सनातन के वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर वामपंथी वितंडावाद

शाश्वत त्रिपाठी | Navpravah Desk

सावन मास में सोलह सोमवार के व्रत की परंपरा काफी लम्बे समय से चली आरही है जिसमें महिलायें अपने लिए अच्छे वर की प्रार्थना भगवान शिव और शक्ति के प्रतीक शिवलिंग की पूजा कर, करती हैं।

भारतीय वामपंथी बुद्धजीवियों के आलोचनात्मक निशाने पर यह परंपरा आती रही है। अपने विचारों का मूल्यांकन करने के बजाय, यह बुद्धजीवी आरोप लगाकर भाग जाने में यकीन रखते हैं। विभिन्न सोशल मीडिया टूल्स/साइट्स पर पोस्ट या विडियो के माध्यम से अक्सर शिवलिंग के बारे में इनका बौद्धिक कीचड़ देखने-सुनने को मिल जाता है ।हद तो तब हो जाती है जब कुछ बुद्धजीवी इसे रेप की वजह बताने लगते हैं।

वैसे तो इन विषबुद्धियों को किसी भी प्रकार का जवाब देना अपनी तार्किक क्षमता का अपमान करना है मगर इन विडियोज़ को देखने वाले बहुत सारे युवा भी हैं, जिन्हें इस तरह की जानकारी से अपने कल्चर के बारे में संशय हो सकता है।

आप शिवलिंग को गौर से देखने पर पायेंगे कि यह सिर्फ एक लिंग नहीं है। दरअसल शिव लिंग का स्ट्रक्चर ,शिव लिंग और महायोनी के संयोग से बनता है। यह संयोग केवल सेक्स का द्योतक नहीं है, अपितु यह असल में प्रकृति में जीवन की शुरुआत का प्रतीक है। लिंग पुरुषत्व का प्रतीक है तो योनि नारीत्व का।

हम सभी में यह साधारण समझ होती है कि किसी भी तरह के जीवन के प्रादुर्भाव के लिए इन तत्वों का मेल आवश्यक है। चाहे प्रजाति कोई भी क्यूँ ना हो ,यह स्ट्रक्चर इसी बात को बताता है कि जीवन में दोनों पक्षों का एक समान महत्त्व है ,किसी भी पक्ष का योगदान कम करके नहीं आंक सकते और किसी एक की भी अनुपस्थिति में जीवन संभव नहीं।

यह स्ट्रक्चर हमें यह भी बताता है कि जीवन में क्रिएटर का क्या महत्त्व है। आज यह जो पूरी क्रिएशन की प्रक्रिया चल रही है, इसे गौर से देखेंगे तो आप इसमें एक तरीके का साम्य पायेंगे, हर चीज़ की एक वजह पायेंगें और उसके महत्त्व को समझेंगे। यह स्ट्रक्चर हमें उस महा-मिलन के बारें में बताता है जिससे यह पूरी क्रिएशन बनी है। वह महा-मिलन दरअसल एनर्जी और मैटर का मेल है।

यदि आप विज्ञान के विद्यार्थी हैं तो आप यह अवश्य जानते होंगे की ऊर्जा (एनर्जी) और तत्त्व (मैटर) मेल से ही इस श्रृष्टि की उत्पत्ति हुई है। यह दोनों ही ना तो पैदा किये जा सकते हैं और ना ही इनकी मौत हो सकती है (Neither created nor destroyed but can be transformed). अगर आप हिंदू फिलॉसफी में रूचि रखते हैं तो श्रीमदभगवद्गीता में आपको यह पढने का सुअवसर अवश्य मिला होगा कि –
1) आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा सुखा सकती है।
2) आत्मा अजन्मा, नित्य, शाश्वत, पुरातन है।
3) ना ऐसा वक़्त कभी था कि मैं और तुम नहीं थे और ना ही ऐसा वक़्त कभी आएगा कि मैं और तुम नहीं होगे। बस अंतर यह है कि तुम्हे इस तथ्य का भान नहीं है और मुझे है (श्री कृष्ण ,अर्जुन से )।

यही स्ट्रक्चर इस तथ्य का परिचायक है, कि क्रिएशन एक एवर लास्टिंग ,एवर इवोल्विंग और ऑलवेज हैपनिंग प्रोसेस है। सीधे कहें तो शिव लिंग में लिंग का स्ट्रक्चर एनर्जी को प्रदर्शित करता है जबकि महायोनी मैटर (तत्त्व) को और दोनों का मेल ही इस क्रिएशन का कारण और कारक है जो कि सतत रूप से हमेशा होता रहता है।

यह विचार शिव लिंग का वैज्ञानिक पहलू दर्शाता है, मगर मूल प्रश्न तो यह था कि इसे पूजा क्यूँ जाए और क्या यह रेप कल्चर को बढ़ावा देता है?

पहले प्रश्न के उत्तर के लिए हमें शिव की प्रेम कथा समझनी होगी। शिव एक अद्वितीय प्रेमी हैं, सती के। इतने कि जब राजा दक्ष द्वारा अपने पति शिव को अपमानित किये जाने पर सती यज्ञ कुंड में कूद कर आत्म-आहुति दे देती हैं तो क्रोध में शिव ना सिर्फ दक्ष का वध कर देतें हैं, बल्कि सती के मृत शरीर को प्रेम से गले लगाये फिरने लगते हैं।

अपनी पत्नी से ऐसा प्रेम करने वाला किस नवयुवती की आकांक्षा में नहीं होगा ,कौन नहीं चाहेगा कि उसका पति उसके प्रेम में शिव हो जाए और उसकी मृत्यु के पश्चात् भी उसे जाने ना दे। ऐसे में शिव ही वह व्यक्ति प्रतीत होते हैं जिनसे वर की मांग की जाए, तो कर्मकाण्डो से इतर शिव आराधना, अच्छे वर की प्राप्ति हेतु एक उचित क़दम प्रतीत होता है।

अब आते हैं दूसरे आक्षेप पर कि यह रेप को बढ़ावा देता है । अभी तक आपने यह तो जान लिया होगा कि यह सिर्फ एक कुंठित आरोप है जो सिर्फ निगेटिव फेम के लिए लगाया है। चूंकि भारत में हिन्दू प्रतीकों का अपमान बुद्धिमता का प्रतीक है, इसलिए ऐसा बौद्धिक पाखण्ड अक्सर देखने को मिल जाता है। गंगा जमुनी तहज़ीब के वकालती ही इन्हें अधिक प्रचारित करते हैं। पिछले दिनों एक मैन्युफैक्चर्ड पोल में भारत को महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक जगह साबित करने का प्रयास किया गया। कुल 542 लोगों के समूह नें 135 करोड़ लोगों के चरित्र का सर्टिफिकेट जारी कर दिया। हालाँकि यह पोल भी ऊपर वाले आरोप की तरह सिर्फ कुंठा प्रदर्शन मात्र था।

कुछ वर्षों पहले एक सोशल एक्सपेरिमेंट के दौरान पर एक अमेरिकन नवयुवती न्यूयॉर्क की सड़कों पर अकेले घूमने लगी। उसने एक ऐसी ड्रेस पहनी थी जो रिविलिंग नहीं थी फिर भी अपनी पूरी वॉक के दौरान उसे बहुत सारे मर्दों नें वर्बली फ़्लर्ट/एब्यूज़ किया। एक युवक तो कई ब्लॉक्स तक उसके साथ चलता रहा और इस प्रकार एक ऐसा देश जहां महिलाओं को उन्मुक्त जीवन जीने के लगभग सारे अधिकार हासिल हैं, वहां भी महिलाओं की सुरक्षा को लेकर एक गंभीर प्रश्न चिन्ह प्रकाश में आ गया। यह प्रश्न गंभीर इसलिए है क्योंकि महिलाओं की महत्तम आज़ादी सुनिश्चित करने वाले इस देश की संसद में पुरुषों की संख्या औरतों से ज्यादा है, और अनुपात हमेशा से ही ऐसा रहा है। मानसिकता के मूल रूप से प्रो वीमेन होने की संभावना अधिक थी, किंतु ऐसा रिजल्ट मुझ जैसे बाहरी के लिए थोड़ा आश्चर्यजनक था। अब इस परिपेक्ष्य में भारत की सामाजिक चेतना को परखने के लिए मुंबई में इस प्रयोग को रेप्लिकेट किया गया। मुंबई के एक चौराहे पर एक नवयुवती तुलनात्मक रूप से रिविलिंग कपड़े पहन 3 घंटे खड़ी रही, मगर उस पर किसी ने कोई सेक्सिस्ट या मिसोजिनिस्टिक रिमार्क नहीं किया। यहां कपड़ो की बात इसलिए की जा रही है क्युंकी कुछ लोग मर्दों की ऐसी हरकत के पीछे कपड़ों को वजह बताते हैं, जो कि एक दकियानूसी बात है। अगर हम यह सोच भी लें कि भारतीय प्रयोग की नायिका एक अटेंशन सीक करने के लिए ऐसे कपड़े पहने तो भी वह सुरक्षित रही। हम यह आकलन निकाल सकते हैं कि उपरोक्त प्रयोग में हम महिला सुरक्षा चेतना के मामले में, अमेरिका से बेहतर साबित हुए। हालांकि स्तिथि दोनों ही अच्छी नहीं है और इस विषय में हमें बहुत काम करने की आवश्यकता है। बहुत सारे प्रशासनिक और संसदीय फैसलों से ही महिलाओं और पुरुष के बीच की अपॉरचुनिटी की ये गहरी खाई पटेगी और महिलाओं की आज़ादी का रास्ता बेहतर बनेगा। यद्यपि वर्तमान स्थिति में पूरे देश को होपलेस बता देना, दरअसल अपने बुरे व्यक्तिगत अनुभवों को विचार के रूप में प्रस्तुत करना है।

“किसी भी व्यक्ति को ,जो अपने बुरे अनुभव की छाप से कभी उबर नहीं पाया उसे किसी प्रतिरोधी संस्था (ऐसी संस्था जो कार्यरत सिस्टम में सुधार की हिमायती हो ) का प्रमुख नहीं बनाना चाहिए, क्योंकि वो कभी भी सकारात्मक बदलाव नहीं ला पायेगा। बल्कि वह बदला लेने में लग जाएगा/गी और इससे नई समस्यायें पैदा होनी शुरू हो जायेंगी। ऐसा व्यक्ति जब कार्यकर्ता के रूप में भी काम करे तो उसके काम की कड़ी स्क्रूटनी की जानी चाहिए ताकि संस्था अपने लक्ष्य से विमुख ना हो जाए। शिव लिंग पर ऐसे अनर्गल आरोप लगाने वाले व्यक्ति और संस्थाएं ऐसे ही अपने ‘सो कॉल्ड’ नोबल कॉज़ से विमुख हो चुकी हैं। यह दरअसल उसी समूह का हिस्सा है जिन्होनें दहेज़ / बलात्कार क़ानून का गलत इस्तेमाल कर उसे डाईलुशन की राह पर भेज दिया है। “

लेकिन अगर हम यह मान ही लें कि यह स्ट्रक्चर सिर्फ और सिर्फ ह्यूमन सेक्स को रिप्रेजेंट करता है तो भी यह कौन सी बुरी बात है। सेक्स इस विश्व की सबसे खरी सच्चाई है , यह पूरी मानवता आज यहां तक पहुंची है क्योंकि किसी नर ने किसी मादा के साथ संभोग किया और परिणाम स्वरुप हुए बच्चे का अच्छी तरह ख्याल रखा। सेक्स सिर्फ शारीरिक नहीं होता, विचारों का जन्म भी सेक्स की परिणति होती है। जब मनुष्य भावनाओं के ज्वार भाटे से गुजर रहा होता है तो अक्सर वो विचारों के उधेड़ बुन में होता है, फिर उन्हीं विचारों के मंथन से एक नया विचार जन्म लेता है। कवि नई रचना करता है ,लेखक नई कहानी लिखता है , विचारक नई प्रणाली के बीज बोता है ,इनमें से कई क्रांति का रूप ले लेते हैं, तो सेक्स को पूजने का मतलब सिर्फ सेक्स को रियल लाइफ में मेनिफेस्ट करना नहीं होगा, बल्कि यह समझना होगा कि क्रिएशन के कोर में यही प्रक्रिया है और इसे अनुशासन के साथ मैनेज करना ही वह तरीका है जिससे मानव प्रजाति स्वस्थ रूप से प्रगति कर सकती है। इसीलिए विवाह जैसी व्यस्था की स्थापना की गयी और सेक्स इस वैवाहिक व्यस्था का अभिन्न अंग है। यदि एक लड़की विवाह के उपरान्त एक ऐसे लिंग की आकांक्षा रखती है जो उसे संभोग के दौरान संतुष्ट कर पाये तो इसमें भी कुछ गलत नहीं और वो इसके लिए पूजा करे तो भी कुछ गलत नहीं। अच्छा सेक्स एक अच्छे रिश्ते में ही प्राप्त होता है, यदि आपके पार्टनर के साथ आपका मानसिक कनेक्शन बेहतर नहीं है तो उसके साथ सेक्स भी किसी अनवांटेड मेहनत के काम को करने जैसा ही होगा। ऐसे में अच्छे लिंग की कामना करना मतलब एक ऐसे इंसान की कामना करना जिसके साथ आपका मानसिक संतुलन बेहतर हो, जिसकी समग्रता में यह कह सकते हैं शिवलिंग–महायोनी को पूजने में कोई बुरी बात नहीं है और ना ही यह रेप का कारण हैं क्योंकि रेप वहां भी होते हैं और शायद ज़्यादा होते हैं जहां शिव नहीं पूजे जाते।

(लेखक मूलतः बैंकर हैं और साहित्य, समाज के विषयों में विशेष रुचि रखते हैं। यह आलेख उनके निजी विचार हैं।)

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