डॉ. जितेन्द्र पाण्डेय(साहित्य सम्पादक) | Navpravah.com
‘बस तुम्हारे लिए’ मीनाक्षी सिंह की सद्यः प्रकाशित कविता संग्रह है । अंजुमन प्रकाशन, इलाहाबाद से प्रकाशित इस कृति को विषय-वैविध्यता के आधार पर पाँच भागों में विभाजित किया गया है । पहले भाग में ‘मेरी चाहतों का आसमां’, दूसरे में ‘यथार्थ धरातल’, तीसरे में ‘दर्द-ए-सुकून’, चौथे में ‘रीते-रीते से पल’ और पांचवें भाग में ‘सकारात्मक बढ़ते कदम’ जैसे कविताओं के मुख्य खंड हैं । इन खंडों में कुल 68 कविताएं संकलित की गई हैं । सभी भिन्न-भिन्न विषयों पर केंद्रित किंतु निहितार्थ में अभिन्न क्योंकि लक्ष्य तो ‘बस तुम्हारे लिए’ है ।
कवयित्री भारतीय रीति-रिवाज़ों एवं संस्कारों में पली-बढ़ी हैं। संस्कारों और वर्जनाओं ने उनकी महत्त्वाकांक्षा के पंखों को कतरे ही नहीं बल्कि झुलसा दिए हैं । इसकी कसक ‘हाइकू’ से लेकर ‘मालिनी वो बेवफा औरत’ तक में दिखाई देती है । ‘पाजेब की भार’ में तो यह अधिक मुखर हुई है । इसके बावजूद अधिकांश कविताओं के मूल में एकाकी प्रेम के प्रति समर्पण और निष्ठा मौजूद है । इन कविताओं में शब्द मखमली अहसास लिए अपने पाठकों को गुदगुदाते-से प्रतीत होते हैं । ‘तुमने कहा था’ शीर्षक की इन पंक्तियों को देखें – ‘तुमने कहा था / मेरी राहों में जब महकते हैं गुलाब / फिज़ा भी मदहोश होती है देखकर तेरा शबाब / एक खूबसूरत गज़ल बनती हूँ ।’
जीवन की आपाधापी की मार सर्वाधिक रिश्तों पर पड़ी है । मीनाक्षी जी इसकी संवेदनशीलता से भली-भांति परिचित हैं । उन्हें लगता है कि आने वाले दिनों में ये छीजेंगे । व्यावसायिकता सम्बन्धों को लीलेगी । बुढ़ापा लाचार होगा । अतः इसकी मार्मिक अभिव्यक्ति वे ‘रामू काका नहीं रहे’ शीर्षक कविता में करती हैं । कवयित्री ‘सच्चा धनवान’ शीर्षक कविता में लिखती हैं कि असली धनवान वही होगा जो रिश्तों की अहमियत समझकर उनमें संतुलन साधेगा । ‘जिंदगी की लेन’ में रिश्तों के महत्त्व को दर्शाते हुए उनकी ठंडी होती तपिश पर चिंता ज़ाहिर वे चिंता जाहिर करती हैं ।इसके अलावा ‘संसद क्षितिज’, ‘हुक्मरानों की साजिशें’ और ‘आजादी’ जैसी कविताओं में दूषित राजनीति का कलुष बिंबित हुआ है । साथ ही आजादी के दीवानों को भुला देने की कसक साफ सुनाई देती है ।
संग्रह की अंतिम दो कविताएं ‘माँ’ पर केंद्रित हैं । इनमें माँ की पीड़ा को मीनाक्षी जी ने शब्द दिए हैं –‘सौतन का दर्द भी सही है वो’ । अंतिम दूसरी कविता में कवयित्री ने बेटी धर्म को निभाते हुए माता समेत सम्पूर्ण नारी जाति को ढाढ़स बंधाया है । कई हाइकू भी माँ की ममता को समर्पित हैं । इनमें लगता है ‘माँ’ शब्द अपनी गरिमा में ‘कविता’ का समानार्थी है । यहां बेटी की सुकोमल भावनाओं की तलस्पर्शी अभिव्यक्ति हुई है ।
‘बस तुम्हारे लिए’ कविता संग्रह में ‘विद्रोह’ और ‘सहयोग’ के मध्य संतुलन साधा गया है । कहीं-कहीं ‘गुलाब’ और ‘अरमां’ जैसे शब्दों का एकाधिक प्रयोग खटकता है । कवयित्री की चाहत को पढ़कर भी थोड़ा ताज्जुब होता है । यथा -‘मानसिक सुकून और कामयाबी भरी उम्दा राह / बस यही है मेरी चाहतों का आसमां ।‘ जो भी हो, ‘मानसिक सुकून’ और ‘कामयाबी भरी उम्दा राह’ का एक प्लेटफॉर्म पर आना आदर्श-स्थिति कही जा सकती है ।
कुल मिलाकर कवयित्री अपनी रचना को जीती हैं । सच्चाई और ईमानदारी शब्दों में ढलकर अपने पाठकों पर मंत्र-सा असर छोड़ती हैं । व्यक्तिगत संवेदनाओं का बहुस्याम में रूपांतरण इसी बात का द्योतक है । उच्छल भावनाएं विराट संवेदना में एकीकृत होकर पुनः अनेकों आयामों में प्रवाहित होने लगती हैं । पुस्तक से गुज़रना एक नई अनुभूति प्रदान करता है । यहां स्वप्निल लोक से लेकर यथार्थ की खुरदुरी दुनिया है । शेष -‘जाकी रही भावना जैसी….।’ अस्तु ।
पुस्तक: ” बस तुम्हारे लिए “
प्रकाशक: अंजुमन प्रकाशन, इलाहाबाद