दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले में आतंकवादियों ने कल तड़के एक पुलिस परिसर पर हमला किया, जिसके बाद आतंकियों और सुरक्षाबलों के बीच भीषण मुठभेड़ हुई और इस दौरान 8 भारतीय जवान शहीद हो गए। भारतीय जवानों ने तीन आतंकवादियों को भी मार गिराया। 5 जवान घायल हैं। 25 अगस्त को म्यांमार के रखाइन राज्य में चौकियों पर हुए आतंकवादी हमलों में 11 सुरक्षा कर्मियों सहित कम से कम 71 लोगों की मौत हो गई। ऐसे अनेकों-अनेक आतंकवादी हमले, सम्पूर्ण विश्व को दहलाये हुए हैं।
रोज़ सुबह उठते ही अखबार, समाचार चैनल्स विश्वभर में कहीं न कहीं हुए तमाम आतंकवादी हमलों की जानकारी देते हैं। कोई ऐसा दिन नहीं बीतता होगा, जब ये मानवता के दुश्मन आतंकी अपना रंग न दिखाते हों। विश्व के तमाम सशक्त देश इस ‘आतंकवाद’ रुपी दानव का सफाया करने के लिए प्रयासरत हैं। सभी प्रयासों के बावजूद आये दिन होने वाली ये घटनाएँ हमें सोचने पर मजबूर कर देती हैं,आखिर इस आतंकवाद का मकसद क्या है? क्या वाक़ई आतंकवाद कभी ख़त्म होगा?
क्या है आतंक की जड़ ?
आतंकवाद का मकसद युद्ध नहीं है, बल्कि समाज को भय से पंगु कर देना होता है। आतंकियों का लक्ष्य लोगों के बीच आतंक फैलाना, समाज को बांटना, देश के आर्थिक विकास को पटरी से उतारना, हर स्तर पर तनाव, हिंसा और अराजकता पैदा करना है। यदि आतंकवाद के इस मकसद की जड़ खोदेंगे तो आप पाएंगे कि इसकी जड़ में है ‘महत्त्वाकांक्षा’।
संपूर्ण जगत में लगभग हर किसी की इच्छा सबसे श्रेष्ठ बने रहने की होती है। हमारी धर्म- नीति, शिक्षा-नीति ,माता पिता की उच्चाकांक्षा, प्रतियोगिता की भावनाओं का बच्चों के अंदर उफनता हुआ जहर आदि तमाम ऐसी बुनियादी भूलें पूरे विश्व समुदाय पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही हैं। लोगों में अपने विकास को ले कर ऐसी होड़ लगी है कि लोग उच्चतम स्तर पर पहुँचने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। सही रास्ते पर चल कर सफल बनना,सही रास्ते पर चल कर उच्च ख्याति प्राप्त करना, अधिकतर लोगों को अच्छा नहीं लगता, क्योंकि उसमें उम्र बीत जाती है। लोग शॉर्टकट अपनाने पर ज्यादा भरोसा रखते हैं। न तो समय का इंतजार करते हैं, न तो जीवन मे ज्यादा समय बर्बाद करना चाहते हैं। ये मुआ आतंकवाद भी इसी का एक परिणाम है। चौंकिए मत! आतंकवादी अपना उल्लू सीधा करने के लिए इस्लाम, क़ुरान, जिहाद, अल्लाह, पैगम्बर आदि नामों का सहारा लेते हैं। मुसलमानों को बहकाने के लिए ये दाने डाल देते हैं और कई ‘शॉर्टकट’परस्त लोग इन्हें खुदा का बंदा मान लेते हैं और जुड़ जाते हैं इनके ना’पाक’ इरादे से।
आतंकवादी तत्वों को बढ़ावा देने वाली शक्तियां हमेशा परोक्ष रूप से सक्रिय होती हैं। जब कोई कहता है, ‘ अपने ईश्वर के लिए लड़ो और लोगों को मारो’, तो चाहे आप इस काम में सीधी हिस्सेदारी करें या नहीं, आप परोक्ष रूप से ही सही, उसमें शामिल होते हैं, क्योंकि आप भी यही मानते हैं कि अपनी बात मनवाने का सबसे सही तरीका है।
जब लोग दौलत, संपत्ति या किसी और चीज के लिए लड़ते हैं तो उन्हें समझाना आसान होता है क्योंकि वे जीवन के लिए, जीवन-उपयोगी चीजों के लिए लड़ रहे होते हैं। मगर जिन लोगों को लगता है कि वे ईश्वर के लिए लड़ रहे हैं या ईश्वर का काम कर रहे हैं, वे मरने और अपने साथ-साथ हम सब को मारने के लिए कुछ ज्यादा ही उत्सुक होते हैं।
सदियों पहले से यह चला आ रहा है कि जिसकी लाठी, उसकी भैंस। जिसके पास सबसे ज्यादा बल होता है, वही राजा होता है। हज़ारों साल पहले भी छोटे-छोटे टुकड़े में जगह-जगह जो कबीले होते थे,सबसे बहादुर व्यक्ति को ही उनका सरदार बनाया जाता था। वहीं इनकी खिलाफत करने वाले लोग भी रहते थे। पहले स्थान पर बहादुर नायक, दूसरे स्थान पर बहादुर खलनायक। ये दूसरे नम्बर वाला हमेशा पहले नंबर पर आना चाहता है। इसलिए वह हमेशा पहले वाले को पद से हटाना चाहता है। इसलिए वह तमाम प्रकार के चक्रव्यूह रचता रहता है। संसार सागर की ऐसी ही संरचना आदि काल से चलती आ रही है।
आज जमाना बदल गया है। पूरे संसार मे कहीं राज तंत्र है, कहीं प्रजा तंत्र। तंत्र चाहे जो भी हो, जो चीजें प्राचीन काल से चली आ रही हैं, उनको बदलना असंभव तो नहीं लेकिन आसान भी नहीं है। राज तंत्र में राजाओं के यहाँ भी सत्ता में रहने या सत्ता में न रहते हुए सत्ता के इच्छुक के बीच छल कपट, उठा पटक एक दूसरे को नीचा दिखाना, दूसरे का पद छीन लेना आदि आदि चलता था। यही तो आज प्रजातंत्र में भी देखने को मिलता है। पूरे विश्व में मारामारी मात्र सत्ता के लिए,पद के लिए या पैसे के लिए ही है।
पुराने समय में राजा होता था। कबीले होते थे, उनका कोई सरदार होता था। डाकू होते थे, जंगलो में निवास कर , गुफाओं में स्टोर, लूट-पाट, दहशत फैलाना, लोगों में ख़ौफ पैदा कर के अपना प्रभुत्व दिखाना, यही इनका पेशा था। प्रतीकात्मक तौर पर आज से यदि तुलना करें, तो एक सत्ता पक्ष, दूसरा विपक्ष, तीसरा अराजक तत्व। इस तीसरे अराजक तत्व का सहारा समय समय पर सत्ता पक्ष या विपक्ष लेते रहते हैं। कभी कभी अराजक तत्व इतने हावी हो जाते हैं कि सत्ता हथिया लेते हैं, या सत्ता को डिस्प्ले में रखकर खुद चाबुक मार मार कर लेफ्ट राईट कराते हैं(जैसा पाकिस्तान में होता है)। सत्ता पक्ष या विपक्ष के सहयोग से ये लोग चुनाव भी लड़ते हैं और जीत कर मंत्री भी बनते हैं।आतंकवादी,नक्सलवादी माओवादी और कई दल ऐसे हैं, जो चुनाव लड़ते हैं और जीतते भी हैं। पाकिस्तान में हाफिज सईद चुनाव लड़ने की तैयारी में है। फूलन देवी चुनाव लड़ कर संसद सदस्य बनी थीं। आतंकी दाऊद का आतंकी टट्टू अबू सलेम भी आजमगढ़ से चुनाव लड़ गया। तमाम अपराधी नेता जेलों में रहते हुए भी चुनाव लड़ते ही नहीं, वरन लड़कर जीतते भी हैं।
दरअसल आतंकवादी,माओवादी ,नक्सलवादी या ध्वस्त हुआ लिट्टे, ये सब समाज के अवांछित तत्व होते हुए भी समाज का अंग बने हुए हैं, जो गलत रास्ते पर चल कर वही पद ,वही प्रतिष्ठा और वही खजाना पाना चाहते हैं, जो सही रास्ते पर चलकर मिल पाना लगभग असंभव लगता है। रास्ते अलग हैं, गलत हैं, लेकिन ध्येय वही है, जिसकी बुनियाद गलत है और इन सब के पीछे जुड़ी है उच्च ‘महत्त्वाकांक्षा’। धर्म द्वारा, समाज द्वारा, माँ-बाप द्वारा, परिवार एवं मित्रों द्वारा पहले नंबर पर रहने के लिए बचपन से ही बच्चों को जो जहर पिलाया जाता है, यह उसका परिणाम है। खेल तो खेल भावना से मनोरंजन के लिए खेला जाता है, लेकिन उसे भी दुश्मनी के भाव से खेलते हैं, जैसे दो खिलाड़ी खेल नहीं रहे, बल्कि दो दुश्मन लड़ रहे हैं। माँ बाप जो खुद नहीं कर पाते हैं, वे अपनी महत्त्वाकांक्षा का बोझ अपनी औलाद पर डाल देते हैं और बच्चे के न चाहने पर भी अपने अहंकार की तृप्ति, अपनी इक्षाओं की तृप्ति अपने बच्चों में देखते हैं। धर्म की घुट्टी जन्म से ही पिलाई जाती है। भेदभाव की भावना बचपन ही से भर देते हैं और ऐसे ही अनगिनत बच्चों का शिकार कर जाती है ये आतंकवादी भावना।