नारायण सिंह ‘रघुवंशी’ देहरादून
उत्तराखंड जब से अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आया, देव भूमि को तो जैसा ग्रहण ही लग गया है। यहां के जन मानस ने सोचा था कि अलग राज्य मिलने से विकास की गंगा बहेगी, युवाओं और बेरोज़गारों को रोजगार मिलेगा। लेकिन ऐसा हो न सका बल्कि 16 साल में सिर्फ मात्र अस्थिर राजनीति देखने को मिली।
16 सालों में उत्तराखंड में सिर्फ तीन चुनाव हुए लेकिन मुख्यमंत्री 8 बन चुके है 9 वीं की तैयारी है। जोकि उत्तराखंड की अस्थिर राजनीति को दर्शाती है। यह स्थिति दर्शाती है कि यहां के जननायक जनता की छोड़ मात्र अपनी कुर्सी बचाने में लगे हुए हैं।
विगत दो तीन दिनों में जो घटनाक्रम शांत देवभूमि में दिखा और आज जो उत्तराखंड की विधान सभा में हुआ, शायद ही किसी राज्य में ऐसा हुआ हो। आज के घटनाक्रम ने राज्य की राजनीती को गरमा दिया है ।विधान सभा में पहली बार सत्ता पक्ष के मंत्री विधायक अपनी ही सरकार के खिलाफ हो गए। और विपक्ष पीछे से समर्थन दे बैठा। इस पूरे मामले के बाद हरीश रावत की बोलती बंद नज़र आ रही है।
राजनीती के मझे खिलाडी हरीश रावत समझ ही नहीं पाए कि अपनों ने ही उन्हें कैसे क्लीन बोल्ड कर दिया? मंत्री हरक सिंह के पद से इस्तीफा देने के बाद 9 और विधायकों ने सरकार के खिलाफ आवाज़ उठाई और सरकार को संकट में डाल दिया। लेकिन इस तमाम राजनीतिक उठापटक में उत्तराखंड देवभूमि में जो हो रहा है, वह कतई राज्य हित में नहीं हो सकता।