चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता होवा चुनिइंग ने आज कहा कि एनएसजी की वार्षिक बैठक में नए सदस्यों को शामिल किया जाना एजेंडे में कभी नहीं रहा। उन्होंने कहा कि परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर हस्ताक्षर किए बिना भारत को इसकी सदस्यता नहीं मिलनी चाहिए और अगर उसे इसकी सदस्यता मिलती है तो अन्य दूसरे देशों,जिन्होंने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं उन्हें भी सदस्यता मिलनी चाहिए।
इससे पहले, एनएसजी की सदस्यता पाने के लिए भारत की ओर से किए जा रहे प्रयासों के बीच विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने रविवार को कहा था कि चीन एनएसजी में भारत की सदस्यता का विरोध नहीं कर रहा है। इन प्रयासों के तहत विदेश सचिव एस जयशंकर चीन का समर्थन हासिल करने की कवायद के तहत 16-17 जून को बीजिंग की अघोषित यात्रा पर भी गए थे।
राहत की बात यह है कि रूस के राष्ट्रपति ब्लादीमिर पुतिन ने कल कहा है कि वे चीन से भारत के समर्थन देने के मुद्दे पर बात करेंगे और उससे पूछेंगे कि वह क्यों विरोध कर रहा है। शनिवार को रूस के राष्ट्रपति पुतिन चीन के दौरे पर जाएंगे। इस दौरान वे वहां अपने चीनी समकक्ष शी चिनफिंग से वार्ता करेंगे। जैसा कि उन्होंने कहा है संभव है इस दौरे में वे एनएसजी में भारत की सदस्यता पर भी शी से बात करें और उन्हें राजी करने की कोशिश करें।
उल्लेखनीय है कि एनएसजी की बैठक दक्षिण कोरिया की राजधानी सिओल में आज से शुरू हुई है। यह बैठक 24 जून तक चलेगी। भारत के सरकारी रेडियो आकाशवाणी ने पूर्व में खबर दी थी कि लगभग सप्ताह भर की इस बैठक में 48 देश 24 जून को वार्षिक पूर्ण बैठक में एनएसजी में भारत की सदस्यता के मुद्दे पर चर्चा कर सकते हैं।
अबतक दुनिया के 21 देश ने भारत को सीधे-सीधे एनएसजी मेंबरशिप के लिए सपोर्ट करने की बात कही है। इसमें अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, स्विटजरलैंड, मैक्सिको जैसे देश शामिल हैं, जबकि चीन, न्यूजीलैंड, आयरलैंड, तुर्की, दक्षिण अफ्रीका व आस्ट्रिया एक प्रकार से भारत के खिलाफ हैं। विरोध करने वाले देश भारत के परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं करने सहित दूसरे बहाने बनाते हैं।