अनुज हनुमत
यूपी में विधानसभा चुनावों का शंखनाद हो चुका है और अब सारी पार्टियों ने कुर्सी पर काबिज होने के लिए अपने-अपने राजनीतिक पेंच कसने शुरू कर दिये हैं। ऐसे में इस समय भाजपा के नये प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्या की ताजपोशी ने यूपी के राजनीतिक गलियारों की गर्मी फिर से से बढ़ा दी है । कल लखनऊ में केशव प्रसाद मौर्या जी के ताजपोशी समारोह के दौरान कई नये नारे लगे पर एक नारा ऐसा भी था जिसने इस समय सोशल साइट्स पर धूम मचा रखी है – “केशव नही संत है ,अब सपा का अंत है।”
ऐसे में पार्टी आलाकमान को ध्यान रखना चाहिए ऐसे संवेदनशील समय में अपने कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों की सोशल साइट्स की सक्रियता पर कड़ी नजर रखें। अक्सर देखा गया है कि हमारे देश के चुनावों में नारों का अपना विशेष महत्व रहा है, पर यूपी के चुनावों में इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। पिछले कई चुनावों में ‘नारों’ ने ही जीत भी दिलाई और हराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
ऊपर की पंक्ति में जिस नारे का वर्णन किया गया है, ज्यादातर राजनीतिक पंडितों को उसमे कुछ गलत नहीं नजर आएगा, पर अत्यधिक आक्रामकता से भी शुरुआती दौर में बचना चाहिए। एक बात और ख़ास है कि अमूमन देखा जाता है कि कुछ ख़ास विद्वानों द्वारा नारे बनाये जाते हैं और पार्टी हित में सक्रिय कार्यकर्ताओं के सुपुर्त कर दिए जाते हैं। जिससे उन नारों का गलत प्रभाव पड़ने पर पार्टी उससे किनारा कर सके। ऐसा ही एक उदाहरण दशको पुराना है जो इसी यूपी की राजनीतिक धरती का है। दशको पहले एक बार नारा चला था कि –
“तिलक- तराजू और तलवार,
इनको मारो जूते चार”
इस नारे के आने के बाद उस समय प्रदेश के सियासी गलियारों में भूचाल आ गया था। उस समय इस नारे के लिए बहुजन समाज पार्टी को जिम्मेदार ठहराया गया था पर पार्टी ने इससे पल्ला झाड़ते हुये साफ़ तौर पर यह कह दिया था की इस नारे से हमारा कोई सरोकार नहीं। बहरहाल पिछले लोकसभा चुनावों में भी ऐसे ही एक नारे ने खलबली मचा दी थी और यूपी की राजनीति में भाजपा की मुश्किलें बढ़ा दी थी। उस समय बनारस की सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी जी का चुनावी प्रचार अपने सबाब पर था और उसी समय एक नारा आया –
“हर हर मोदी, घर घर मोदी”
इस नारे की वजह से भी उस दौरान माहौल गर्म हो गया था। विरोधियों ने भाजपा को आड़े हाथों लिया और कहा कि ये काशी की धरती का ही नहीं वरन् भगवान शिव का अपमान है और इस एक गलत नारे ने कुछ समय के लिए भाजपा को बैकफुट पर ला दिया और इसके लिए बनारस के कुछ स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं को दोषी ठहराया गया।
पार्टी के पदाधिकारियों ने कहा कि ये नारा भाजपा का आधिकारिक नारा नही है बल्कि कुछ उत्साहित कार्यकर्ताओं ने बनाया है। विवाद को ज्यादा तूल पकड़ता देख आखिरकार मोदी को ट्वीट करके अपने कार्यकर्ताओं से आग्रह करना पड़ा कि ऐसे नारों से बचे और मुझे भी इन नारों से खुशी नहीं मिलती। इसलिये मैं उन तमाम लोगो से आग्रह करता हूँ कि कृपया इस नारे को न दोहरायें’
कुलमिलाकर देखा जाए तो ‘नारों’ ने ही पिछले लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाया और हाल में ही बिहार में सत्ता में काबिज हुई महागठबंधन की सरकार को भी बहुमत दिलाने में नारों का ही महत्वपूर्ण योगदान रहा। अब बारी यूपी की है और दो बड़े चुनावों में अपनी रणनीति के चक्रव्यूह में विरोधियों को फंसाने में सफल रहे वर्त्तमान भारतीय राजनीति के सबसे सफल रणनीतिकार प्रशांत किशोर की अब असल परीक्षा है ।
nice post