मानसून सत्र: 130वें संविधानिक संशोधन के बारे में ‘अ से ज्ञ’ तक जाने! आखिर क्यों बरपा है हंगामा?

अमित द्विवेदी | navpravah.com 

नई दिल्ली| बुधवार को संसद का एक अलग ही रूप देखने को मिला। विपक्षी सांसदों ने गृह मंत्री अमित शाह के ऊपर पर्चे फाड़ कर फेंके। यह घटना तब हुई जब अमित शाह संविधान के 130वें संशोधन के लिए लोकसभा में विधेयकों को पेश कर रहे थे। इस विधेयक के अनुसार, अब अगर प्रधानमंत्री, किसी राज्य के मुख्यमंत्री या मंत्री किसी गंभीर मामले में जिसकी सजा पांच साल या उससे अधिक की हो, उसके तहत 30 दिन या उससे अधिक दिनों तक कारावास में रहते हैं, तो उनके पास तीन विकल्प होंगे

  1. राज्यपाल मुख्यमंत्री के सलाह पर उन्हें पदमुक्त कर सकते हैं।
  2.  अगर मुख्यमंत्री सलाह देने में असफल हो जाते हैं तो मंत्री 31वें दिन स्वत: पदमुक्त हो जाएंगे।
  3. आरोप लगने पर वो खुद पद से इस्तीफा दे दे।

प्रधानमंत्री और अन्य केंद्रीय मंत्रियों के लिए भी नियम इसी तरह लागू होता है। अगर वे भी किसी गंभीर आरोप में लगातार 30 दिन या उससे अधिक दिनों तक कारावास में रहते हैं, तो उन्हें इस्तीफा देना होगा या 31वें दिन वो खुद पद के लिए अयोग्य साबित हो जाएंगे। इसी तरह से यह नियम मुख्यमंत्री पर भी लागू होगा।

इस एक विधेयक के अलावा गृह मंत्री ने दो और विधेयकों को पेश किया-

जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2025

यह विधेयक 2019 के अधिनियम की कमी को पूरा करता है। 2019 वाली अधिनियम के अनुसार, जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री को आपराधिक आरोपों पर गिरफ्तार करने का कानून नहीं है। इस अधिनियम के तहत अब जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री को गिरफ्तार किया जा सकता है।

केंद्र शासित प्रदेश (संशोधन) विधेयक, 2025

संविधान (130वां संशोधन) विधेयक के नियमों को केंद्र शासित प्रदेशों, जैसे- दिल्ली, पुदुचेरी, आदि में लागू करने के लिए सरकार यह संशोधन विधेयक लेकर आई है। इसके तहत अगर केंद्र शासित प्रदेश का कोई मंत्री ऐसे गंभीर अपराध के मामले में गिरफ्तार होता है, जिसमें सजा पांच साल या इससे ज्यादा हो सकती है। ऐसे मंत्री को अगर कम से कम 30 दिन के लिए गिरफ्तार या हिरासत में रखा जाता है तो उसे मुख्यमंत्री की सलाह पर 31वें दिन तक उपराज्यपाल द्वारा पद से हटाया जा सकता है।

हालांकि यदि आरोप सिद्ध नहीं होते हैं, तो नेता वापस उसी पद आकर काम कर सकते हैं।

अब जब यह विधेयक लोकसभा में पेश हुआ तो विपक्ष ने विरोध करना शुरू कर दिया। विपक्ष ने लोकसभा में हंगामा किया और विधेयक के पर्चे फाड़कर अमित शाह के ऊपर फेंकने लगे और कुछ विपक्षी सांसद तो अमित शाह के पास आकर शोर करने लगे। प्रदर्शन की शुरूआत त्रिणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी ने की, उसके बाद विपक्ष के सांसद सामने आ गए। बीच बचाव में भाजपा सांसद भी आ गए वो विपक्षी सांसदों को दूर करते रहें। हंगामा इतना बरपा कि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सदन को स्थगित कर दिया।

हालांकि इन विधयकों को 34 सदस्यीय संयुक्त संसदीय समिति के पास भेज दिया गया है जो जांच करके संसद के अगले सत्र से पहले रिपोर्ट सौंपेंगी।

विपक्ष इस बिल का खुलकर विरोध कर रहा है, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे सुपर आपातकाल का दर्जा दे दिया है। एआईएमआईएम के मुखिया असदुद्दीन औवैसी ने इसे शक्तियों के पृथ्थकरण के सिद्धांत का उल्लघंन बताया है। उन्होंने कहा कि यह अधिनियम एजेेंसियों को न्यायधीश बना देंगी जिससे वो जल्लाद हो जाएंगी। ओवैसी ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह भारत को पुलिस राज्य बनाना चाहती हैं।

कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि यह अधिनियम संविधान के मूल ढ़ांचे को पूरी तरह से नष्ट करता है। ये तीनों विधेयक भारत के संविधान के मूलभूत स्वरूप के विरुद्ध हैं। भारत का संविधान कहता है कि आप तब तक बेगुनाह हैं जब तक आपका गुनाह साबित नहीं होता। आप किसी जांच अधिकारी या एसएचओ को हमारे प्रधानमंत्री का बॉस नहीं बना सकते हैं।

सपा सांसद राम गोपाल यादव ने कहा कि अगर किसी पर कोई आरोप न भी हो, तो भी आरोप लगाए जा सकते हैं और इस सरकार में लगाए भी जा रहे हैं। लोगों को झूठे और गंभीर आरोपों में जेल में डाला जा रहा है। जिन राज्यों में भाजपा के मुख्यमंत्री या मंत्री नहीं हैं, उन्हें सत्ता से हटाने का एक और तरीका इस सरकार द्वारा लाया जा रहा है।

आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष और सांसद चंद्रशेखर आज़ाद ने कहा, सरकार के पुराने बिलों में जनता का हित कम और अपने विरोधियों को नुकसान पहुंचाने की मंशा ज्यादा दिखाई देती है… मैं स्पीकर साहब से मांग करूंगा कि हमें जेपीसी का हिस्सा बनाया जाए।

विरोध बढ़ता देख भाजपा सांसदो ने मोर्चा संभाला। पटना साहिब से सांसद रविशंकर प्रसाद ने कहा कि विपक्ष को इस बिल से क्या दिक्क्त है? केजरीवाल जैसे लोग जेल जाते हैं और वहीं से सरकार चलाते हैं, यह बिल उन जैसे लोगों का ही इलाज है। भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर ने कहा कि विपक्ष विरोध किस बात का कर रहा है, नैतिकता या भ्रष्टाचार का। भ्रष्टाचार के खिलाफ और नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देने की बात और उसके बाद कानून बनाने की बात करते हैं तो विपक्ष इसका विरोध क्यों करता है? आज लड़ाई साफ है कौन भ्रष्टाचारियों के साथ है-वो विपक्ष है और कौन भ्रष्टाचार मुक्त है वो भाजपा है और ये विरोध और इस तरह की हरकतें जो संसद में हुईं उसने लोकतंत्र को शर्मसार किया और ये भी दिखा दिया कि विपक्ष भ्रष्टाचार के साथ खड़ा है और भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए खड़ा है और भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार है।

यह तो था बुधवार का घटनाक्रम। अब हम समझेंगे कि अभी तक इन आरोपों के बाद क्या प्रक्रिया होती है। अब तक किन चुनिंदा नेताओं को पद पर रहते हुए कारावास में जाना पड़ा।

जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के अंतर्गत, यदि कोई सांसद या विधायक किसी गंभीर मामले में दो साल या उससे अधिक की सजा पाता है तो उसकी सदस्यता स्वत: ही रद्द हो जाएगी और अगर मामला भ्रष्टाचार, मादक पदार्थों की तस्करी जैसे मामलों में सजा पाते हैं तो सजा की अवधि देखें बिना ही उसे पद से हटाया जा सकता है।

वे हालिया मामले जिनमें जेल जा चुके हैं मुख्यमंत्री

  1. बीते दिनों दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को आबकारी मामले के घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। वो जेल तो गए लेकिन उन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं छोड़ी थी। वो लगभग छह महीने जेल में थे और वहीं से दिल्ली सरकार की बागडोर संभाली थी। हालांकि जब वह जेल से बाहर आएं तब उन्होने इस्तीफा दिया और आप पार्टी की नेता आतिशी को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया।

इसके अलावा 2023 में तमिलनाडु की द्रमुक सरकार में मंत्री वी. सेंथिल बालाजी एक कथित धनशोधन मामले में गिरफ्तार हुए थे। इसके बाद राज्यपाल आरएन रवि ने उन्हें पद से हटा दिया था। हालांकि, जब सुप्रीम कोर्ट की तरफ से बालाजी को जमानत मिली थी, तब तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने उन्हें फिर से पद सौंप दिया। इसे लेकर बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने चिंता जाहिर की थी और तमिलनाडु सरकार ने बालाजी को मंत्री परिषद से हटा दिया।

ऐसा ही एक मामला झाारखंड का है, जहां राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को कथित भूमि घोटाले मामले में गिरफ्तार कर लिया जाता है। हालांकि उन्होंने जेल जाने से पहले उन्हीं के पार्टी के नेता चंपई सोरेन को कमान देकर इस्तीफा दे दिया था। हालांकि जब वो कारावास से बाहर आए तो उन्होंने फिर से राज्य की कमान संभाल ली।

संशोधन की क्या है प्रक्रिया?

केंद्र सरकार इसे संविधान के अनुच्छेद 75 (केंद्र के लिए), अनुच्छेद 164 (राज्य के लिए) और अनुच्छेद 239 (कक) (केंद्र शासित प्रदेशों के लिए) के तहत संशोधित करना चाहती है। हालांकि यह संविधान संशोधन करना सरकार के लिए इतना आसान नहीं होगा। पहले लोकसभा में सरकार को 272+ सांसद और उपस्थित सदस्यों का 2/3 समर्थन चाहिए। फिर राज्यसभा में 123+ सांसद और उपस्थित सदस्यों का 2/3 समर्थन चाहिए। उसके बाद कम से कम 15 राज्यों विधानसभाओं से से मंजूरी मिलनी आवश्यक हैं और अंत में राष्ट्रपति औपचारिक स्वीकृति देंगे।

बाद में इस कानून को शीर्ष अदालत में चुनौती दी जा सकती है, जिसका सुप्रीम कोर्ट समीक्षा कर सकती है।

पक्ष और विपक्ष के दावों की समीक्षा

इस विधेयक के आने के बाद से दोनों तरफ के नेता अपना-अपना विचार दे रहे हैं। विपक्ष कह रहा है कि इस विधेयक के आने से संविधान के मूल ढ़ांचे का हनन होगा वहीं दूसरी तरफ सरकार कह रही कि इस कानून के आने से राजनीतिक शुचिता बनी रहेगी। विपक्ष कह रहा है कि अरविंद केजरीवाल का तो आरोप अभी सिद्ध नहीं हुआ है तो वो जेल से सरकार क्यों नहीं चला सकते? विपक्ष ने पलटवार करते हुए कहा कि आप नेता और दिल्ली सरकार में मंत्री सतेंद्र जैन को बाद में बाइज्जत बरी कर दिया गया, जबकि इससे उनकी व्यक्तिगत और राजनीतिक छवि धूमिल हुई है। विपक्ष का आरोप है कि इस कानून के आने के बाद से केंद्र सरकार किसी पर भी झूठे आरोप लगाकर जेल में डाल देगी जिससे उसका राजनीतिक करियर दांव पर भी लग सकता है।

वहीं सरकार का कहना है कि इससे राजनीतिक शुचिता आएगी। जो अनैतिक लोग हैं वो राजनीति से दूर होंगे और अच्छे और स्वच्छ लोग रातनीति में हिस्सा ले सकेंगे। सरकार ने कहा कि अगर आप पर लगे आरोप गलत साबित होते हैं तो आप फिर से राजनीति में आ सकते और उसी पद पर बैठ सकते हैं। सरकार ने कहा कि विपक्ष के लोग डर क्यों रहे हैं? अगर वो इतने ही स्वच्छ हैं तो फिर इस कानून से डरना नहीं चाहिए।

हालांकि दोनों तरफ की कुछ कुछ बातें सही है। इस देश में किसी पर भी आरोप लगाना बहुत आसान है और न्यायपालिका पर काम का बोझ इतना है कि वो एक महीने में तो कभी कभी दूसरी सुनवाई की तारीख भी नहीं दे सकती। इसलिए किसी भी नेता का एक महीने से अधिक समय तक कारावास में रहना बहुत कठिन काम नहीं हो सकता। सरकार को इस प्रावधान के समय सीमा को लेकर एक बार फिर से विचार करने की आवश्यकता है क्योंकि इस कानून से किसी की छवि बेहद धूमिल हो सकती है।

वहीं कुछ चीजें तो केवल विरोध का हिस्सा लग रही है। सरकार किसी की भी हो विपक्ष का काम केवल विरोध करना है, इस बार यह भी कुछ उसी तरह का हिस्सा लग रहा है। अब देखना यह है कि संयुक्त संसदीय समिति जिसमें दोनों तरफ के लोग हैं वो किस निष्कर्ष पर आती है।

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