फिल्म समीक्षा- बाजीराव मस्तानी
AmitDwivedi@Navpravah.com
निर्देशक– संजय लीला भंसाली
प्रमुख कलाकार– रणवीर सिंह, दीपिका पादुकोण, प्रियंका चोपड़ा, तनवी आजमी, मिलिंद सोमन, महेश मांजरेकर, संजय मिश्रा, आदित्य पंचोली, अनुजा गोखले.
रेटिंग– 4 /5
ऐसी फिल्में कम ही बनती हैं, जो कहानी, पटकथा, संवाद और संगीत सहित लगभग हर मायने में उत्कृष्ट हों. इतिहास में दर्ज़ बाजीराव और मस्तानी की प्रेम कहानी को सिनेमाई शक्ल दी है, निर्देशक संजय लीला भंसाली ने. हालाँकि विभिन्न कारणों के चलते संजय को इस फिल्म को पूरा करने के लिए लगभग 12 साल का लंबा वक़्त खर्च करना पड़ा. लेकिन कलात्मक और तकनीकी रूप से इस फिल्म को समृद्ध करने में सभी कलाकारों का योगदान इसमें स्पष्ट नज़र आता है. सन 2003 में जब इस फिल्म को बनाने का मन भंसाली ने बनाया तब उन्होंने सलमान खान और ऐश्वर्या राय की जोड़ी को दिमाग में रखा था, लेकिन समय के साथ इसके कलाकारों को लेकर तमाम बदलाव किए गए और अंततः रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण के खाते में आई यह फिल्म. हालाँकि काशीबाई के किरदार के लिए निर्देशक की पहली पसंद हमेशा प्रियंका चोपड़ा ही थीं.
कहानी–
फिल्म बाजीराव मस्तानी की कहानी, मराठा साम्राज्य के वीर योद्धा पेशवा बाजीराव बल्लाल के पूरे हिन्दुस्तान में बढ़ते पराक्रम और उनके संघर्षों के इर्द-गिर्द घूमती है. मुग़लों से घिरे बुंदेलखंड के राजा अपनी बेटी मस्तानी को पेशवा बाजीराव के पास सहायता माँगने के लिए भेजते हैं. मस्तानी को योगवश अपने युद्ध कौशल का प्रदर्शन करना पड़ता है, जिससे बाजीराव काफी प्रभावित होते हैं और बुंदेलखंड को संकट से निकालने अपनी सेना की टुकड़ी लेकर निकल पड़ते हैं. और अपनी कुशल नीतियों और पराक्रम से मुग़लों को पराजित कर बुंदेलखंड की रक्षा करते हैं. युद्ध के दौरान विषम परिस्थिति में मस्तानी बाजीराव की जान बचाती है और यहीं से दोनों के बीच प्रेमांकुर प्रस्फुटित होता है, जो शनैः शनैः परवान चढ़ने लगता है. बाजीराव कुछ समय के बाद बुंदेलखंड से पुणे चले जाते हैं लेकिन बाजीराव को अपने सपनों में संजोए मस्तानी भी कुछ दिन बाद बाजीराव के साम्राज्य में पहुँच जाती है. चूँकि मस्तानी मुस्लिम होती है, इसलिए उसे पेशवा परिवार का भारी विरोध झेलना पड़ता है. यहीं से कहानी अपने असल रंग में रंग जाती है. एक पराक्रमी राजा और उसकी प्रेयषी के प्रेम को बड़े खूबसूरत अंदाज़ में पेश किया है लेखक-निर्देशक संजय लीला भंसाली ने. बाजीराव और मस्तानी की अविस्मरणीय प्रेम कहानी का क्या अंत होता है, क्या पेशवा परिवार और बाजीराव की पहली पत्नी काशीबाई मस्तानी को स्वीकारती है, यह सब जानने के लिए आपको सिनेमाघर की ओर रुख करना होगा.
गीत-संगीत–
सिद्धार्थ-गरिमा और ए.एम. तुराज के शब्दों को कर्णप्रिय बनाया है संजय लीला भंसाली ने, जो अपनी संगीत की जानकारी का लोहा भी मनवाते नज़र आते हैं. शास्त्रीय संगीत के पुट में फिल्म के गीत पहले ही लोकप्रियता हासिल कर चुके हैं.
हालाँकि कहानी के तथ्य को लेकर लगातार सवाल भी उठे हैं लेकिन निर्देशक ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि यह फिल्म ‘राउ’ नामक एक पुस्तक पर आधारित है, जिसको सिनेमाई शक्ल देने के लिए थोड़ा-बहुत बदला भी गया है.
रणवीर सिंह बाजीराव के किरदार में एकदम डूबे नज़र आए और उनका अच्छा साथ दिया प्रियंका चोपड़ा (काशीबाई) और दीपिका पादुकोण ने मस्तानी के किरदार में. मराठी न होने के बावजूद प्रियंका कहीं भी कमज़ोर नज़र नहीं लगीं. भाषा और हाव-भाव पर रणवीर और प्रियंका ने काफी मेहनत किया है. दीपिका कहीं-कहीं थोड़ी कमज़ोर नज़र आई हैं. और इंटरवल के बाद आपको फिल्म थोड़ी सी धीमी भी लगेगी. बावजूद इसके फिल्म दर्शकों को कहीं उबाती नहीं.
क्यों देखें–
फिल्म का हर पहलू बेहतरीन है. कहानी, संवाद,संगीत और कलाकारी कुछ भी मिस करने जैसा नहीं है.
क्यों न देखें–
अगर आपको मसाला फिल्में ही पसंद आती हैं तो शायद यह आपको अच्छी न लगे.