एनपी न्यूज़ डेस्क | Navpravah.com
नैनीताल हाईकोर्ट ने जीव-जंतुओं को भी विधिक दर्जा प्रदान करते हुए उत्तराखंड के नागरिकों को उनका संरक्षक घोषित कर दिया गया है, कोर्ट ने कहा है कि जीव जंतुओं के भी मानव की तरह अधिकार, कर्तव्य और जिम्मेदारियां हैं।
सीमांत चम्पावत में नेपाल सीमा से सटे बनबसा कस्बे के नारायण दत्त भट्ट ने जनहित याचिका दायर की थी, इस याचिका पर सुनवाई करते हुए नैनीताल हाई कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की खंडपीठ ने सभी जीवों को विधिक अस्तित्व का दर्जा दे दिया है।
कोर्ट के आदेश के मुताबिक, जानवरों को हर दो घंटे में पानी, चार घंटे में भोजन एक बार में 2 घंटे से ज्यादा पैदल चलाने पर रोक लगा दी गई है, कोर्ट ने कहा कि पशुओं को पैंदल केवल 12 डिग्री से 30 डिग्री तापमान के दौरान ही चलाया जा सकता है।
कोर्ट ने अपने आदेश में जानवरों के नाक, मुंह में लगाम लगाने पर रोक, केवल रस्सी से गर्दन से बांधने की अनुमति दी है, कोर्ट ने कहा कि पंत विवि के कुलपति, वरिष्ठ प्रोफेसरों की कमिटी बनाएं जो ये बताए कि बछड़े, बैल ऊंट आदि द्वारा ढोए जाने वाले बोझ के लिए निर्धारित मानदंड सही हैं या बोझ की मात्रा ज्यादा है।
साल 2014 में दायर याचिका में कहा गया था कि बनबसा से नेपाल के महेंद्रनगर की दूरी 14 किमी है, इस मार्ग पर घोड़ा, बुग्गी, तांगा, भैंसा गाड़ियों का उल्लेख करते हुए, उनके चिकित्सकीय परीक्षण, टीकाकरण के लिए दिशा-निर्देश जारी करने का आग्रह किया गया था।