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एक ओर जहाँ देश में न्यायपालिका के द्वारा आतंकी अफजल की फांसी को लेकर तनाव का माहौल फिर से उठ खड़ा हुआ है. वहीँ दूसरी ओर न्यायपालिका अपना काम मुस्तैदी से कर रही है.
मामला जिला एवं सत्र न्यायालय ग्वालियर (मध्य प्रदेश) का है, जहाँ वर्ष 2013 में एक दृष्टिहीन बालिका के साथ हुए दुष्कर्म का मामला विचाराधीन था. शुक्रवार को अपर सत्र न्यायाधीश संजय कुमार द्विवेदी ने कोर्ट में सुनवाई के बाद आरोपी मोहन माहौर को उम्र कैद की सजा सुनाकर न्याय के प्रति जन आस्था को और भी बल प्रदान किया है.
वर्ष 2013 के मार्च महीने में जब सभी होली का त्यौहार मना रहे थे, तब मुजरिम मोहन किसी और ही फ़िराक में था. दृष्टिहीन पीड़िता घर में अकेली थी और उसके माता-पिता किसी काम से घर से बाहर गए थे. मोहन पीड़िता के पिता के यहाँ अक्सर आया-जाया करता था. होली के दिन अकेली दृष्टिहीन पीड़िता को देखकर मोहन ने दुष्कर्म कुकृत्य को अंजाम दिया. दृष्टिहीन होने के कारण पीड़िता दुष्कर्मी को केवल आवाज़ से ही पहचान सकी.
दुष्कर्मी ने पीड़िता को ये धमकी भी दी थी कि यदि उसने अपना मुंह किसी के सामने खोला तो वो उसे जान से मार डालेगा. पीड़िता इस घटना के बाद अक्सर बीमार रहने लगी. जिस कारण से उसके परिवार वालों ने ग्वालियर स्थित जय आरोग्य चिकित्सालय में उसकी जांच करवाई. डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि पीड़िता गर्भ से है, जिसके बाद परिजनों ने मामला जनकगंज थाने में दर्ज करवाया.
दुष्कर्म पीडिता के बयानों के आधार पर पुलिस ने मोहन माहौर के खिलाफ़ दुष्कर्म का मामला दर्ज किया. जब मामला न्यायालय के समक्ष विचाराधीन था, तभी पीड़िता ने केवल दुष्कर्मी की आवाज़ से ही उसे पहचान लिया. पब्लिक प्रोसीक्यूटर पंकज पालीवाल ने केस से सम्बंधित अन्य सबूत भी दिए. मामले की सुनवाई के पश्चात न्यायालय ने दुष्कर्मी को दृष्टिहीन पीड़िता के साथ दुष्कर्म करने का दोषी पाया तथा उसे उम्र कैद की सजा सुनाते हुए ग्यारह हजार का जुर्माना भी लगाया.