सौम्या केसरवानी | Navpravah.com
संघर्ष और राजनीति के उतार-चढ़ाव के बीच जिस समाजवादी पार्टी की बुनियाद मुलायम सिंह यादव ने रखी थी और जिसकी बदौलत वह न सिर्फ मुख्यमंत्री बने बल्कि केंद्र की राजनीति में भी प्रधानमंत्री बनने के लगभग करीब पहुंच गए थे। उसी समाजवादी पार्टी में आज मुलायम सिंह बेटे अखिलेश के रहमोकरम के मोहताज हो गए हैं।
अखिलेश के हाथों हार के बाद पार्टी और चुनाव निशान दोनों गंवाने वाले मुलायम सिंह यादव न तो नई पार्टी बनाएंगे और ना ही कयास के अनुसार लोकदल में शामिल होकर चुनाव ही लड़ेंगे। यानि उन्होंने पूरी तरह अखिलेश के सामने या तो सरेंडर कर दिया है या सरेंडर का दिखावा कर रहे हैं।
हालांकि मुलायम को जानने वाले बताते हैं कि इतनी आसानी से कभी मुलायम ने हार नहीं मानी थी और जिस तरह अखिलेश के सामने उन्होंने आसानी से हथियार डाल दिए, उसने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। इसको लेकर जहां विरोधी उन पर अखिलेश से मिलीभगत कर ड्रामा करने का आरोप लगा रहे हैं, तो मुलायम और शिवपाल से जुड़े पुराने समाजवादी नेता हाशिए पर चले गए हैं। दरअसल उन्होंने मुलायम का इतना मुलायम रूप पहले कभी देखा ही नहीं था। उधर मुलायम ने भाई शिवपाल के बेटों समेत अपने समर्थकों के लिए अखिलेश यादव से 38 विधानसभा टिकट मांगे है, लेकिन अखिलेश ने अभी तक 25 विधानसभा टिकट देने पर ही हामी भरी है। शेष लोगों पर विचार करने की बात कह कर फिलहाल टाल दिया है।
शिवपाल यादव ने खुद अपने लिए समाजवादी पार्टी से कोई टिकट नहीं मांगा है। यह इस बात का संकेत है कि शिवपाल भी मुलायम की तरह या तो सक्रिय राजनीति से दूर रहने वाले हैं या इतना सब कुछ होने के बाद अब अखिलेश के साथ काम करने में अपने को असमर्थ मान रहे हैं।
निर्वाचन आयोग के फैसले के बाद भी शिवपाल मुलायम और अखिलेश के बीच कई बैठके हो चुकी हैं, लेकिन अब इन बैठकों का क्या प्रयोजन है और इन बैठकों में वास्तव में किन मुद्दों पर बात हो रही है। इसको लेकर सभी अलग-अलग कयास लगा रहे हैं। कुछ भी हो लेकिन अखिलेश आखिरकार समाजवादी पार्टी के बिग बॉस बन ही गए या यूं कहें की बना दिए गए।
अब समाजवादी पार्टी में वह सब कुछ होगा जो अखिलेश की मर्जी होगी अब ना तो उनकी मर्जी के खिलाफ समाजवादी पार्टी में चाचा शिवपाल की चलेगी और ना ही पिता मुलायम की।