डॉ० कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk
सिनेमा ने जीवन के हर रंग को सहेजा है और जब जैसी स्थिति बनी है, उसे प्रस्तुत किया है और याद दिलाया है कि एकरसता के प्रभाव में भुला दिए गए, कई रंग, हमारे ही हैं। हास्य या कॉमेडी भी मानव सभ्यता की ऐतिहासिक और अभूतपूर्व प्रस्तुतियों का हिस्सा रहा है।
नाटकों में भी हास्य या कॉमेडी का महत्व रहा है। शेक्सपीयर से लेकर फ़्रेड कार्नो तक, यूरोप से लेकर अमरीका तक, पश्चिम में कॉमेडी का मंचन या फ़िल्माया जाना बहुत प्रभावकारी और प्रशंसनीय रहा है।
चार्ली चैपलिन कॉमेडी के पर्याय बन कर, पूरी दुनिया में छा गए और उनके बाद भी, “लॉरेल एंड हार्डी” और सिनेमा के पूर्णतः स्थापित हो चुके, आजकल के दौर में बेनीनी ने कॉमेडी को एक स्थान दिलाया है। एक और नाम भी है जो चार्ली चैपलिन के समय का ही है और जिसके अभिनय ने कभी चैपलिन ही जितना तो कभी उनसे ज़्यादा, दर्शकों को प्रभावित किया। ऐसा नहीं कि उस नाम को चार्ली जितनी प्रसिद्धि नहीं मिली, लेकिन इतिहास और जनता के नायक चुनने के अजीब पैमाने हैं, सो “कीटन” का नाम दिखा और चाहा ज़रूर गया, लेकिन समय के साथ धुंधला पड़ गया। जोसेफ़ फ़्रैंक कीटन या बस्टर कीटन एक महान कॉमेडियन थे।
चार्ली चैपलिन का जन्म 1889 में इंग्लैंड में हुआ और इसके 6 साल बाद बस्टर कीटन का जन्म 1895 में अमरीका में हुआ। दो अलग देशों में पैदा हुए, ये दो लोग, एक दूसरे से बिल्कुल अंजान, लगभग एक जैसी परिस्थिति का सामना करते हुए, विश्व सिनेमा में, कॉमेडी के हस्ताक्षर बन जाने वाले थे।
“चार्ली चैपलिन ने जहाँ, “स्लैपस्टिक कॉमेडी” को अपने आवारा अंदाज़ से सजाया, वहीं कीटन ने “वोडविल” विधा को अपने “डेडपैन”, चेहरे और कलाबाज़ी से नया आयाम दिया। प्रथम विश्व युद्ध के बाद दुनिया ने व्यवस्थित और सजावट भरी रचनात्मक प्रस्तुतियों को नकार दिया था। इसी कारण स्लैपस्टिक और वोडविल जैसी विधाएं प्रचलन में थी। साहित्य और चित्रकला में भी ये बदलाव दिख रहे थे। “
“स्लैपस्टिक कॉमेडी” में अभिनेता, अपनी ग़लतियों से किसी दूसरे किरदार से टकरा जाता था, उसकी नाक टकरा जाती थी, उसका मूंह केक में पड़ जाता था, दूसरे को चोट पहुंचाने के चक्कर में ख़ुद को ही चोट लगा लेता था, ऐसा “टॉम एंड जेरी” कार्टून में भी देखा जा सकता है। दूसरी ओर “वोडविल” में भी अभिनेता लगभग यही करता है, लेकिन उसका गिरना, उठना, टकराना अभ्यस्त एक्रोबैट की तरह होता है और कीटन इसमें पारंगत थे।
बहुत छोटी उम्र से कीटन अपने पिता “जो कीटन” और माता “मायरा कीटन” के साथ मंच पर जाने लगे थे। जो और बस्टर कलाबाज़ियां दिखाते थे और मायरा सैक्सोफ़ोन बजाती थीं। चैपलिन के माता-पिता भी कलाकार थे।
एक बार इनके पिता के मित्र ने इन्हें सीढ़ियों पर से बिना चोटिल हुए कई बार गिरते उठते देखा और उन्होंने ही, उस मौक़े पर पहली बार इन्हें “बस्टर” कहा। तब से आजीवन इसी नाम से ये जाने गए।
1920 से 1929 तक इन्होंने ज़बरदस्त काम किया और इनकी प्रसिद्धि, पूरी दुनिया में हुई। फिर इन्होंने “मेट्रो गोल्डविन मेयर (MGM)” के साथ अनुबंध किया। इतनी सफलता और प्रसिद्धि वे ठीक से संभाल ना पाए और इनका अपनी पत्नी से तलाक़ भी हो गया। कीटन बुरी तरह शराब की लत में पड़ गए। लेकिन 40 के दशक में ये फिर से चैपलिन जैसे महान अभिनेता के समकक्ष खड़े हो गए। इनकी फ़िल्में, ” शर्लक जूनियर”, “द जनरल” और “द कैमरामैन” आज भी महानतम फ़िल्मों में गिनी जाती हैं।
1999 में, “अमेरिकन फ़िल्म इंस्टिट्यूट” ने कीटन को अब तक के महानतम अभिनेताओं की सूची में शामिल किया। 1966 में कैलिफ़ोर्निया में इनका निधन हो गया।
जिसने भी कीटन को देखा है और उनके बारे में जाना है वे सब ज़रूर कहते हैं कि, “एक था कीटन! कभी चार्ली चैपलिन के जैसा तो कभी उनसे बेहतर।”
(लेखक जाने-माने साहित्यकार, स्तंभकार, व शिक्षाविद हैं.)