डॉ. अजय खेमरिया | एडिटोरियल डेस्क
चीन विवाद के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लेह दौरा नए भारत का अपने आप मे एक महत्वपूर्ण सन्देश है।गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद देश भर में चीन के प्रति गुस्से से भरी जनभावनाओं की अभिव्यक्ति के तौर पर इस सरप्राइज विजिट को लिए जाने की जरूरत है। यह दौरा दुनिया के साथ चीन को खुला सन्देश देता है कि मोदी के नेतृत्व में आज भारत को कोई डरा नही सकता है। एक सुप्रीम कमांडर की तरह प्रधानमंत्री ने जो कुछ सीमा पर जाकर कहा है, उसके कूटनीतिक निहितार्थ भी दीवार पर लिखी इबारत की तरह साफ है कि अब भारत चीन से डरने वाला मुल्क नहीं है।
कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने इस मामले में भी सियासी मोह नही छोड़ा। उन्होंने 1971 के इंदिरा गांधी के ऐसे ही दौरे की तस्वीर ट्वीट की है, जिसके बाद पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गए थे। यहां बुनियादी रूप से भारत की सबसे पुरानी पार्टी फिर चूक कर रही है। वह चीन को लेकर जिस अतिशय दोहरेपन का शिकार है, उसने जनता की नजरों में साख को गिराने का काम किया है। क्या चीन की तुलना पाकिस्तान से की जा सकती है? उस चीन से जिसके हाथों राहुल गांधी के नाना को धोखे में शर्मनाक शिकस्त के लिए मज़बूर होना पड़ा था। क्या 1971 के फोटो के जरिये कांग्रेस चीन से सीधी लड़ाई के पक्ष में है? क्या इस फोटो के माध्यम से कांग्रेस यह कहना चाहती है कि मोदी भी उस तिब्बत को चीन से अलग करने के लिए मुक्तिवाहिनी भेज दें, जिसे नेहरू ने चीन को उपहार में ही उपलब्ध करा दिया था।
बुनियादी रूप से संसदीय राजनीति में एक तरह से बेदखल कर दी गई कांग्रेस में राष्ट्रीय चिंतन की धारा लगता है पूरी तरह से सूख गई है। यही कारण है कि राजनयिक औऱ अंतररष्ट्रीय मसलों पर भी पार्टी मोदीफोबिया से खुद को बाहर नही निकाल पाती है।ताजा चीन विवाद इसका ज्वलन्त उदाहरण है, जबकि देश के सभी राजनीतिक दल इस मोर्चे पर मोदी और सेना के साथ नजर आते है।
लेह में चीन की सीमा से 250 किलोमीटर दूर अपने जांबाज सैनिकों के साथ खड़े होकर मोदी ने यह प्रमाणित कर दिया है कि वह किसी भी अंतर्राष्ट्रीय दबाब या भरोसे में 1962 सरीखा धोखा देश के साथ नही होने देंगे। सीमा पर खड़े होकर देश के पीएम ने कृष्ण की बांसुरी औऱ सुदर्शन चक्र दोनों के उदाहरण से चीन को समझाने की कोशिशें की है कि आज का भारत 1962 का भारत नहीं है और वह बुद्ध की करुणा के बल पर निर्भीकता को धारण करने वाला शांतिप्रिय समाज भी है।इसे समझने वाले आसानी से समझ सकते है कि नए भारत का मिजाज क्या है? संभवत मोदी पहले पीएम है जिन्होंने चीन को इतने स्पष्ट शब्दों में चेताया है कि विस्तारवाद का सपना देखने वालों को मुंह की खानी पड़ेगी। इससे कठोर सन्देश औऱ क्या हो सकता है ? इस दौरे का सीधा संबन्ध आम जन भावनाओं की अभिव्यक्ति से भी है, क्योंकि गलवान घाटी में जिस तरह की धोखेबाजी हुई और हमारे 20 जांबाज शहीद हुए, उसने भारतीय जनमानस को चीन के विरूद्ध नफरत से भर दिया है।
प्रधानमंत्री मोदी जनाकांक्षाओं को भांपने और परखने में सिद्धहस्त हैं। उन्होंने पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को रूस भेजकर सामरिक कसावट का संदेश दिया, फिर आर्थिक मोर्चे पर चीनी एप्स को प्रतिबंधित किया।अब अग्रिम मोर्चे पर खुद सेना और आइटीबीपी जवानों के बीच खड़े होकर जिस तरह उनका मनोबल बढ़ाया है, उसने एक बार फिर मोदी को जनता के बीच एक भरोसेमंद पीएम के रूप में अधिमान्यता दी है।
बेहतर होता कांग्रेस इस मौके पर 1971 की याद दिलाने की जगह पीएम के दौरे का एकसूत्रीय स्वागत करती, क्योंकि हकीकत यही है कि चीन से सीधी सैन्यलड़ाई न तो अपेक्षित है और न ही दोंनो देशो के हित में। 50 साल तक शासन करने वाले दल और परिवार से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती है कि वह चीन जैसे संवेदनशील मामले पर गैर जिम्मेदारी का ऐसा स्टैंड अख्तियार करे, जिसके चलते टीम इंडिया की भावना और ताकत में क्षरण हो। तथ्य यह भी है कि आज कांग्रेस में इंदिरा की तस्वीरों के अलावा कोई बुनियादी अक्स नही बचा है, जिस एकाधिकार के साथ वे भारतीय हितों के मामलों को हैंडल करती थी, वैसी समझ और सोच आज की पार्टी में शेष नही रह गई है। मौजूदा समझ सिर्फ तुष्टीकरण, निजी नफरत औऱ एनजीओ छाप मानसिकता तक सिमट गई है। 1971 की जिस तस्वीर को साझा करते हुए कांग्रेस प्रवक्ता ने मोदी पर तंज कसा है, वह भारतविचार और टीम इंडिया के विरुद्ध भी है। वह भी तब, जब पूरी दुनिया में चीन के विरूद्ध जनमत खड़ा हो रहा है। कल ही अमेरिका ने चीन भारत विवाद के लिए चीन की आक्रमकता को जिम्मेदार बताया है और आज जब पीएम विस्तारवाद के विरुद्ध खड़े होकर दहाड़ रहे थे, तब कांग्रेस पीएम के विरुद्ध खड़ी थी।वस्तुतः पर्सनालिटी क्लैश की छाया में उपजी आज की कांग्रेस को लगता है कि मोदी की पर्सनेलिटी को ध्वस्त किये बिना, उसका शाही सियासी पुनर्वास नहीं होगा और यही कांग्रेस की बुनियादी गलतफहमी भी है। इसी गलतफहमी ने मोदी के कांग्रेसमुक्त नारे को पंख लगाए है।
(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार, राजनीतिक विश्लेषक व टिप्पणीकार हैं।)