राजकुमार राव फिर एक बार अलग किरदार में नजर आने वाले हैं। वे पहले फिल्म ‘अलीगढ़’ में जर्नलिस्ट, ‘शाहिद’ में वकील और ‘राब्ता ‘में 324 साल के बूढ़े इंसान के किरदार में नज़र आए। राजकुमार ने अपनी कलाकारी से सबका दिल जीता है। उनकी अगली फिल्म ‘न्यूटन’ 22 सितंबर को रिलीज हो रही है, ये फिल्म पहले ही बर्लिन, हांगकांग और ट्रिबेका इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में सराही जा चुकी है। अब ये भारत में प्रदर्शित की जा रही है। फिल्म न्यूटन के बारे में राज कुमार राव ने नवप्रवाह डॉट कॉम से ख़ास बातचीत की, प्रस्तुत है राजकुमार राव से कोमल झा की हुई लम्बी बातचीत के प्रमुख अंश।
आप फिल्म न्यूटन के लिए कितने उत्साहित हैं?
मैं इस फिल्म के लिए बहुत उत्साहित हूँ, क्योंकि इसमें ऐसे कई तथ्य हैं, जिन्हें दिलचस्प तरीके़ से दर्शकों के सामने पहुंचाया गया है। राजकुमार कहते हैं कि उन्हें ख़ुद इस बात की जानकारी नहीं थी कि एक आदमी की वोटिंग के लिए भी हकीकत में जंगल में ईवीएम मशीन लगाई गई थी।
न्यूटन में आपका करैक्टर किस तरह का है?
न्यूटन फिल्म में नूतन कुमार एक सरकारी क्लर्क है, जिससे छत्तीसगढ़ के जंगल में इलेक्शन करवाने का काम दिया जाता है। उसके साथ के लोग इस काम को करने के इच्छुक नहीं होते है, पर वह अपने काम को पूरी मेहनत और लगन से करना चाहता है। यह फिल्म हमारे देश की वोटिंग प्रक्रिया को एक ख़ास अंदाज़ में दर्शाती है। इसमें कुछ महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दे जैसे, बाल विवाह, जातिवाद और प्रजातंत्र के बारे में दिखलाया गया है।
इस फिल्म में आपका किरदार किसी से प्रेरित है?
इस फिल्म का किरदार किसी भी फिल्म से प्रेरित नहीं है। फिल्म की स्क्रिप्ट से ही ये किरदार तय किया गया है। बस पूरी मेहनत और ईमानदारी से करता गया। राजकुमार बताते हैं कि उनकी यह कोशिश होती है कि हर फ़िल्म में वह अपने लुक पर अलग तरीके़ से काम करें।
क्या ऐसे किरदार के लिए कोई वर्कशॉप करते हैं?
न्यूटन का करैक्टर अमित का ही विज़न था और एक बार कैरेक्टर समझने के बाद फिर उसको करने में कोई समस्या नहीं हुई, लेकिन हाँ, अगर मॉर्निंग के शॉट रहे तो हम रात में जग जाते थे। वहीं अगर रात के सीन रहे, तो शाम से ही इस काम पर लगना पड़ता था.
क्योंकि यह फिल्म सामाजिक मुद्दे से जुड़ी है, तो शूटिंग में ज़मीनी हकीक़त क्या रही ?
शूटिंग करने में पहले तो डर सा लगा था, पर स्थानीय लोगों का बहुत सपोर्ट मिला और वह सब बहुत फ्रेंडली थे। खास बात यह है कि फ़िल्म में भी वहां के आदिवासी लोगों को शामिल किया है, जो कि नॉन एक्टर्स थे, लेकिन उन्होंने बेहतरीन काम किया है।
क्या किसी रोल ने आपको थकाया है ?
बहुत सारे रोल्स ने ड्रेन आउट किया (थकाया) है, जैसे फिल्म सिटीलाईट, अलीगढ, शाहिद। मैं ड्रेन आउट होने के बाद ट्रेवल करता हूँ। 10 दिन के लिए फॉरेन ट्रिप या सिटी के बाहर चला जाता हूँ, फिर लौट के नए प्रोजेक्ट में लग जाता हूँ।
आपकी अपनी ऐसी कौन सी फिल्म है, जो सबसे ज्यादा करीब है ?
सिटीलाईट, इस फिल्म को देख कर और कई जगह किरदार ऐसे थे कि मैं खुद देख कर भावुक हो गया था।
क्या शाहिद, अलीगढ जैसी फिल्मों ने आपको पॉलिटिकली कॉन्ससियस और अवेयर किया है?
मैं पहले से ही पॉलिटिकली अवेयर पर्सन हूँ, पर इन फिल्मों ने पोलिटिकल आइडियाज को एक शेप देने में मदद की है।