सौम्या केसरवानी। Navpravah.com
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के एक फैसले के अनुसार, किसी भी रेप पीड़िता को रेपिस्ट के बच्चे को जन्म देने के लिए बाध्य नहीं कर सकते। हाईकोर्ट ने यह आदेश एक नाबालिग रेप पीड़िता के 16 हफ्ते के भ्रूण के गर्भपात के संबंध में दिया है।
रेप पीड़िता की याचिका की अर्जेंसी समझते हुए सरकार को 24 घंटे के भीतर 3 रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर डॉक्टर्स की कमेटी गठित करने का निर्देश भी दिया गया है, यह कमेटी 24 घंटे के भीतर दुराचार पीड़ित गर्भवती की जांच करके अपनी रिपोर्ट देगी।
हाईकोर्ट ने प्रदेश के स्वास्थ्य और महिला बाल विकास विभाग के प्रमुख सचिवों को इस पूरी प्रक्रिया की निगरानी करने के निर्देश दिए हैं, ताकि कहीं कोई कोताही ना हो। हाइकोर्ट ने कहा है, अगर नाबालिग रेप पीड़िता का एबॉर्शन सफल हो जाता है, तो भ्रूण का डीएनए सेम्पल सुरक्षित रखा जाए। मेडिकल साइंस के मुताबिक, यदि गर्भ 20 सप्ताह की समयसीमा पूर्ण कर ले, तो गर्भपात से गर्भवती की जान को खतरा हो सकता है। इसी आधार पर हाईकोर्ट ने अर्जेंसी शब्द पर विशेष जोर दिया है।
खंडवा निवासी एक किसान ने 15 अक्टूबर को अपनी नाबालिग बेटी के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कराई थी, इसके बाद पुलिस ने बेटी को बरामद कर आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया था। मेडिकल जांच में बेटी के गर्भवती होने का पता चला, तो नियमों का हवाला देकर डॉक्टरों ने गर्भपात से इनकार कर दिया। इसके बाद किसान ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। उसका कहना था कि नाबालिग की उम्र बच्चे को जन्म देने लायक नहीं है। बच्चे के जन्म के बाद उसकी शादी में भी परेशानी आएगी, बच्ची का भविष्य व सामाजिक जीवन नष्ट हो जाएगा, इसके बाद हाईकोर्ट ने यह फैसला सुनाया।