बिहार चुनाव: भाजपा पिछड़ रही है या अंदरखाने कुछ चल रहा है ? जानिए दस बड़ी बातें

अमित द्विवेदी | navpravah.com 

नई दिल्ली | देश में कहीं भी चुनाव हो भारतीय जनता पार्टी अपने अ​भियान को महीनों पहले ही शुरू कर देती है, लेकिन बिहार चुनाव में पार्टी की ओर से तैयारियां थोड़ी धीमी लग रहीं हैं। नंवबर में राज्य में चुनाव होने हैं, बिहार के ज्यादातर पार्टियों ने अपनी कमर कस ली है। इंडिया ब्लॉक की ओर से तेजस्वी और राहुल मतदाता अ​धि​कार रैली निकाल रहे हैं। 17 अगस्त को सासाराम से शुरू हुए इस रैली का समापन एक सितंबर को पटना के गांधी मैदान में होगा। राहुल की यह रैली उनके पुराने भारत जोड़ो यात्रा और भारत न्याय यात्रा की ही तरह है। कुछ राजनीतिक विश्लेषक इस यात्रा को सफल बोलते हैं और कुछ असफल। हालांकि राहुल का कहना है कि वो इस यात्रा के माध्यम से देश में हुए क​थित वोटचोरी और विशेष गहन पुनरीक्षण में हुए धांधली को जनता के सामने पेश करेंगे। उन्होंने कहा है कि वो बिहार में एक भी वोट चोरी नहीं होने देंगे।

भाजपा इस चुनावी अभियान में पीछे लग रही है, इसके कई कारण हैं
1. नए चेहरे, सीमित असर-
बिहार में हर पार्टी ने अपने चेहरे का एलान कर दिया है, भाजपा नीतीश कुमार के चेहरे पर चुनाव लड़ रही है। हालांकि पार्टी ने पिछले कई महीनों में नए चेहरों को प्रवेश दिया है। आनन्द मिश्रा, नागमणि जैसे नए चेहरों को पार्टी में जोड़ा तो गया है, लेकिन उनका जनाधार काफी कम है। भाजपा के पास अपना खुद का कोई नेता ना होना चिंता का विषय है, इसलिए भाजपा अन्य राज्यों की तरह इस चुनाव में अपना दमखम नहीं दिखा पा रही है।
2. सहयोगी दलों से टिकट बंटवारा तय नहीं-
राजग गठबंधन में अभी सीटों को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। सूत्रों की मानें तो चिराग पासवान भी इस बार विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं। वो पिछले साल के मुकाबले इस वर्ष ज्यादा सीटों पर अपने उम्मीदवारों को उतारना चाहते हैं। गठबंधन में शामिल ‘हम’ पार्टी भी पहले से ज्यादा सीटों पर अपना दावा ठोंकने की कोशिश में है। वहीं मुख्य पार्टी जनता दल और भाजपा में भी अनबन की स्थिति बनी हुई है। इस कारण से भी भाजपा अपना जोर नहीं लगा पा रही है।

3. विपक्ष की एकजुटता-

बिहार के चुनाव में इस बार राजग के मुकाबले इंडिया ब्लॉक ज्यादा मजबूत लग रही है। तेजस्वी और राहुल के नेतृत्व में बिहार की यह जोड़ी और उनके द्वारा निकाली जा रही मतदाता अधिकार रैली विपक्ष एकजुट दिख रहा है और यही एकजुटता भाजपा के लिए चुनौती बनते जा रहा है।

4. जनसुराज की चुनौती-

कभी प्रधानमंत्री मोदी के चुनावी रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर, आज उन्हीं की प्रार्टी के लिए मुसीबत बनते जा रहे हैं। बिहार में जनसुराज पार्टी की घोषणा करते हुए ही उन्होंने कहा था कि या तो वो पूरी तरह से चुनाव पलट देंगे या तो पिछड़ जाएंगे। अभी जिस तरह से वो चुनावी अभियान में जुटे हैं, उन्हें देखकर लग रहा है कि अभी चुनाव प्रचार में भाजपा उनकी पार्टी से काफी दूर है। राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो प्रशांत किशोर बिहार के युवाओं की पहली पसंद माने जा रहे हैं, उन्होंने युवाओं को रोजगार देने की बड़ी बात कही है, जिससे युवा जुड़े हुए भी लग रहे हैं। इस तरह से प्रशांत किशोर का उभरकर आना भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती माना जा रहा है। माना जा रहा है कि भाजपा के पास अभी प्रशांत के बराबर के नेता नहीं है, जिसके कारण वो चुनावी अभियान में पिछड़ते नजर आ रही है।

5. सीमांचल की चुनौती-

बिहार की जीत की लिए सीमांचल के बिना भाजपा की सरकार बननी मुश्किल है। पिछले चुनावों में अमित शाह ने बड़ी ही सूक्ष्म अंदाज में बांग्लादेशी घुसपैठ का मसला उठाया। आतंकवाद का मसला उठाया। इस क्रम में सीमांचल का दौरा भी कई बार किया। उनका सीमांचल मिशन 2015 में मिली शिकस्त के बाद ही शुरू हुआ। सितम्बर 2022 में तो किशनगंज और पूर्णिया में जनसभा भी की, लेकिन उन्हें उस तरह के परिणाम नहीं मिले। इस बार भाजपा इस क्षेत्र के लिए एक अलग योजना बना सकती है। भाजपा चाहती है कि सीमांचल क्षेत्र की सीटों पर जदयू चुनाव लड़े, ताकि मुस्लिम सीटों पर राजग की सरकार बन सके, इन्हीं सब योजनाओं को लेकर भाजपा में मंथन जारी है।

6. नीतीश कुमार की स्थिति-

नीतीश कुमार की साख अब पहले जैसे नहीं रही। उनकी राजनीतिक निष्ठा पासे की तरह पलटती रही, जिससे नुकसान हुआ है। वहीं उनके खराब स्वास्थ्य और सरकार की कार्यशैली के कारण उनके प्रति विश्वास में कमी आई है, लेकिन यह भी स्थिति नहीं आई कि भाजपा उनसे पल्ला झाड़कर अकेले चुनाव लड़ ले। फिलहाल भाजपा अभी आश्वस्त नहीं कि वह अकेले चुनाव लड़कर चुनाव जीत सकती है। इस हिसाब से लगता है कि भाजपा अगर अकेले चुनाव लड़ेगी, तो शायद भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी, लेकिन इतनी हैसियत नहीं है कि अकेले सरकार बना लें। ऐसे में नीतीश कुमार को चुनाव तक साथ रखना लाजमी है। इस कारण से भी भाजपा चुनाव प्रचार में पिछड़ती दिख रही है।

7. भाजपा का अपना चेहरा ना होना-
बिहार में हर दल का एक नेता राज्य स्तर पर है। कांग्रेस के पास कन्हैया कुमार जैसा नेता है, जो युवा होकर नेतृत्व कर सकता है। वहीं राजद के पास तेजस्वी यादव हैं, जो पूर्व में उपमुख्यमंत्री की कुर्सी भी संभाल चुके हैं। वहीं भाजपा इस मामले में शून्य दिखती है। उनके पास उस स्तर का नेता नहीं है, जो तेजस्वी यादव को टक्कर दे सके। उपमुख्यमंत्री के रूप में सम्राट चौधरी तो हैं लेकिन उनके पास वह क्षमता नहीं है , जो तेजस्वी के जनाधार को मात दे सके।
8. जदयू को खत्म करना चाहती है भाजपा-
भाजपा में हमेशा महत्वाकांक्षा रही है कि अपने दम पर उनकी सरकार बनें। बिहार में नीतीश कुमार भाजपा की जरूरत हैं, उनके बिना भाजपा चुनाव नहीं जीत सकती है। इस चुनाव में भी उनकी जरूरत पड़ेगी। दोनों ही इस रिश्ते से खुश नहीं हैं लेकिन इसे निभाया जा रहा है। साल 2010 में भी भाजपा की कार्यकारिणी के समय नरेंद्र मोदी को लेकर एक विवाद भी हो गया था। इसके कारण दोनों नेताओं का डिनर भी रद्द हो गया था। भाजपा का काडर अभी बिहार में उतना मजबूत नहीं है और न ही कोई ऐसा जन नेता उभरा जो पार्टी का संपूर्ण नेतृत्व संभाल सके। यही वजह है कि साल 2013 में जब नीतीश कुमार ने गठबंधन बदल राजद में गए और फिर भाजपा में आए तो भी भाजपा ने उनका स्वागत किया।
भाजपा के अभी दो उप मुख्यमंत्री और 21 मंत्री हैं, वहीं जेडीयू के 13 मंत्री हैं। पिछली बार जेडीयू की 43 सीट आई थी और भाजपा 74 सीट आई थी। यह अंतर बढ़ता जा रहा है और निश्चित रूप से भाजपा जदयू के स्पेस को कम करने की कोशिश कर रही है। भाजपा चाहती है कि उसका कोई नेता बिहार में बड़ा बनकर उभरे। इसको भी एक कारण भाजपा के प्रचार में पीछे रहने का माना जा रहा है।

9. एसआईआर और वोटचोरी का मुद्दा-

राहुल गांधी अपने यात्रा में भाजपा पर इन दोनों मुद्दे पर आरोप लगा रहे हैं। जब से उन्होंने आरोप लगाया तब से  भाजपा के अभियान पर फर्क पड़ा है। इस बार बिहार चुनाव से पहले सबसे ज़्यादा चर्चा एसआईआर की प्रक्रिया को लेकर हो रही है। विपक्ष का आरोप है कि इस प्रक्रिया के तहत लाखों वोटरों के नाम सूची से हटाए जा सकते हैं। कांग्रेस और आरजेडी का कहना है कि यह साजिश विशेष वर्गों—दलित, महादलित, आदिवासी और पिछड़े समुदायों- को चुनाव से दूर करने की है। भाजपा और चुनाव आयोग इस आरोप को सिरे से खारिज करते हैं। उनका कहना है कि एसआईआर प्रक्रिया हर राज्य में होती है और इसका मकसद केवल फर्जी वोटर हटाना और सूची को पारदर्शी बनाना है। आयोग ने यह भी कहा कि सभी दलों को समय रहते ड्राफ्ट वोटर लिस्ट देखने और सुधार करने का मौका दिया गया था, लेकिन कई दलों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। हालांकि इस विवाद ने विपक्ष को भाजपा पर सीधा हमला करने का मौका दे दिया है। राहुल गांधी ने इसे लोकतंत्र पर हमला बताते हुए अभियान को और धार दे दी है।

10. राहुल की मतदाता अधिकार रैली के मुकाबले कमजोर अभियान करना-

इंडिया गठबंधन ने राहुल गांधी की अगुवाई में 1300 किमी लंबी ‘वोटर अधिकार यात्रा’ शुरू की है। इस यात्रा का मकसद केवल संगठन मज़बूत करना नहीं है, बल्कि यह संदेश देना है कि लोकतंत्र को बचाना ज़रूरी है और किसी भी हाल में वोटर लिस्ट से छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जाएगी। इस यात्रा ने विपक्ष को एक साझा मंच दिया है। तेजस्वी यादव खुले तौर पर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री का चेहरा बताते हुए जनता को यह संकेत दे रहे हैं कि बिहार में महागठबंधन केंद्र की राजनीति को प्रभावित करने का दम रखता है। कन्हैया कुमार जैसे युवा नेता भी खुलकर सामने आए हैं और चुनाव आयोग की प्रक्रियाओं पर सवाल उठा रहे हैं। यात्रा में जुट रही भीड़ और सोशल मीडिया पर इसकी गूँज ने भाजपा को बैकफुट पर ला दिया है। विपक्ष यह दिखाने की कोशिश कर रहा है कि वह न केवल सत्ता विरोधी लहर को भुनाना चाहता है, बल्कि एक नया राजनीतिक एजेंडा भी स्थापित करना चाहता है। भाजपा के पास फिलहाल इस यात्रा का कोई विकल्प नहीं है इसलिए वह चुनाव प्रचार में पिछड़ती दिख रही है।

बिहार विधानसभा चुनावों की तैयारी में सभी दल अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं। विपक्ष ने राहुल गांधी की यात्रा और एसआईआर विवाद को चुनावी हथियार बना लिया है। राजग भी पीछे नहीं है, लेकिन सीट बंटवारे की गुत्थी, नए चेहरों का सीमित असर और विपक्ष की एकजुटता ने भाजपा को “थोड़ा पीछे” खड़ा कर दिया है।  हालांकि राजनीति का खेल अंतिम हफ्तों में बदलता है। अगर भाजपा और राजग सही समय पर अपनी रणनीतियों को तेज कर दें और केंद्र की योजनाओं का प्रचार कर गाँव-गाँव तक पहुँचा दें, तो स्थिति पलट भी सकती है। लेकिन फिलहाल के हालात में यह कहना गलत नहीं होगा कि बिहार का चुनाव इस बार बेहद रोचक, अप्रत्याशित और बहुस्तरीय होने जा रहा है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.