अनुज हनुमत,
विश्व के मुस्लिम बाहुल्य देशों में से एक बांग्लादेश में इस्लामी चरमपंथियों द्वारा हिंदुओं और धर्मनिरपेक्ष लेखकों की निर्मम हत्याओं पर चिंता जताते हुए इस्लाम के एक लाख से ज्यादा विद्वानों ने एक फतवा जारी किया। फतवे में कहा गया कि इस्लाम के नाम पर चरमपंथ और आतंकवाद फैलाना ‘हराम’ है।
इस्लाम के जानकारों के संगठन बांग्लादेश जमीयतउल उलेमा के अध्यक्ष मौलाना फरीद उद्दीन मसूद ने एक संवाददाता सम्मेलन में इस्लामी कानून के आधार पर फतवा जारी किया और ये बात कही ।
बांग्लादेश की सबसे बड़ी ईदगाह शोलाकिया ईदगाह के ईमाम मौलाना मसूद ने कहा कि ‘कुछ’ आतंकियों द्वारा खुद को ‘जिहादी’ बताया जाना ‘गलत’ है। ऐसे लोग इस्लाम को बदनाम कर रहे हैं । ऐसे ही लोगों से इस्लाम को खतरा है। मौलाना मसूद ने कल कहा, ‘‘इस्लाम शांति का धर्म है। इस्लाम आतंकवाद का समर्थन नहीं करता।’’ कुरान और हदीस का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि आत्मघाती हमलावरों को नरक में भेजा जाएगा।
उन्होंने यह भी कहा कि, ‘‘यहां तक कि आतंकियों, उग्रवादियों और कायर हत्यारों की आखिरी नमाज में शामिल होना भी हराम है। आतंकवाद के खिलाफ अपने अभियान में मारे गए लोग शहीद कहलाएंगे।’’ मौलाना मसूद के अनुसार, फतवे पर 1,01,524 मुफ्तियों, आलिमों और उलेमाओं ने दस्तखत किए हैं। यह फतवा संदिग्ध इस्लामी चरमपंथियों द्वारा विभिन्न लेखकों, ब्लॉगरों, ऑनलाइन कार्यकर्ताओं और विभिन्न धर्म एवं सामाजिक विचारों वाले लोगों की सिलसिलेवार हत्याओं के बीच जारी किया गया है। विशेषज्ञों के अनुसार ऐसे समय में जब आतंकवाद के लिए इस्लाम को सन्देह की दृष्टि से देखा जा रहा है, ऐसे में ये एक बड़ा सन्देश साबित हो सकता है।
जारी किये गए फतवे का शीषर्क था, ‘‘मानवता की खुशहाली के लिए शांति का फरमान’’। यह फतवा अल्पसंख्यकों और धर्मनिरपेक्ष कार्यकर्ताओं पर कायरतपूर्ण हमलों की निंदा करता है। मौलाना ने कहा कि यदि फतवा आतंकवाद को पूरी तरह रोकने में विफल भी रहा, तो भी यह निश्चित तौर पर हिंसा पर लगाम लगाने में मददगार होगा।