अनुज हनुमत
कल सुबह जैसे ही रुझान आने शुरू हुए पांचों राज्यों के राजनीतिक गलियारों में कुछ तस्वीरें बिल्कुल स्पष्ट होने लगी थी। तमिलनाडु में जयललिता की जीत, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की जीत और असम का मोदीमय होना, ये तीनों ही चित्र तो स्पष्ट ही दिख रहे थे और शाम तक जब परिणाम आया तो हुआ भी यही। एक परिणाम जिसने और भी ज्यादा चौंकाया वह थी केरल में लेफ्ट की जीत। ये जीत इसलिए भी हतप्रभ करने वाली थी क्योंकि एक तरफ वैसे भी धीरे धीरे वामपंथ के गढ़ लगातार ढह रहे हैं और ऐसे में अब केरल ही एकमात्र राज्य बचा है जहाँ लेफ्ट की एकलौती सरकार होगी। प. बंगाल में जिस योजना के साथ लेफ्ट उतरा उसे केरल की जनता ने स्वीकार किया और बंगाल में लेफ्टगिरि न चलकर दीदीगिरि चली। अब इस परिणाम ने वामपंथ को हाशिये पर लाकर खड़ा कर दिया और उसके पास केरल की जीत का जश्न मानने का भी नैतिक बल नहीं बचा है।
लेफ्ट के बाद इन पांच राज्यों के चुनावों में अगर किसी ने कुछ खोया है तो वो है ‘कांग्रेस’ ,जिसने खुद को खो दिया है और उसे पुडुचेरी के अलावा बाकी चारों राज्यों में कोई ख़ास सफलता नहीं मिली। कांग्रेस की इस असफलता की नैतिक जिम्मेदारी वैसे तो कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने ले ली है, पर प्रश्न ये है कि आखिर लगातार मृत होती जा रही कांग्रेस पार्टी खुद संजीवनी बूटी लाने वाला हनुमान कहाँ से खोज लाएगी ? एक हनुमान तो वैसे भी यूपी में लगे हैं। जी हाँ,सही समझे आप। हम बात कर रहे हैं मौजूदा भारतीय राजनीति के सबसे सफल रणनीतिकार प्रशांत किशोर की, जिनको ये जिम्मेदारी सौंपी गई है कि वो यूपी में पार्टी को ऐतिहासिक जीत व खोई हुई वही पुरानी प्रतिष्ठा वापस दिलाएं पर ये काम इतना सरल भी नहीं। कुल मिलाकर पांच राज्यों के इन चुनावी परिणामों ने कांग्रेस को चारों खाने चित्त कर दिया।
वैसे भी पूरे देश में कांग्रेस इस समय वेंटिलेटर पर है और ऐसे परिणाम पार्टी के लिये और भी मुसीबत खड़ी कर सकते हैं, जिनसे निकलना समय के साथ और भी कठिन होता जायेगा। कल शाम को कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह का एक ट्वीट आया, जिसमें उन्होंने कहा कि अब पार्टी को एक सर्जरी की आवश्यकता है, तभी कुछ होगा। लेकिन दिग्विजय सिंह जिस सर्जरी की बात कर रहे हैं, क्या ऐसे कोई बड़ा परिवर्तन हो पायेगा पार्टी में ! सूत्रों की मानें तो पार्टी आलाकमान जल्द ही कोई न कोई बड़ा फैसला जरूर लेगी, जिसमें युवाओं को बड़ी जिम्मेदारी दी जायेगी। भाजपा लगातार जीत से देश की सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी बनने की ओर तेजी से अग्रसर है, इस समय लगभग 35% जनता भाजपा शासित प्रदेशों से पार्टी के साथ है, जो अगले वर्ष यूपी के चुनावों के बाद और भी बढ़ सकती है। कुल मिलाकर भाजपा को भी ज्यादा खुश होने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि यूपी के हालात असम जैसे नहीं और यहाँ की राजनीतिक हवाएँ जितनी ही गर्म हैं उतनी ही सर्द भी। लेकिन वास्तव में असम की जीत ने भाजपा का पूर्वोत्तर राज्यों में दाखिला बड़ी ही मजबूती से कराया है। इसके लिए सर्वानंद सोनवाल बधाई के पात्र हैं, जिन्होंने अपने दमदार व्यक्तित्त्व की बदौलत असम में भाजपा को जीत दिलाई।
सोनवाल स्वाभाव से बहुत ही सरल और मिलनसार व्यक्ति हैं। कहते हैं कि राज्य की राजनीती में उनके विपक्षियों से भी उतने ही अच्छे सम्बन्ध हैं, जितने अपनी पार्टी के नेताओं से।
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की दीदीगिरि एक बार फिर चल गई है। विद्यार्थी परिषद से राजनीति की शुरुआत करने वाली ममता बनर्जी ने एक बार फिर बंगाल की जनता का दिल जीत लिया है। ऐसी ही एक तस्वीर तमिलनाडु में देखने को मिली है, जहाँ जयललिता का जादू एक बार फिर चल गया है। जयललिता की जीत ने करूणानिधि के पुनः मुख्यमंत्री बनने के सपने को हमेशा के लिए ठिकाने लगा दिया है।
इन चुनावी परिणामों ने एक बार फिर ये प्रश्न उठा दिया है कि आने वाले 2019 के लोकसभा चुनावों में मोदी मैजिक का क्या होगा ? कुछ भी हो पर इतना तो स्पष्ट है कि कांग्रेस देश की सबसे निचले स्तर की पार्टी बनती जा रही है, जो कि हतप्रभ करने वाला है। देश को आरक्षण जैसी लाईलाज बीमारी देने वाली कांग्रेस पार्टी को इस समय खुद अपने अस्तित्व को बचाने के लिए “आरक्षण” की आवश्यकता हो गई है।