नेपोटिज्म चांस दिला सकता है, काम नहीं -ज़रीन खान

ज़रीन खान से खास बातचीत

पारुल पाण्डेय । Navpravah.com

विक्रम भट्ट के डायरेक्शन में बनीं फिल्म 1921, 12 जनवरी को रिलीज़ होनेवाली है। 1920 की हॉरर सीरीज की यह चौथी फिल्म है। इस फिल्म में ज़रीन खान, करण कुंद्रा अहम भूमिका में हैं। फिल्म 1920 को लेकर ज़रीन खान से लम्बी बातचीत हुई। ज़रीन से हुई लम्बी बातचीत के कुछ प्रमुख अंश प्रस्तुत हैं, 

इस फिल्म में आपका रोल कितना अलग है?

यह रोल बहुत ज्यादा अलग है, फिल्म 1921वीं सदी के इर्द गिर्द घूमती है। जहाँ इस सदी से सब कुछ अलग है, वहीं उस दौर में सब कुछ बहुत सिंपल हुआ करता था। उस वक़्त जीवन बड़ा सिंपल हुआ करता था। मैंने इस फिल्म में रोज़ का किरदार निभाया है, जो एक घोस्ट विस्परर है। वह रूहों से बात कर सकती है, उन्हें देख सकती है और उनकी बात लोगों तक पंहुचा सकती है। ऐसा रोल मैंने पहले कभी नहीं निभाया है, मेरे लिए यह एक नया अनुभव है।

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सलमान के साथ वीर फिल्म से आपकी बॉलीवुड में एंट्री कैसी रही? क्या बड़े बजट की फिल्म्स ही हमेशा हिट होती हैं? 

इंडस्ट्री में पहली बार कदम रखने के बाद भी मुझे वीर फिल्म में एक अहम रोल दिया गया था। यह मेरा ड्रीम डेब्यू रहा सलमान खान के साथ। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मुझे सलमान के साथ में लीड फिल्म मिलेगी और जहाँ तक छोटे बजट के फिल्मों की बात है, तो कोई फिल्म छोटी-बड़ी नहीं होती। कभी-कभी छोटे बजट की फिल्म भी बड़ी होती है। ‘ट्यूबलाईट’ में सलमान के होने के बावजूद भी यह फिल्म हिट नहीं हो पाई। आज के दौर में कोई फिल्म छोटी-बड़ी नहीं होती। यह केवल डायरेक्टर के विजन, फिल्म की स्टोरी और आपके किरदार पर निर्भर करता है।

आपको लगता है कि नए लोगों को नेपोटिज्म से बड़ा नुकसान होता है? नए कलाकार आसानी से टारगेट बन जाते हैं? 

आप किसी का टारगेट बनते हैं या नहीं बनते हो, यह आप पर निर्भर करता है। अगर आप में हिम्मत है और आप खुद के लिए उठकर बोल सकते हैं, तो मुझे नहीं लगता कि कोई आपको परेशान कर सकता है। नेपोटिज्म पर मेरी यह राय है कि जैसे विक्रम सर ने अपनी बेटी को पहली बार डायरेक्टर के तौर पर डेब्यू करते वक्त उनके लिए एक लेटर लिखा था, जिसमें उन्होंने लिखा था कि नेपोटिज्म तुम्हे केवल एक चांस दिला सकता है, लेकिन जीत केवल तुम्हारे अन्दर का हुनर ही दिला पाएगा।

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भारत और विदेशो में बनने वाली हॉरर फिल्मों में क्या अंतर होता है? क्या हॉरर फिल्म में गाना जोड़ देने से उसका रिदम टूट जाता है? 

हॉरर फिल्मों को भारत में सही दिशा में आगे नहीं बढाया गया। बहुत कम फिल्मेकर्स हैं, जो हॉरर जॉनर पर काम करते हैं। कई बार हॉरर, लोगों के लिए कॉमेडी बनाने का रिस्क नहीं लेते। हमारी नई पीढ़ी आजकल कूल और अनकूल वाले चक्कर में फंसी है। उन्हें हॉलीवुड की फिल्म कोंज्युरिंग या एनाबेल देखना बहुत पसंद है, लेकिन वहीं हॉरर हिंदी में हो तो बुलशिट हो जाता है। भारतीयों को इंपोर्टेड चीजें ही पसंद आती हैं। यदि हॉरर फिल्म को सही तरीके से नहीं बनाया गया तो यह कॉमेडी हो जाती है, इसलिए इस तरह की फिल्म्स बनाने में रिस्क बढ़ जाता है।

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वजन को लेकर आप पहले भी चर्चा में रही हैं, इस पर अब आपका क्या कहना है? 

मै सोचती हूं कि फिट रहना मेरा चयन है, किसी और को अगर कोई समस्या है, तो उससे मुझे कोई मतलब नहीं है। किसी और के ज़ीरो फिगर से मुझे कोई मतलब नहीं, क्योंकि मेरे शरीर का स्ट्रकचर अलग है। अगर मैं वैसी हो भी जाती हूँ, तो जरुरी नहीं है कि मैं अच्छी दिखूंगी।

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