प्रज्ञात द्विवेदी
कृत्रिम सुख की बजाये ठोस उपलब्धियों के पीछे समर्पित रहिये. कलाम साहब की कही ये बात भूल पाना नामुमकिन है। यकीन नहीं होता कि करोड़ों लोगों के आदर्श डॉ. कलाम हमें छोड़ गए।
दिल्ली प्रवास के दौरान कलाम साहब से जितनी बार मुलाक़ात हुई, उनके प्रति जो आदर भाव था उसमे इज़ाफ़ा ही हुआ। मन करता कि काश मैं एक लंबा अरसा गुज़ार सकता उनके साथ ! कृत्रिम सुख की बजाय ठोस उपलब्धियों की जब वे बात कहते तो उनके चेहरे की भाव भंगिमा देखते बनती।
मुस्कुरा के अभिवादन करना और उत्साह बढ़ाने की कला में जैसे पारंगत थे हमारे मिसाइलमैन। हालाँकि जीवन का सत्य ही मृत्यु है, लेकिन जो सीख और प्रेरणा हमें कलाम सर ने दिया हम उसे जीवनपर्यंत उनके आशीर्वाद स्वरुप सहेज कर रखेंगे और उनके आदर्शों पर चलने की कोशिश करेंगे।
राह भटके कोई अगर, तो मुमकिन है तलाश फिर नयी कोई….
खुद मंजिल ही गर छोड़ दे सफ़र , तो हमसफ़र क्या करे…!!
श्रद्धांजलि हर दिल अजीज कलाम साहब को।