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वर्ष २०१५ में अच्छे संस्थानों में प्रवेश के भारी दबाव के चलते कोटा में कुल २४ छात्रों ने आत्महत्या की। हालिया दिनों में आई रिपोर्ट की मानें तो पिछले पांच सालों में कुल ७२ छात्रो ने केवल इसलिए आत्महत्याएं की, क्योकि वो अच्छे संस्थानों में दाखिले को लेकर बहुत ज्यादा दबाव और अपने अभिभावकों की आशाओं पर खरे नही उतर पा रहे थे, जिसकी वजह से उन्हें इतना बड़ा कदम उठाना पड़ा।
अभी कुछ दिनों पहले एक वरिष्ठ पत्रकार ने जब इसकी तह तक जाने का प्रयास किया तो बेहद चौंकाने वाले तथ्य सामने आये। रिपोर्ट की मानें तो कोटा के एक कोचिंग सेंटर में पढ़ने वाले १७ साल के छात्र ने हेल्पलाइन पर कॉल करके कहा कि वो सो नहीं पाता। उसे सपनों में दिखता है कि उसकी बायोलॉजी की किताबों से सांप और दूसरे जानवर बाहर निकलकर उस पर हमला कर रहे हैं। एक दूसरा स्टूडेंट हेल्पलाइन पर कॉल करने के मिनट भर बाद ही फूट-फूटकर रोने लगा।
हेल्पलाइन की लाइन एक्टिव होने के छह घंटे के भीतर २६ कॉल्स आ चुकी हैं। एक दिन में अंदाजन १०० कॉल्स आए। सभी एक ही कहानी कहती हैं। कोटा की कोचिंग फैक्टरी के स्टूडेंट्स अब टूट रहे हैं। कोटा में चल रहे ४० से ज्यादा कोचिंग संस्थानों के एक सामूहिक निकाय ने यह हेल्पलाइन शुरू की है। इस हेल्पलाइन में तनाव से निपटने में मदद करने वाले तीन एक्सपर्ट, शिक्षा क्षेत्र से जुड़े १० एक्सपर्ट और दो डॉक्टर शामिल हैं। हालांकि, यहां मेडिकल और इंजीनियर की तैयारी कर रहे लगभग १.५ लाख स्टूडेंट्स के लिए यह नाकाफी है। बता दें कि पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक इस साल अब तक २४ स्टूडेंट्स आत्महत्या कर चुके हैं। इनमें से १७ एलन करियर इंस्टिट्यूट के हैं। हेल्पलाइन इसी संस्था में स्थित है।
देश का एक ऐसा शहर जिसने पिछले कुछ वर्षों में ‘कोचिंग हब’ के रूप में सबके बीच मजबूती से अपनी पहचान बनाई। यहाँ के कोचिंग संस्थानों में प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में छात्र-छात्रायें प्रवेश लेते हैं, जिनका एक मात्र यही उद्देश्य होता है कि वह मेडिकल या इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षाओं में सफल हो सकें। आलम यह है कि यहाँ आने वाले लाखों छात्रों में से २०-२५% छात्र ही सफल हो पाते हैं। कोटा में कोचिंग करने के लिए ६ राज्यों से कुल ८५% छात्र आते हैं। कोचिंग सेंटरों द्वारा एक छात्र से ५० हजार से १ लाख तक की मोटी रकम जमा कराई जाती है और रहने के लिए हॉस्टल में ७ से १५ हजार रूपये वसूले जाते हैं। आंकड़ों की मानें तो प्रतिवर्ष कोचिंग संस्थानों द्वारा हजारो करोड़ की कमाई की जाती है।
सारे कोचिंग संस्थानों का पूरा फोकस पढ़ाई पर होता है। यहां बच्चों पर अच्छा प्रदर्शन करने का जबरदस्त दबाव होता है। यहां पढ़ाई के अलावा ऐसे किसी दूसरे क्रियाकलापों के लिए कोई जगह नहीं है, जिससे बच्चों पर से दबाव कुछ कम हो। असफल होने वाले स्टूडेंट्स के लिए शर्मिंदगी के हालात। कम रैंक वाले बच्चों को पीछे की सीटों पर बैठने कहा जाता है। आरोप है कि टीचर टॉपर्स को ज्यादा तरजीह देते हैं। जो बच्चे लाख कोशिशों के बावजूद अच्छे नंबर नहीं ला पाते, इस अपराध बोध से ग्रसित हैं कि वे अपने घरवालों और अध्यापकों की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पा रहे। बहुत सारे बच्चों को कोचिंग कोर्स ढेरों किताबों और बिना छुट्टी की वजह से बहुत कठिन महसूस होता है। पूरे साल में दीवाली के वक्त एक हफ्ते की छुट्टी ही मिलती है। यहां संडे को भी टेस्ट होते हैं। इतना कुछ है कि अगर बच्चे से एक क्लास भी छूट जाए तो वो पिछड़ जाता है।
एक अंग्रेज़ी अखबार को दिए साक्षात्कार में बंसल क्लासेज के सीईओ प्रमोद बंसल मानते हैं कि, “माता-पिता को भी बच्चों का ख्याल रखना होगा। अगर कोई बच्चा स्कूली पढ़ाई में कमजोर था तो वह कोटा के कठिन शैक्षिक माहौल को कैसे झेल पाएगा?” वहीं, करियर प्वॉइंट के डायरेक्टर प्रमोद माहेश्वरी का मानना है कि, “आत्महत्या करने वाले बच्चे भावनात्मक तौर पर कमजोर होते हैं। जब वे अपने घरवालों और अध्यापकों के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाते तो उन्हें अपराध बोध होता है। आत्महत्या की वजह प्रेशर नहीं बल्कि यह अपराध बोध है।”
कोचिंग हब के रूप में देश भर में मशहूर कोटा अब फैक्ट्री का रूप ले चुका है। जहां छात्रों को कच्चा माल समझा जाता है और चौबीसों घंटे बहुमंजिली इमारतों में उनके साथ ‘माल तैयार करने’ की कवायद चलती रहती है। यहां 300 से भी ज्यादा कोचिंग इंस्टीट्यूट्स हैं। इनमें एलेन, रेजोनेंस, बंसल, वाइब्रैंट और कॅरिअर प्वाइंट पांच बड़े इंस्टीट्यूट्स हैं। इनके पास डेढ़ लाख से भी ज्यादा स्टूडेंट्स हैं। इन्होंने छात्रों को एक ऐसे सिस्टम में ढाल दिया है, जहां नाकामी का मतलब शर्म, डर और अंतिम अंजाम मौत होती है।