मुंबई. अल निकाह मिन सुन्नती, फमन रगिबा मिनसुन्नति…..निकाह का खुतबा पढ़ते हुए महिला काजी हाकिमा खातून ने इजाब कुबूल करवाया। मौका था हाल ही में मुंबई के शेमॉन अहमद और कोलकाता की माया राचेल के निकाह का। जैसे ही शेमॉन ने कुबूल है, कुबूल है, कुबूल है बोला तो अगले ही पल उनका नाम इतिहास में दर्ज हो गया।
प्रगतिशील तबके ने बेशक इसका स्वागत किया, लेकिन यह एक भी मुस्लिम तंजीम या संगठन को स्वीकार न हुआ। इस वक्त देश में 16 महिला काज़ी हैं। इन्हें दारूल उलूम ए निसवां की ओर से दो साल की ट्रेनिंग दी गई है। लेकिन 16 में से निकाह केवल एक महिला काजी हाकिमा खातून ने ही करवाया है।
वह कहती हैं- जब कुरान-हदीस में औरतों द्वारा निकाह पढ़ने की मनाही नहीं है तो मर्द काजियों को क्या दिक्कत है। निकाह में कुछ शब्द ही तो पढ़ने हैं, काजी ऐसा क्या पढ़ता है जो औरतें नहीं पढ़ सकती हैं। इस आंदोलन की मुखिया जकिया सोमन के अनुसार, उन्होंने अमेरिका की इमाम और काजी डॉ. अमीना वदूद से प्रभावित होकर भारत में इसकी जंग शुरू की।
दुल्हन की जिद थी महिला काजी पढ़े निकाह
सोमन के अनुसार, पीढ़ियों से, ‘जमाने से मर्द काजी चले आ रहे हैं, हमने उनके वजूद को चुनौती दी है, जो कि आसान काम नहीं है। बता दें कि ‘शेमॉन की बीवी माया ब्रिटिश हैं। उसने महिला काजियों पर अखबार में एक स्टोरी पढ़ी थी तो उसकी जिद थी कि वह महिला काजी से ही निकाह पढ़वाएगी। ताकि लोग जान सकें कि महिलाएं भी निकाह पढ़वा सकती हैं।