ख़ुलासा: गायत्री प्रजापति को जमानत देने के लिए जजों और वकीलों के बीच हुई थी 10 करोड़ की डील

अनुज हनुमत । Navpravah.com

इलाहाबादः  उत्तर प्रदेश के पूर्व कद्दावर मंत्री सपा नेता गायत्री प्रजापति को बलात्कार के एक मामले में मिली जमानत पर बड़ा खुलासा हुआ है। जो उनकी मुश्किलें बढ़ा सकता है। आज एक जांच के बाद सामने आया है कि प्रजापति को साजिश रचकर जमानत दी गई थी, जिसमें एक वरिष्ठ जज के भी शामिल होने की बात कही जा रही है। बता दें कि यह बड़ा खुलासा इलाहाबाद हाईकोर्ट की खास रिपोर्ट के आधार पर हुआ है। इस मामले में अब गायत्री प्रजापति पर शिकंजा कसता जा रहा है।

जानकारी के मुताबिक प्रजापति को जमानत देने के लिए 10 करोड़ रुपए की वसूली की गई थी। आपको बता दें कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस दिलीप बी भोसले ने प्रजापति को जमानत मिलने की जांच के आदेश दिए थे। इस जांच में संवेदनशील मामलों की सुनवाई करने वाली अदालतों में जजों की पोस्टिंग में हाई लेवल भ्रष्‍टाचार की बात निकल कर आई है।

सबसे अहम बात ये है कि जमानत देने वाले जज की नियुक्ति नियमों के विरुद्ध हुई। अपनी रिपोर्ट में जस्टिस भोसले ने बताया है कि अतिरिक्त जिला और सेसन जज ओपी मिश्रा 7 अप्रैल को रिटायर होने से ठीक 3 सप्ताह पहले ही पोक्सो (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस) जज के रूप में तैनात किए गए थे। जज ओपी मिश्रा ने ही गायत्री प्रजापति को 25 अप्रैल को बलात्कार के मामले में जमानत दी थी। बता दें कि ओपी मिश्रा की नियुक्ति नियमों की अनदेखी करते हुए एक जज को हटाकर की गई थी।

इंटेलिजेंस ब्यूरो ने जज की पोक्सो पोस्टिंग में घूसखोरी की बात कही है। रिपोर्ट के मुताबिक गायत्री प्रजापति को 10 करोड़ रुपए लेकर जमानत दी गई थी। इस रकम से 5 करोड़ रुपए उन 3 वकीलों के बीच बांटे गए जो मामले में दलाल की भूमिका निभा रहे थे, बाकी के 5 करोड़ रुपए ओपी मिश्रा और उनकी पोस्टिंग संवेदनशील मामलों की सुनवाई करने वाली कोर्ट में करने वाले जिला जज राजेंद्र सिंह को दिए गए।

ये रहे रिपोर्ट के खास पहलू –

अपनी गोपनीय रिपोर्ट में जस्टिस भोसले ने कहा है कि 18 जुलाई 2016 को पोक्सो जज के रूप में लक्ष्मी कांत राठौर की तैनाती की गई थी और वह काफी अच्छा काम कर रहे थे। उन्हें अचानक से हटाने और उनके स्थान 7 अप्रैल 2017 को ओपी मिश्रा की पोस्को जज के रूप में तैनाती के पीछे कोई औचित्य या उपयुक्त कारण नहीं था। मिश्रा की तैनाती तब की गई, जब उनके रिटायर होने में मुश्किल से 3 सप्ताह का वक्त बचा था।

गौरतलब है कि अखिलेश सरकार में मंत्री रहे गायत्री प्रजापित के खिलाफ बलात्कार के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस ने 17 फरवरी को एफआईआर दर्ज की थी। जिसके बाद उन्हें 15 मार्च को गिरफ्तार कर लिया गया था। 24 अप्रैल को उन्होंने जज ओपी मिश्रा की अदालत में जमानत की अर्जी दी और उन्हें मामले की जांच जारी रहने के बावजूद जमानत दे दी गई। फिलहाल अब गायत्री प्रजापति की मुश्किलें बढ़ सकती हैं । लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि अगर न्यायपालिका की कार्यप्रणाली ही सन्देह के घेरे में आ जायेगी, तो लोगों को इंसाफ कहाँ मिलेगा !

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