमाम ऐसे लोग हैं, जिनको राष्ट्रगान याद भी नहीं होगा। शायद यह बात गलत लग सकती है, लेकिन हर भारतीय अपने आप में गा कर देखे कि क्या आपको राष्ट्रगान याद है? आपको उत्तर खुद मिल जायेगा।

कई बार मीडिया द्वारा या अन्य तरीकों से किए गए सर्वे में ऐसा पाया गया है कि अशिक्षित से लेकर शिक्षित वर्ग तक, कई ऐसे लोग हैं, जिन्हें राष्ट्रगान पूरी तरह नहीं आता। हमें भारतीय होने का गर्व जरूर है लेकिन भारतीय होने का एहसास बहुत कम है। भारतीय होने का पहला चरण यही है कि हमें मालूम होना चाहिए कि हमारा राष्ट्रगान क्या है।

‘विविधता में एकता’ वाला हमारा देश, इतनी जातियां, इतने धर्म, इतनी भाषाएं, इतनी पार्टियां, इतने विचार, सब अलग-अलग हैं। परंतु इन सभी भिन्नताओं को राष्ट्रीय स्तर पर जोड़ता है हमारा ‘राष्ट्रगान’। जहां राष्ट्र की बात आए, हमें एक होने का एहसास दिलाता है यह राष्ट्रगान। विविध धर्म की विविध मान्यताएं, भिन्न समाज की भिन्न प्रथाएं, भिन्न लोगों का भिन्न खान-पान भिन्न विचार, सब भिन्न भले हो, परंतु जहां राष्ट्र हित की  बात आए, राष्ट्रीय एकता की बात आए, हमें अपनी सभी भिन्नताओं को  भुला कर एकता की शक्ति दिखानी चाहिए।

राजनीतिक गलियारों की यदि बात करें, तो एकता का दूर दूर तक नाम-ओ-निशान नहीं दिख रहा। भाजपा इस फैसले का हर्षोल्लास से स्वागत कर रही है। भाजपा का कहना है कि इससे राष्ट्रवाद की भावना और ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के विचार को मजबूती मिलेगी। भाजपा का कहना है, “हम इस फैसले के लिए अदालत की सराहना करते हैं। इससे राष्ट्रवाद की भावना मजबूत होगी। राष्ट्रीय एकता और तिरंगा हमें एक राष्ट्र के तौर पर एकजुट करता है एवं इससे एकता को और मजबूती मिलेगी।”

दूसरी ओर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलीमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष अससुद्दीन ओवैसी ने सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या लोगों के दिलों में इससे राष्ट्रभक्ति उपजेगी? ओवैसी का कहना है,  “इस आदेश का पालन तो करना है, लेकिन सवाल यह है कि क्या राष्ट्रगान के वक़्त लोगों का खड़ा होना जरूरी है? क्या इससे देशभक्ति या राष्ट्रवाद बढ़ाने में मदद मिलेगी ?”

राष्ट्रीय एकता व राष्ट्र सम्मान की ओर कदम बढ़ाने के प्रयास में ही इतना बिखराव है। तमाम अलग अलग पार्टियों की अलग अलग प्रतिक्रियाएं! क्या राष्ट्रगान यह संदेश देता है? रोज़, हफ्ते, पखवाड़े, महीने में कहाँ किसी को राष्ट्रगान की याद आती है? हाँ, फिल्में आप हर तीसरे दिन देखते होंगे। कम से कम उसी बहाने राष्ट्रगान का सम्मान कर लीजिए।

राष्ट्रगान के सम्मान में खड़ा होना भले आपके राष्ट्रभक्त होने या न होने का प्रमाण न देता हो, लेकिन अन्य जानवरों से अलग, सामाजिक प्राणी होने के नाते, भावनाओं से भरा होने के नाते, कहीं न कहीं राष्ट्रगान राष्ट्र की भावनाओं से जुड़ा है और अगर इसके सम्मान में 52 सेकंड खड़ा होना ही पड़ जाये, तो कोई ख़ास हानि भी तो नहीं होगी ना?

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