बाजार में कई महंगी चीजें बिकती हैं। लाखों रुपये देकर लोग जूते, जूते, टाई, पैंट, घड़ियां, मोबाइल आदि खरीदते हैं।
कोई दस लाख के जूते पहनता है, कोई तीस लाख का सूट पहनता है, कोई पांच करोड़ का मोबाइल फोन इस्तेमाल करता है, कोई दस करोड़ की अंगूठी पहनता है । यह सूची बहुत लंबी है। लोग महंगी चीजों को खरीदना और इस्तेमाल करना पसंद करते हैं।
अमेरिकी अभिनेता निक केनन ने एक टीवी शो में भाग लेने के दौरान दो मिलियन डॉलर के हीरे जड़ित जूते पहने थे। उन्होंने सोचा होगा कि इस शो में हमारी मौजूदगी चर्चा का कारण होनी चाहिए। लोग कई कारणों से लाखों रुपये बर्बाद करते हैं। कई ऐसे क़ीमती सामान लेते देखे गए हैं, भले ही उनके पास उसे लेने की हैसियत भी नहो। कुछ का मानना है कि क्योंकि हम बड़े हैं, इसलिए सब कुछ बड़ा और महंगा होना चाहिए। ब्रांडेड चीजों का ही इस्तेमाल करना चाहिए। लोग समाज में अच्छा दिखने के लिए ऐसा करते हैं। कई बार लोग कर्ज लेकर दिखावा करते हैं।
प्रमुखस्वामी महाराज लाखों करोड़ों के गुरु थे। वे समाज के एक प्रमुख नेता थे। दुनिया का एक बड़े वर्ग उनका अनुसरण कराता था । उनके एक इशारे पर लोग करोड़ों रुपये का सामान लाने को तैयार थे। लेकिन स्वामीजी हमेशा सरल रहे थे। सादगी उनका जीवन सूत्र था। उन्हें किसी तरह की दम्भ या दिखावा करना पसंद नहीं था। उनके द्वारा कई गगनचुम्बी मंदिर बनाए गए. वे सबब मंदिर अद्भुत, कलात्मक, बेहद खूबसूरत और डिजाइन के लिए विश्व मे प्रसिद्ध है । लेकिन वह अपने निजी इस्तेमाल के लिए महंगी चीजों के प्रति उदासीन थे ।
एक बार स्वामी जी बम्बई में निवास कर रहे थे। रात के भोजन के समय स्वामीजी की गोद में एक सुंदर डिज़ाइन वाला रूमाल रखा गया था। जैसे ही स्वामी जी ने इसे देखा, उन्होंने उसे उलट दिया और पीछे का भाग को ऊपर रख दिया। यह देखकर सेवक ने तुरंत पूछा, ” आपने इसे उल्टा क्यों कर दिया?” स्वामी जी ने कहा, ‘ साधु के लिए सादगी अच्छी. संत के लिए दिखावा अच्छा नहीं ।’ दरअसल साधु और सादगी साथ साथ चलनेवाले शब्द हैं । स्वामी जी की जीवन शैली हमेशा से ऐसी ही रही है। सादगी उनके महान मंत्रों में से एक थी।
कुछ साल पहले महुआ गांव में भगतजी महाराज की डेढ़ सौवीं जयंती मनाई गई थी । उस समय, संतों ने दृढ़ता से आग्रह किया और स्वामीजी को एक नई धोती और उपवस्त्र पहनने की अनुमति दी। उत्सव बहुत बड़ा था। बहुत धूमधाम से समाप्त होने के बाद स्वामीजी ने सेवक से कहा, ‘मेरे पुराने कपड़े ले लाओ ।’ सेवक ने कहा कि उसने पुराने वस्त्रों को सारंगपुर मंदिर भेज दिया है। स्वामी जी ने उस समय कुछ नहीं कहा। वह चुप रहे । कुछ दिनों के बाद स्वामीजी विचरण करते करते सारंगपुर पहुंचे। सुबह स्नान के बाद फिर सेवक से पुराने कपड़े मांगे। उन्होंने बहाना किया कि इसे अभी धोया और रंगा जाना बाकी है। एक दिन बाद फिर सुबह स्नान करने के बाद स्वामी जी ने दृढ़ता से कहा, ‘आज पुराने कपड़े लाएंगे तो उन्हें पहनना होगा। मेरे पुराने कपड़े ले आओ. ‘ इतना कहकर स्वामी जी वहीं बैठ गए । स्वामी जी का ऐसा दृढ़ निश्चय देखकर सभी बहुत आश्चर्यचकित हो उठे। सेवक दौड़े और तुरंत पुराने कपड़े ले आए। उसे धारण करने के बाद ही स्वामी जी को राहत मिली। उनके मन में हमेशा यह बात रहती थी कि जब तक पुराने कपड़े का पूर्ण तया उपयोग नहीं हो जाता, तब तक उन्हें नए कपड़े नहीं पहनने चाहिए।
स्वामी जी की ऐसी सरल भावना हमें बार-बार देखने को मिलती है जो हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
कुछ साल पहले ऐसी ही एक घटना हुई थी।
स्वामीजी बड़ौदा मंदिर में अपने आवास से नीचे उतरे। एक भक्त ने एक नीम के पेड़ के सामने खड़े हरिभक्त की गाड़ी की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘ स्वामी जी ! यह हरिभक्त नई गाड़ी लेकर आया है। कार बहुत अच्छी है। उनके मन में है कि हम मंदिर में भी ऐसी ही गाड़ी उपलब्ध कराएं। तो आपका आदेश क्या है? ‘ स्वामीजी ने पूछा, ‘कार कितनी है?’ वह भक्त ने कहा , ‘साढ़े बारह लाख रुपये।’ स्वामीजी ने तुरंत कहा , ‘हमें इतनी महंगी कार नहीं चाहिए। हम जो भी कार चाहें ला सकते हैं लेकिन हम कोई दूसरी नहीं लेंगे। बहुत बुजुर्ग संत हों तो बात ही अलग है। लेकिन मंदिर में अन्य काम के लिए इसे लेने की जरूरत नहीं है।’ स्वामीजी ने महंगी चीजों के प्रति अपनी अरुचि व्यक्त की। इस तरह हरिभक्त स्वामीजी को कई महंगी और बड़ी चीजें चढ़ाने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। लेकिन स्वामीजी ने उनकी भावनाओं और भावनाओं को देखकर कभी भी महंगी चीजों का इस्तेमाल नहीं किया।
एक बार ऐसा हुआ कि स्वामी जी अफ्रीका में थे और मोम्बासा जा रहे थे। एक भक्त ने कहा, ‘ स्वामी जी! आपके लिए एक हेलीकॉप्टर ला देते है ताकि आप विचरण आसानी से कर सकें।’ उन बर्षों मे स्वामी का विचरण कुछ ज्यादा ही थे। कभी उत्तर दिशा में, कभी दक्षिण दिशा में, कभी पूर्व में, कभी पश्चिम में। किसी भी तरह से उन्हें आराम नहीं मिलता था. कठिनाइयों का दौर लगातार चलता रहता था । प्रवास मे स्वामी जी को बहुत परेशानी होती थी । लेकिन इस बार जब भक्त इस तरह बोले तो स्वामी जी ने अपना दाहिना हाथ उठाया और उन्हें माला दिखाई और कहा, ‘हमें भजन करना चाहिए। इन सब में ( यानी कि हेलिकोप्टर इत्यादि मे) भजन घटते हैं और उड़ना बढ़ जाता हैं।’ फिर धीरे से कहें, ‘ हेलिकोप्टर आ जाए तो छोटे-छोटे केंद्र (गांव आदि) मे जाना असंभव हो जाएगा और केवल शहर मे ही जाना पड़ेगा. मुझे ऐसा नहीं करना ।’
जेन टागझे नाम के एक बहुत ही लोकप्रिय ब्लॉगर, लेखक और वक्ता का कहना है कि Simplicity is the key to effective leadership. सादगी प्रभावी नेतृत्व की चाबी है।
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