​नोटबन्दी: मोदी के मास्टर स्ट्रोक के बाद हारी हुई बाजी खेल रहा है विपक्ष!

अनुज हनुमत,

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए अचानक से पूरे देश में 500 और एक हजार की नोटों पर पाबंदी लगा दी, जिसके चलते कालाधन रखने वाले सदमे में आ गये। नोटबंदी के फैसले के बाद अगले दो तीन दिन तक तो राजनीतिक गलियारों में भी अजीब सी शांति देखी गई। मानों सभी के पास बड़े पैमाने पे कालाधन रहा हो, जिसको सभी ठिकाने लगाने की व्यवस्थाओं में लग गए हो, लेकिन ये तो वही पार्टी वाले ही जानते होंगे।
बीच में कुछ ऐसी तस्वीरें सामने आई, जिसमें यूपी की कुछ प्रमुख क्षेत्रीय पार्टियों के कार्यालय से नोटों से भरे बैग गाड़ियों में लदते देखे गये। इससे स्पष्ट रूप से पता चलता है कि क्षेत्रीय दलों के अंदर इस निर्णय को लेकर सबसे ज्यादा बेचैनी है। क्योंकि समय समय पर इन क्षेत्रीय पार्टियों के ऊपर मोटी रकम लेकर टिकट देने का भी आरोप लगता रहा है। ऐसे में पीएम मोदी इन पार्टियों के सबसे ज्यादा निशाने पर हैं। केंद्र सरकार द्वारा लिए गये नोटबन्दी के फैसले के बाद से बाहुबली नेता, खनन माफ़िया, बड़े ठेकेदार, बिल्डर, अंडरवर्ल्ड, आतंकवादी, नक्सली, अधिकांश बड़े मंदिर ये सभी बेचैन हैं, क्योंकि ख़ुफ़िया रिपोर्ट्स की मानें तो सबसे ज्यादा घाटा इन्हीं का हुआ है।
केंद्र सरकार के नोटबन्दी वाले फैसले के एक हफ्ते के बाद विपक्ष अचानक मुखर हुआ और पीएम मोदी के ऊपर एक के बाद एक हमले शुरू कर दिए। फ़िलहाल विरोध का आलम ये है कि शीतकालीन सत्र भी नोटबन्दी की भेंट चढ़ने वाला है। ये सारे हमले गरीबों की कंधे पर बन्दूक रखकर किये जा रहे हैं, क्योंकि सरकार द्वारा अचानक लिए गये इस फैसले से आम लोगों को कुछ दिक्कतों का सामना तो निःसन्देह करना पड़ रहा है, लेकिन अधिकांश लोग सरकार के इस फैसलों को सही बता रहे हैं। शायद विपक्ष भी एक हारी हुई लड़ाई लड़ रही है, जिसका नेतृत्व भी कांग्रेस के स्थान ममता बनर्जी कर रही हैं।
कांग्रेस के नेता केवल जुबानी वार करते नजर आ रहे हैं। पार्टी के नेता तय नहीं कर पा रहे हैं कि आखिर पीएम नरेंद्र मोदी हिटलर हैं या मुसोलिनी! शायद ये पार्टी के नेताओं में आपसी संवादहीनता का नतीजा है, जो हर नेता अलग अलग तीर चला रहा है। इस नोटबन्दी वाले मुद्दे में सरकार के विरोध में दो शूरवीर योद्धाओं ने सबसे ज्यादा तेजी दिखाई है, जिसमें एक दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हैं और दूसरे कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी हैं।
अगर हम अरविन्द केजरीवाल की बात करें, तो वो शायद तय नहीं कर पा रहे हैं कि उन्हें प्रदेश की राजनीति करने है या पूरे देश की। इसिलिए नए नए करतब करते अमूमन दिखाई दे जाते हैं। आने वाले दिनों में इनके कारण पार्टी को जबरदस्त झटका लग सकता है। दूसरी तरफ अगर कांग्रेस युवराज की बात करें तो उनके व्यवहार से तो अक्सर यही प्रतीत होता है कि तैयारी में कुछ कमी थी, लेकिन ऐसा कब तक होता रहेगा। कब तक कांग्रेस परिवारवाद की गिरफ्त में रहेगी। पार्टी में ऐसे बहुत से युवा चेहरे हैं, जो राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी को लीड कर सकते हैं लेकिन शायद ये सभी जानते हैं कि कांग्रेस में ऐसा निर्णय लेना नामुमकिन है कि कोई गांधी परिवार से इतर पार्टी का नेतृत्व करे!
अगर हम इसी मुद्दे पर मीडिया की बात करें, तो नोटबन्दी के फैसले का सबसे ज्यादा दर्द एनडीटीवी को हुआ है, जो लगातार ग्राउंड जीरो से गरीबों की दिक्कतें दिखा रहे हैं। रवीश कुमार ग्राउंड जीरों पर गये, लेकिन उन्हें सभी सरकार के भक्त नजर आये तो दूसरी ओर कुछ रिपोर्ट्स में चैनल ने ये दिखाया कि मजदूरों को भी नोटबन्दी के चलते अपनी मजदूरी का नुकसान करना पड़ रहा है, लेकिन जब पता चला कि उन्ही मजदूरों का प्रयोग लोग अपने पैसे निकलवाने के लिए कर रहे हैं तो फिर ये रिपोर्ट सामने नहीं आई। 
एनडीटीवी, सरकार के विरुद्ध इस मुद्दे पर इसलिए भी लड़ाई लड़ रहा है क्योंकि कुछ दिन पहले ही सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ खिलवाड़ के एक मामले में चैनल के ऊपर एक दिन का बैन लगाने का निर्णय लिया था। कुछ चैनल लगातार भक्ति भी कर रहे हैं लेकिन ये सब कितना उचित है। जब लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ ही ऐसी कुंठित मानसिकता का कार्य करेगा तो फिर देश का क्या होगा!
सरकार के नोटबन्दी के ऐलान ने देशविरोधी तत्वों और आतंकी संगठनों की नींद उड़ाकर रख दी है। घाटी में पिछले 11 दिन में ड्रग्स तस्करी का केवल एक ही मामला सामने आया है। हवाला कारोबार बैठ गया है।आतंकी संगठनों के लिए गाइड और पोर्टर का काम करने वाले ओवर ग्रांउड वर्करों की भी कमर टूट गई है।
हालांकि नोटबन्दी के असर से लुधियाना का हैजरी उद्योग भी अछूता नहीं रह सका, जहाँ कारोबार महज दस फीसदी तक सिमट गया है। वहीं फिरोजाबाद का चूड़ी उद्योग भी पूरी तह पटरी से उतर गया है। दरअसल, ध्यान देने वाली बात यह है कि नोटबन्दी के कारण सबसे ज्यादा प्रभाव आतंकवाद पर पड़ा है। अपनी बेबाक टिप्पणी के लिए विख्यात पाकिस्तान में जन्मे कैनेडियन लेखक तारिक फ़तेह ने नोटबन्दी के फैसले की तारीफ की है। उन्होंने कहा कि इससे पाकिस्तान, नक्सलवाद और आतंक फैलाने वाले दाउद जैसों की कमर टूटी है।
सबसे खास बात यह है कि कालाधन रखने वालों की नींदें उड़ी हुई हैं और आपको फिर भी लगता है कि सरकार का यह फैसला गलत है। हालाँकि इसे लेकर व्यवस्थाएं दुरुस्त होनी चाहिए थी। अगर हम चाहते हैं कि भ्रष्टाचार खत्म हो, तो तकलीफ सहने के लिए हमें तैयार रहना चाहिए। इस मुद्दे पर राजनीति करने और लोगों को भड़काने से बचना चाहिए।

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