सौम्या केसरवानी | Navpravah.com
यूपी चुनाव की घोषणा के साथ ही राजनीतिक दलों का वोट बैंक को रिझाने का नया प्लान सामने आ गया है। प्रदेश में अब राजनीतिक दल वोट बैंक को रिझाने में जुट गए हैं। रोज नए हथकंडे अपनाते हुए वोटरों को रिझाने के लिए खास प्लान बनाये जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद जातीय समीकरण और धार्मिक समीकरण बनाये-बिगाड़े जा रहे हैं।
हालाँकि बीजेपी अभी तक अपने सभी उम्मीदवारों की घोषणा नहीं कर सकी है, लेकिन पश्चिमी यूपी में ध्रुवीकरण की राजनीति करने का बीजेपी पर पहले भी आरोप लगता रहा है। संगीत सोम ने इन आरोपों में जान फूंकने का काम किया है, क्षेत्र में समुदाय विशेष को मुज़फ्फरनगर दंगों के लिए दोषी ठहराने से लेकर कैराना में पलायन के मुद्दे पर अब राजीनीतिक रोटियां सेंकी जा रही हैं।
बसपा सुप्रीमो मायावती ने चुनाव की घोषणा के बाद ही अपनी प्रेस कांफ्रेंस के जरिये मुस्लिमों से सीधी अपील की थी। उन्होंने कहा था कि प्रदेश के मुस्लिम बसपा के साथ आयें और भाजपा जैसी सांप्रदायिक शक्तियों को परास्त करें। मायावती ने मुस्लिम वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए नसीमुद्दीन सिद्दीकी को जिम्मा सौंपा है। बसपा ने 22 मौलानाओं को प्रचार करने के लिए आमंत्रित किया है। हालाँकि सपा के साथ मुस्लिमों को जाने से रोकने के लिए बसपा को कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी।
यूपी चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस और सपा का साथ आना इस सियासी संग्राम में काफी अहम हो सकता है। मुस्लिमों का साथ कांग्रेस और सपा दोनों को हमेशा से मिलता रहा है। इस ‘खास’ समीकरण के कारण ही कांग्रेस-सपा का गठबंधन यूपी चुनाव में निर्णायक सबित हो सकता है, सपा को मुस्लिमों का साथ पिछले विधानसभा चुनाव में भी मिला था और सपा इस चुनाव में भी ऐसी ही उम्मीद कर रही है।
कुल मिलाकर ये कहें तो अब राजनीतिक दल खुलकर अपनी चाल को अंजाम दे रहे हैं और वोट बैंक पर निशाना साध रहे हैं। मुस्लिम किधर जायेंगे ये उनका फैसला होगा लेकिन मुस्लिमों को रिझाने के लिए सभी पार्टियां लगी हुई हैं।