…और प्यासे ही रह जाना है!

सुलतानपुर- पानी के लिए तड़पती माँ के साथ 8 वर्ष के बेटे का परिसर में चारों तरफ घूमना। निराश हो फिर पेड़ के छांव में छोटी सी दीवार का सहारा लेना और आस पास खड़े लोगों से पूछना की यहां पानी मिलेगा क्या? घर से पानी लेकर चली थी और बोतल खाली हो गयी। तभी माँ और बेटे की प्यास की तड़प देख बगल खड़ा एक युवक दौड़कर गेट के बाहर जाता है भीड़ भाड़ से सनी हुई सड़क को कठिनाई से पार करता है और पानी खरीद कर ले आता है।

ये हाल सुलतानपुर जिले के प्रधान डाकघर का है। जहां वाटर कूलर लगने का स्थान तो बना है पर वहां ऐसे कूलर रखे है जो हवा देते देते खराब हो चुके हैं। परिसर में लगा एक मात्र चापाकल सूख चुका है। फर्स्ट फ्लोर पर लगा वाटर कूलर की हालत देख लगता है कि वो चलना ही भूल चुका होगा। डाककर्मी भी खरीद कर पानी पीते है। स्किन झुलसा देने वाली भीषण गर्मी में भी निरंकुश प्रशासन और बड़े बड़े दावे करने वाले जनप्रतिनिधियों का यही हाल है।

लोग इस भीषण गर्मी में सचल जल प्याऊ चलाते है ताकि लोगों की प्यास बुझाई जा सके। जगह जगह सर्बत वितरण कार्यक्रम का आयोजन करते हैं। वही दूसरी ओर कुर्सी पर बैठे लोग अपने उपभोक्ताओं की प्यास की तड़प नही देख पाते हैं। और बड़े वादे करने वाले जनप्रतिनिधि तो इस तरह की बात सोचते ही नही है।

जिस शहर में लोगों को जीने के अधिकार से जुड़े प्यास बुझाने के लिए सरकारी दफ्तरों में भी खरीद कर ही पानी पीना हो तो प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को जनता की कितनी चिंता है अंदाजा लगाया जा सकता है।
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मिशन प्रधान डाकघर में जल समस्या को दूर करने की शिकायत जिला डाक अधीक्षक से पत्र लिखकर की है और जल्द से जल्द इसे दूर करने की मांग की है।

मिशन के चेयरमैन कौशलेंद्र इंदिरा शुक्ल का कहना है कि मेरे ये समझ नही आता कि नौकरशाह और राजनीतिज्ञ इतने निरंकुश कैसे हो जाते हैं कि प्यास की तड़प नही देख पाते हैं। मानवधर्म में ऐसी गिरावट निम्नतम है।

फोटो- फाइल

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