आनंद द्विवेदी
गुजरात दंगों का भयावह सच केवल दंगा पीड़ितों के लिए ही नहीं बल्कि राजनीतिक अवसरवाद के लिए भी जीवन में किसी भूचाल से कम नहीं रहा है। दंगों की तस्वीरें मानवता के उस भयावह सच को बयां करती हैं, जिसमें इंसान और शैतान के फर्क को महसूस करना भी मुश्किल हो जाता है।
समय समय पर अपने राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति के लिए पार्टियों ने इन तस्वीरों को भुनाने में कोई कोर कसर नहीं रख छोड़ी। एक ऐसी ही तस्वीर है गुजरात के अहमदाबाद में एक साधारण इंसान ,पेशे से दर्जी, कुतुबुद्दीन अंसारी की जो गुजरात दंगों की दर्दनाक दास्तां बयान करती है। अंसारी अपनी इस तस्वीर को देखकर स्वयं विचलित से हो जाते हैं। इस तस्वीर में अंसारी की आँखों में आंसू थे और वो दया की गुहार लगा रहे थे। इस बात को चौदह बरस बीत चुके हैं लेकिन जब कांग्रेस पार्टी द्वारा असम-पश्चिम बंगाल के चुनावों में अंसारी की इस मार्मिक तस्वीर को चुनावी मैदान में इस्तेमाल किया गया तो वो स्वयं वेदना से भर गये।
अंसारी ने कहा, “जब कोई मेरी तस्वीर देखता है तो उसे मेरी नीयत पर शक होने लगता है। मुझे तो इस बात का भान भी नहीं था कि कोई पार्टी मेरी तस्वीर का इस्तेमाल अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए कर रही है और वो भी बिना मुझसे पूछे। कभी मुझसे और मेरे परिवारजनों से भी पूछ लेते कि इस सब के बाद उनपर क्या गुजरती है। मैं 43 साल की उम्र का हूँ। मेरी इस तस्वीर का बेजा इस्तेमाल नेताओं, फ़िल्मी लोगों से लेकर आतंकवादियों तक ने किया है। कभी-कभार तो मुझे लगता है कि काश उन दंगों में मैं मर ही गया होता तो अच्छा होता। मेरे बच्चे जब पूछते हैं तो मैं उनसे बता भी नहीं सकता कि मैं उन तस्वीरों में क्यों रो रहा हूँ और दया की भीख क्यों मांग रहा हूँ।
कुतुबुद्दीन अंसारी अपने पत्नी और बच्चों के साथ अहमदाबाद के एक छोटे से घर में रहते हैं। घर चलाने के लिए वो दरजी का काम करते हैं। वो कहते हैं जब भी मेरी तस्वीरों का इस्तेमाल इन राजनीतिक पार्टियों के द्वारा किया जाता है तो मुझे इससे कुछ लाभ तो नहीं होता बल्कि मेरी जिन्दगी और भी मुश्किल हो जाती है। इन सभी नेताओं को मेरा ये दर्द समझना चाहिए।
हाल ही में कांग्रेस द्वारा असम-पश्चिम बंगाल के चुनावों में अंसारी की तस्वीरों को मोदी के गुजरात मॉडल बताकर पेश किया गया और पूछा गया कि क्या यही है मोदी का गुजरात मॉडल और क्या आप असम को गुजरात बनाना चाहते हैं।