योगी आदित्यनाथ के संसद में रोने से लेकर यूपी में एन्सेफलाइटिस के खात्मे तक की कहानी

नृपेन्द्र कुमार मौर्य | navpravah.com

नई दिल्ली | एक समय था जब पूर्वांचल के बच्चे गर्मी और बारिश के मौसम का नाम सुनकर कांप जाते थे। एन्सेफलाइटिस नाम की यह जानलेवा बीमारी हर साल उनके दरवाजे पर मौत बनकर दस्तक देती थी। सैकड़ों मासूम अपनी जान गंवा देते थे और हजारों ज़िंदगी भर के लिए अपंग हो जाते थे। 1996 से योगी आदित्यनाथ इस बीमारी के खिलाफ जंग छेड़ चुके थे, लेकिन उनकी लड़ाई उस समय निर्णायक मोड़ पर पहुंची, जब 2017 में उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।

मुख्यमंत्री बनने के बाद, उन्होंने एन्सेफलाइटिस को मिटाने का बीड़ा उठाया और इसे एक मिशन के रूप में लिया। उनके अथक प्रयासों ने धीरे-धीरे स्थिति को बदलना शुरू किया। जो बीमारी कभी प्रदेश के कोनों में तबाही मचाती थी, आज अपने अंतिम दिन गिन रही है। योगी जी के प्रयासों का कभी मज़ाक भी उड़ाया गया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। आज एन्सेफलाइटिस लगभग समाप्ति के कगार पर है, और बस इसकी आधिकारिक घोषणा बाकी है।

इस साल फरवरी में जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर के बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में विभिन्न परियोजनाओं का उद्घाटन करने पहुंचे, तो उनका भाषण लोगों के दिलों को छू गया। उन्होंने याद किया, “1970 के दशक से लेकर 2017 तक एन्सेफलाइटिस जैसी भयंकर बीमारी को खत्म करने के बारे में किसी ने सोचा तक नहीं। जब मैंने मुख्यमंत्री का पद संभाला, तो इस बीमारी से निजात पाने के लिए एक मॉडल तैयार करने पर काम शुरू किया।”

योगी जी ने आगे बताया कि कैसे उन्होंने कुशीनगर के मुसहर समुदाय के बीच जाकर स्वच्छता अभियान चलाया, जहां उन्होंने लोगों को साफ-सफाई के महत्व के बारे में बताया और साबुन के इस्तेमाल की जानकारी दी। लेकिन इसके लिए उनका तीन दिनों तक मीडिया ट्रायल चला और उनका मजाक बनाया गया कि एक मुख्यमंत्री साबुन बांट रहा है।

उन्होंने कहा, “तब लोग हंसते थे, लेकिन जब कोरोना आया, तब सबको स्वच्छता और साबुन की अहमियत समझ में आई।”


मुख्यमंत्री बनने के बाद, योगी आदित्यनाथ ने एन्सेफलाइटिस जैसी घातक बीमारी के खिलाफ एक समर्पित लड़ाई शुरू की, जो पूर्वांचल के जिलों में हर साल मानसून के दौरान तबाही मचाती थी। हर मानसून से पहले, उन्होंने वेक्टर बॉर्न और वाटर बॉर्न बीमारियों के खिलाफ एक विशेष अभियान की शुरुआत की, जिसे ‘दस्तक अभियान’ के नाम से जाना गया। इसके तहत लोगों को एन्सेफलाइटिस से बचने के उपाय सिखाए गए, और यह संदेश गांव-गांव तक पहुंचाया गया कि इस बीमारी को हराया जा सकता है।

एक समय था जब पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिले, यहां तक कि बिहार और नेपाल के मरीज भी एन्सेफलाइटिस के इलाज के लिए गोरखपुर के बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज का रुख करते थे। तब हर साल 1200 से 1500 बच्चे इस बीमारी का शिकार होकर अपनी जान गंवा देते थे। लेकिन 2017 में मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद, योगी आदित्यनाथ ने इस समस्या की जड़ पर प्रहार करने का फैसला किया। उन्होंने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर एन्सेफलाइटिस ट्रीटमेंट सेंटर स्थापित करने के निर्देश दिए ताकि मरीजों को शुरुआती स्तर पर ही इलाज मिल सके।

उन्होंने बीआरडी मेडिकल कॉलेज की व्यवस्था को भी सुदृढ़ किया, जो एन्सेफलाइटिस से जुड़ी मौतों के लिए बदनाम हो चुका था। यहां एक समर्पित एन्सेफलाइटिस हॉस्पिटल और ब्लॉक बनाए गए। साथ ही, हर जिले के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर जिला अस्पतालों तक एन्सेफलाइटिस के वार्ड बनाए गए और वहां डॉक्टरों की उपलब्धता सुनिश्चित की गई।

इस क्रांतिकारी कदम का असर साफ दिखा। धीरे-धीरे जापानी एन्सेफलाइटिस और एक्यूट एन्सेफलाइटिस सिंड्रोम के मरीजों की संख्या में गिरावट आने लगी, क्योंकि प्राथमिक स्तर पर ही उन्हें इलाज मिल रहा था।

उत्तर प्रदेश ने 2017 में एक और भयानक दिन देखा, जब गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन सप्लाई बाधित होने से 67 बच्चों की मौत हो गई। इस त्रासदी ने पूरे देश को झकझोर दिया, लेकिन योगी सरकार ने इसे सुधार का एक महत्वपूर्ण अवसर मानकर बीआरडी की व्यवस्था को फिर से खड़ा किया, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।

2005 में गोरखपुर जिले में एन्सेफलाइटिस का सबसे भयावह रूप सामने आया। उस साल, 6061 बच्चे इस बीमारी की चपेट में आए और उनमें से 1500 मासूमों ने अपनी जान गंवा दी। यह एक ऐसी त्रासदी थी जिसने पूरे इलाके को गहरे सदमे में डाल दिया। इसके बाद, 2006 में 2320 मामले दर्ज हुए और 528 बच्चों की मौत हुई, वहीं 2007 में 3024 मामलों के साथ 645 मौतें हुईं।

इन दर्दनाक आंकड़ों ने सरकार को मजबूर किया कि इस बीमारी से निपटने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं। 2006 में जापानी एन्सेफलाइटिस के खिलाफ टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किया गया, जो बाद में 2014 में राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम का हिस्सा बन गया। इस कार्यक्रम के तहत उन 9 राज्यों के 179 जिलों में टीके उपलब्ध कराए गए, जहां एन्सेफलाइटिस का खतरा सबसे ज्यादा था।

यह बीमारी मुख्य रूप से बच्चों और युवाओं को अपना शिकार बनाती है, जो इसे और भी भयावह बना देती है। लेकिन टीकाकरण कार्यक्रम की शुरुआत ने एक नई उम्मीद जगाई, और धीरे-धीरे यह बीमारी काबू में आने लगी।


एन्सेफलाइटिस सिंड्रोम (AES) से पीड़ित व्यक्ति को तेज़ बुखार और मानसिक भ्रम से लेकर कोमा तक की गंभीर न्यूरोलॉजिकल समस्याएं हो सकती हैं। वहीं, जापानी एन्सेफलाइटिस एक मच्छर जनित वायरल संक्रमण है, जो मच्छरों के काटने से इंसानों में फैलता है और घोड़ों व सुअरों को भी संक्रमित कर सकता है। खासकर बच्चों पर इसका खतरा अधिक होता है, जिसे स्थानीय भाषा में ‘दिमागी बुखार’ कहा जाता है। गंदगी, जलजमाव और अशुद्ध पानी इसके प्रसार के मुख्य कारण हैं।

योगी आदित्यनाथ, जब गोरखपुर के सांसद थे, तबसे इस बीमारी के उन्मूलन के प्रति गंभीर रहे हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद, उन्होंने इसके खिलाफ व्यापक अभियान चलाया, जिसके सकारात्मक परिणाम अब दिखने लगे हैं।

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