अमित द्विवेदी | navpravah.com
लॉकडाउन के तीसरे चरण की शुरुआत में मज़दूरों के घर भेजने के फैसले से सरकार ने वाहवाही लूटनी शुरू की ही थी कि मज़दूरों से पैसे वसूलने के मामला सामने आ गया। कांग्रेस शासित व समर्थित राज्य सरकारों ने केंद्र पर आरोप लगा दिया कि यह सरकार मात्र अमीरों के लिए है। अब इस मामले में केंद्र सरकार कुछ और कह रही है राज्य सरकारें कुछ और।
श्रमिक स्पेशल चलाये जाने से मज़दूर काफी खुश हैं। लेकिन इस बीच केंद्र सरकार और विपक्ष में घमासान शुरू हो गया है। केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया कि मज़दूरों को टिकट बेंचा ही नहीं गया है। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने स्पष्ट किया कि केंद्र ने रेलवे टिकट राज्यों को दिया। ये टिकट राज्य सरकार द्वारा तैयार सूची के आधार पर बांटना था।
कई राज्यों में सरकारों ने एक भी रुपये मज़दूरों से नहीं लिया, जबकि कुछ राज्यों ने मज़दूरों से पैसे वसूले। उन्होंने कहा कि हमने राज्यों को स्पष्ट कहा था कि केंद्र ८५ प्रतिशत पैसा अपनी तरफ से खर्च कर रही है, बाकी का १५ प्रतिशत पैसा राज्य सरकारें वहन करें या किसी स्वयंसेवी संस्था से सहयोग लें। इसमें अंतिम विकल्प था, मज़दूरों से बाकी का पैसा वसूलने का। उन्होंने कहा कि कुछ ऐसे राज्य हैं जिन्होंने श्रमिकों से पैसे लिए।
कॉंग्रेस का केंद्र पर हमला-
तमाम शोरगुल के बीच सोमवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने ऐलान किया कि प्रवासी मजदूरों की टिकट वापसी का खर्च कांग्रेस पार्टी उठाएगी, उन्होंने इसके लिए प्रदेश इकाइयों को निर्देश भी जारी कर दिया। जिसके बाद कांग्रेस का सरकार पर हमला करना और भी आक्रामक हुआ।
भाजपा ने किया पलटवार-
कांग्रेस के द्वारा लगातार लगाए जा रहे आरोपों का जवाब देने के लिए भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज मैदान में उतरे। कई प्रवक्ताओं ने कांग्रेस के दावे को झूठा करार दिया तो केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने ट्वीट कर कांग्रेस पर ही आरोप मढ़ दिया। प्रकाश जावड़ेकर ने लिखा, ‘मजदूरों से रेल किराये की सच्चाई – सभी राज्य सरकारें मजदूरों के रेल के किराये का पैसा भर रही हैं। केवल महाराष्ट्र, केरल और राजस्थान सरकारें नहीं दे रहीं। वह किराया मजदूरों से ले रही हैं। बाकि सरकारें स्वयं दे रही हैं। यह तीन राज्य महाराष्ट्र, केरल और राजस्थान की सरकार मजदूरों से किराया ले रही हैं। इन राज्यों में सरकार शिवसेना गठबंधन, कम्युनिस्ट और कांग्रेस की है, यही चिल्ला रहे हैं। इसे कहते है ‘उल्टा चोर कोतवाल को डाटें।’
क्या कहते हैं मज़दूर ?
अब इस पूरे मामले में मज़दूरों ने स्पष्ट किया कि उनसे तो पैसे लिए ही गए। अब चाहे राज्य ने लिया हो या केंद्र सरकार ने। हमें ऐसी विकट परिस्थिति में सरकार से सहयोग की अपेक्षा थी, लेकिन मिली नहीं। बस ट्रेन चलाई, इसे चाहे आप जो समझ लें।