शिखा पाण्डेय | Navpravah.com
राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में आया बड़ा मोड़ तब आया जब सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर अंतिम सुनवाई का ऐलान किया. समय से अधर में लटका राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद अब जल्द ही समाप्त होने के आसार नज़र आ रहे हैं।
आज उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या में राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद मालिकाना विवाद में अंतिम सुनवाई पांच दिसंबर से करने का फैसला किया है। शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया है कि सभी पक्षों को न्यायालय द्वारा निर्धारित समय सीमा का पालन करना होगा और किसी भी परिस्थिति में स्थगन नहीं दिया जायेगा।
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की तीन सदस्यीय विशेष खंडपीठ करीब डेढ़ घंटे की गहन मंत्रणा के बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई शुरू करने के बारे में सहमति पर पहुंची।
उल्लेखनीय है कि राम लला की ओर से वरिष्ठ सी एस वैद्यनाथन और उप्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने इस मामले की शीघ्र सुनवाई करने पर जोर दिया था, जबकि दूसरे पक्षकारों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, अनूप जार्ज चौधरी और राजीव धवन अगले साल जनवरी से पहले इस पर सुनवाई शुरू करने के पक्ष में नहीं थे।
न्यायालय ने इस मामले के सभी पक्षों से कहा कि इसमें शामिल दस्तावेज़ों का 12 सप्ताह के भीतर अंग्रेजी में अनुवाद कराएँ क्योंकि ये आठ अलग अलग भाषाओं में हैं। इसके अलावा, पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार से कहा कि वह इस मालिकाना हक के विवाद के निर्णय के लिये उच्च न्यायालय में दर्ज साक्ष्यों का दस सप्ताह के भीतर अंग्रेजी में अनुवाद कराए।
इसी बीच शिया वक्फ बोर्ड ने शुक्रवार को कोर्ट में यह बयान दिया कि मस्जिद कहीं भी बन सकती है। शिया वक्फ बोर्ड के इस बयान को लेकर भी काफी विवाद हो रहा है। समाचार एजंसी एएनआई से बातचीत में शिया वक्फ बोर्ड के वकील एमसी ढींगरा ने कहा, “बोर्ड ने यह तय किया है कि उन्हें अलॉट की गई एक-तिहाई जमीन वह छोड़ने को तैयार है, ताकि दोनों धर्मों के लोगों के बीच किसी भी तरह का विवाद न हो। फैसले की वजह यह है कि अगर मस्जिद बन भी जाए तो उसमें लाउडस्पीकर का इस्तेमाल होगा। ऐसे ही इलाके में मंदिर हैं, जहां पर भी लाउडस्पीकर इस्तेमाल होंगे। ऐसी स्थिति में दोनों धर्मों के लोगों के बीच परेशानी बढ़ेगी।” आपको बता दें कि उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में अयोध्या में 2.77 एकड की विवादित भूमि को तीन हिस्सों में विभक्त करके इसे सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाडा और राम लला के बीच बांटने की व्यवस्था दी थी।