IBN7 के रोहित सरदाना ने अपने सोशल हैंडल फेसबुक पर NDTV के एक दिवसीय ब्लैक आउट मामले पर बेहद गंभीर पोस्ट अपडेट किया, जिसे सभी को पढ़ना चाहिए। ये मीडिया की स्वतंत्रता और दायित्व का संज़ीदा विश्लेष्ण है।
‘ये अंधेरा ही आज के टीवी की तस्वीर है’
जेएनयू प्रकरण के दौरान एनडीटीवी के प्राइम टाइम कार्यक्रम की इस लाइन को ले कर रवीश कुमार के आम आदमी पार्टी समर्थक भक्तों ने सोशल मीडिया में खूब उत्पात मचाया था। शायद उस रोज़ किसी को अहसास नहीं रहा होगा कि आज टेलीविजन प्रोडक्शन के नाम पर किया गया ये खेल, किसी दिन हकीकत में बदल जाएगा – और एनडीटीवी को एक पूरे दिन के लिए काला करने का आदेश दे दिया जाएगा।
पठानकोट हमले के दौरान संवेदनशील जानकारियां लीक करने के आरोप में एनडीटीवी इंडिया पर जांच कमेटी ने एक दिन के ब्लैक आउट की सिफारिश की है।
ये ब्लैक आउट सिर्फ एनडीटीवी इंडिया पर नहीं है, ये ब्लैक आउट पूरी भारतीय मीडिया पर है, जो सेंसरशिप का विरोध तो करती है, पर अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर देश की संप्रभुता और सुरक्षा को ताक पर रखने से नहीं चूकती।
बेशक ये इमरजेंसी का दौर नहीं है। बाकी सारे अखबार छपेंगे, सारे न्यूज़ चैनल दर्शकों को उस रोज़ उपलब्ध होंगे। फिर भी सरकार के इस कदम की तुलना आपातकाल से ही होगा।
कांग्रेस ने इंदिरा गांधी से ले कर मनमोहन सिंह तक यही तो किया। इंदिरा गांधी ने घोषित आपातकाल लगाया, मनमोहन सिंह की सरकार नवीन जिंदल जैसे घोटालेबाज़ों के एक इशारे पर संपादकों को जेल में डालने तक पर उतर आई। जबकि उन्हीं की सरकार में नीरा राडिया के साथ बातचीत के टेप दनिया ने सुने, जिसमें कथित तौर पर एनडीटीवी के ही पत्रकार खुले आम सरकार के फैसलों में अपने दखल को घमंड से स्वीकारते सुनाई पड़ रहे थे। उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
एनडीटीवी की फंडिग में गड़बड़ी की जांच अलग से चल रही है। इस ब्लैकआउट* के बाद (*अगर ऐसा हुआ) फंडिंग मामले में भी सरकार को कोई गड़बड़ी मिली, तो उस कार्रवाई को जायज़ होने पर भी चैनल के प्रति दुर्भावनापूर्ण ही समझा जाएगा। बेशक किसी मीडिया हाउस को केवल इसलिए किसी भी तरह के कुकर्म की छूट नहीं होनी चाहिए, क्योंकि वो मीडिया हाउस है। उद्योग को ले कर नियम कायदे हैं, और जब न्यूज़ चैनल चलाना एक बिज़नेस ही है, तो जैसे बाकी उद्योगों पर नकेल कसी जाती है, वैसी ही मीडिया हाऊसेज़ पर भी कसी जाएगी।
मैं एनडीटीवी की इस सफाई से सहमत नहीं हूं कि “बाकी चैनलों ने भी तो वैसा ही चलाया था जैसा हमने” मगर मैं सरकार के फैसले से भी सहमत नहीं हूं कि चैनल को एक दिन के लिए काला कर दिया जाए। चेतावनी दी जा सकती थी। माफी मांगने के लिए कहा जा सकता था.।
गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी से ले कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक, एनडीटीवी का ‘विशेष’ किस्म का मोदी प्रेम जग ज़ाहिर रहा है। प्रधानमंत्री को भले ही इंटर मिनिस्टीरियल कमेटी के फैसले के बारे में पता हो या न पता हो, एनडीटीवी के पैरोकार इसे सरकार की बदहजमी और चैनल के लिए मैडल के तौर पे ही पेश करेंगे।”
(श्री रोहित सरदाना वरिष्ठ मीडिया पर्सनालिटी हैं जिनकी फेसबुक वाल से साभार ये पोस्ट उद्धृत किया गया है, ये उनके अपने विचार हैं जिसपर नवप्रवाह न्यूज़ नेटवर्क्स की अलग से कोई जवाबदेही नहीं है।)
साभार रोहित सरदाना का ऑफिशियल फेसबुक पेज: https://www.facebook.com/