‘मुल्क’ की यादों में हमेशा रहेंगे सेल्युलॉईड की दुनिया के ‘ऋषि’

डॉ०चितरंजन कुमार | Navpravah Desk

न जाने किसने उन्हें इतना प्यारा नाम दिया था ‘ऋषि’। आगे चल कर इस ‘ऋषि’ ने ही लाखों युवाओं को प्रेम के मंत्र और ‘प्रेमरोग’ दिए। निःसंदेह ऋषि कपूर एक योग्य पिता की योग्य संतान थे। वे सच में मुँह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए थे। मात्र तीन साल की उम्र में ही वे फिल्मी पर्दे पर ठुमकते हुए नजर आए थे। गाने के बोल थे ‘प्यार हुआ ,इकरार हुआ है, फिर क्यों प्यार से डरता है दिल ‘। फ़िल्म श्री 420 के इस गाने में स्वयं उनके पिता राजकपूर साहब थे। नन्हें ऋषि को शायद यहीं से प्यार का गुरुमंत्र मिला जो उन्हें ‘प्रेम ग्रंथ’ तक ले गया। वे रंग रूप में यूरोपीय देवताओं की तरह लगने वाले अपने पिता राजकपूर से किसी भी तरह कमतर नहीं थे। बस उन्हें राजकपूर साहब की तरह भूरी भूरी जादुई आँखें नहीं मिली थी। कल इरफान और आज ऋषि कपूर। ऊपरवाले, तारें कम हो गए हैं क्या आसमां में, जो जमीन से सितारे उठा रहे हो।

70 और 80 के दशक में जहां राजेश खन्ना, देव आनंद साहब और अमिताभ बच्चन जैसे दिग्गज कलाकार हों वहाँ किसी के लिए अपनी मुकम्मल पहचान बनाना पहाड़ के सीने पर हथौड़ा मारने जैसा रहा होगा। इन त्रिदेवों की छाया से निकलकर ऋषि कपूर ने अपना एक अलग मुकाम बनाया। ऋषि कपूर ने मुंबईया फिल्म यानी बॉलीवुड को विक्टोरियन युग की नैतिकता से बाहर निकाल दिया। उनसे पहले देवानंद और राजेश खन्ना नायिकाओं के साथ इशारे इशारे में प्यार करते थे। पर्दे पर दो फूलों को टकराकर चुंबन का दृश्य फिल्मा लिया जाता था। रोटी दाल में फंसे हुए आम आदमी की बात तो छोड़िए यहाँ तक की ‘मुगले आज़म’ का शाहजादा सलीम भी अनारकली से लुक छिप कर ही प्यार कर रहा था। तब के दौर में ‘तीसरी कसम’ का हिरामन गाड़ीवान अपने साथ बैठी नौटंकी वाली बाई की गुदगुदी पीठ पर महसूस तो कर रहा था, पर खुल कर बोल नहीं पा रहा था। प्रेम की अभिव्यक्ति उसके लिए गूंगे का गुड़ ही था। बहुत बोल्ड समझे जाने वाले शम्मी कपूर भी फ़िल्म ‘कश्मीर की कली’ में शर्मिला टैगोर से बस इतना ही पूछ सके थे ‘इशारों इशारों में दिल लेने वाले, बता ये हुनर तूने सीखा कहाँ से’। तब राजेश खन्ना की नायिका डर के मारे बस यही कह पाती थी कि ‘शायद मेरी शादी का ख्याल दिल में आया है, इसीलिए मम्मी ने मेरी तुझे चाय पर बुलाया है।’ ‘लव’ को ‘अरेंज मैरिज’ में बदलने वाली यह नई तकनीक राजेश खन्ना ले तो आये थे, पर खुल कर कहने की हिम्मत अभी भी बॉलीवुड में उतनी नहीं थी। बॉलीवुड अभी भी ‘इंसान के लिए इशारा काफी होता है’ जैसे मुहावरों की धुंध में लिपटा था। बहुत बाद में भी नायिका के पूछने पर जैकी श्रॉफ शर्म से इतना ही कह सके थे ‘तेरा नाम लिया, तुझे याद किया’। पर साल 1973 में आई फ़िल्म बॉबी ने सारे मयार बदल दिए। इस बार पर्दे पर थे ऋषि कपूर, और पर्दे के पीछे थे राजकपूर साहब। आज शोमैन नेपथ्य में था और ‘प्यार से फिर क्यों डरता है दिल’ की बोल पर ठुमकने वाला बच्चा युवा होकर परदे पर था। लाइट और कैमरे पर पिता के सधे हाथ, एक्शन में पुत्र का बेफ़िक्र बाँकपन। परदे पर यह पिता पुत्र की अद्भुत जुगलबंदी थी। फ़िल्म में संगीत था लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का, फिर राग मालकौश से कम क्या ही होता। बॉबी में ऋषि कपूर ने नायिका का हाथ पकड़कर पहली बार साफ-साफ कहा “हम तुम एक कमरे में बंद हों और चाभी खो जाए’ यह नायक का स्पष्ट प्रेम निवेदन था। नायिका ने भी पलट कर जबाब दिया “तेरे नैनों की भूल भुलैया में बॉबी खो जाए”। इस बार हिरामन गाड़ीवान ने जैसे साफ साफ कहने का मन बना लिया था। कई बार मुझे लगता है राजकपूर साहब असल जीवन में नर्गिस से जो न कह सकें, उसे ऋषि कपूर और डिंपल कपाड़िया से कहलवा दिया।

“निर्देशक क्या नहीं कर सकता ? फिर अवचेतन मन की गुत्थी कौन सुलझा सका है? 1973 की ‘बॉबी’ बता रही थी कि अब माता-पिता के संयम भरे उपदेश और निगरानी वाले घेरे से युवक-युवती निकलना चाहते हैं और अब वे अपने जीवन साथी का फैसला खुद करेंगे। इस दौर में पर्दे पर वैसे बाप भी आ चुके थे जो नायक के मुंह पर 10 लाख का चेक फेंक कर मारते थे और चिल्लाते थे ‘दफा हो जा मेरी बेटी की जिंदगी से’। ‘बॉबी’ फ़िल्म से तो इंदिरा गाँधी, आपातकाल, जय प्रकाश नारायण तक के किस्से जुड़े हैं। रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब ‘इंडिया: आफ़्टर गाँधी’ में इसपर विस्तार से लिखा है। वह किस्सा फिर कभी।”

ऋषि कपूर ने न सिर्फ फिल्मों में बल्कि असल जीवन में भी अपनी प्रेमिका का हाथ थामे रखा। उन्होंने ‘रील लाइफ’ में नीतू सिंह के साथ रोमांस तो किया ही, ‘रियल लाइफ’ में उन्हें ही जीवनसाथी बनाया। ऋषि कपूर अपने प्यार भरे अफसाने को किसी खूबसूरत मोड़ पर छोड़ कर अलग नहीं हुए बल्कि उसे अंजाम तक ले कर गए । उन्होंने सफर में अपने हमसफर को नहीं छोड़ा। ऋषि कपूर ने जब यह कहा कि ‘खुल्लमखुल्ला प्यार करेंगे हम दोनों, इस दुनिया से नहीं डरेंगे हम दोनों’ तो जैसे उन्होंने लाखों युवा कंठों को स्वर दे दिया। इस गाने में युवाओं के लिए जैसे एक मंत्र भी छिपा था ‘जो होगा देखा जाएगा’।

फ़िल्म “बॉबी” में ऋषि कपूर (PC-Shemaroo)

जब गंगा किनारे वाले अमिताभ बच्चन मुंह में बनारसी पान घुलाकर कई मुल्कों की पुलिस को चकमा दे रहे थे येन उसी वक्त ऋषि कपूर नायिका की जुल्फों में खोए हुए थे। वे हौले हौले नायिकाओं से पूछ रहे थे ‘सागर जैसी आंखों वाली ये तो बता तेरा नाम है क्या ‘। ऋषि कपूर और मिथुन चक्रवर्ती ने बॉलीवुड को पहली बार खुलकर नाचना और गाना सिखाया। दिलीप कुमार, संजीव कुमार, राजेश खन्ना जैसे नायक बहुत हुआ तो दो चार ठुमके लगा लेते थे। मिथुन चक्रवर्ती ने ही पहली बार ऐलान किया ‘आई एम ए डिस्को डांसर’। ठीक ऐसे ही ऋषि कपूर शाहरुख खान की ‘मोहब्बतें’ से 25 साल पहले पर्दे पर वायलिन लेकर आ चुके थे और अपनी महबूबा से साफ लफ्जों में कह रहे थे ‘पहले तो मैं शायर था आशिक बनाया आपने’। कई लोग कहते हैं कि ऋषि कपूर बस एक लोकप्रिय सितारा थे। इस देश में लोकप्रिय होना और लोकप्रियता बनाए रखना भी कम कठिन नहीं है। ‘कभी कभी’, ‘अमर अकबर एंथनी’ और ‘चाँदनी’ जैसी फिल्मों ने ऋषि को कुछ साल तक बॉलीवुड का देवता बना दिया ।

मुझे ऋषि कपूर की साफगोई भी बेहद पसंद थी। वे बेपरवाह थे और खुल कर बोलते थे। मुझे याद आता है कि जनवरी 2017 में उनकी ऑटोबायोग्राफी ‘खुल्लम खुल्ला- ऋषि कपूर अनसेंसर्ड’ को दिल्ली के ताज होटल में लांच किया गया था। तब मैं दिल्ली में ही था और जेएनयू से पीएचडी कर रहा था। अगले दिन सारे अखबारों के पन्ने इस खबर से भरे पड़े थे। इस मौके पर ऋषि कपूर ने कई बड़े खुलासे किए थे। ऋषि ने अपनी ऑटोबायोग्राफी मीना अय्यर के साथ मिल कर लिखी थी । जिसके नाम से ही यह पता चलता है कि इस किताब में ऐसे कई सारें खुलासे हैं जो पहले किसी को पता नहीं होंगे। एक ऐसा ही खुलासा कर उन्होंने बताया था कि ‘बॉबी’ फिल्म में बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड पाने के लिए उन्होंने 30 हजार रुपये रिश्वत दिए थे। इस क़िताब में ऋषि कपूर ने अंडरवर्ल्ड के डॉन दाऊद इब्राहिम से अपनी मुलाकात को लेकर भी कई रोचक बातें साझा की हैं। वे चाहते तो इन प्रसंगों से बच सकते थे।वे न बताते तो किसी को क्या पता चलता। पर शायद वे अपनी आत्मा पर कोई बोझ लेकर विदा होना नहीं चाहते थे। या शायद उन्होंने रूसो की कालजयी आत्मकथा पढ़ रखी थी। यह ‘मुल्क’ आपको याद रखेगा।

अलविदा ऋषि कपूर साहब….

“बला की चमक उसके चेहरे पे थी,
मुझे क्या ख़बर थी कि मर जाएगा। “

(लेखक, इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर, कार्यरत हैं।)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.