डॉ० कुमार विमलेन्दु सिंह | Cinema Desk
विश्व में सिनेमा ने अपने लिए एक महत्वपूर्ण जगह बना ली है। हमारे देश में फ़िल्में बहुत प्रचलित हैं और लोगों की मान्यताओं और उनके व्यवहार पर , इनका गहरा असर रहा है। लेकिन विश्व के अन्य देशों में ये असर हमारे देश से कहीं ज़्यादा रहा है। 1937 में जब मुसोलिनी और उनके बेटे विट्टोरियो, सिनेसिटा फ़िल्म स्टूडियो का उद्घाटन कर रहे थे, इटली में, तब उनका स्लोगन था, “Il cinema è l’arma più forte” (“Cinema is the most powerful weapon”) ( सिनेमा सबसे सशक्त हथियार है।) मात्र चालीस साल पहले शुरू होकर, सभ्यता के शुरुआत से चले आ रहे साहित्य और संगीत जैसी विधाओं के रहते हुए, यह स्थान पा लेना, सिनेमा के बारे में, उसकी प्रसिद्धि के बारे में, बहुत कुछ बताता है।
मूक फ़िल्मों को देखकर भी, पूरी दुनिया में लोग उत्साहित थे और समय बीतने के साथ सामाजिक और साहित्यिक आंदोलनों का प्रभाव भी सिनेमा पर पड़ने लगा था। श्रवण और चाक्षुष, दोनों स्तर पर प्रभाव डाल पाने के कारण, सिनेमा की अभिव्यक्ति, अन्य माध्यमों से ज़्यादा प्रभावकारी थी। 1915 म आई “द बर्थ ऑफ़ ए नेशन” को लेकर इतने विवाद हुए कि ग्रिफ़िथ, जो कि फ़िल्म के डायरेक्टर थे, अगले ही साल, “इनटॉलरेंस”, ले कर आए और अपनी नाराज़गी जताई। मूक फ़िल्मों ने शोर पैदा कर दिया था।
शांति और सद्भावना की स्थापना के लिए, संगीत के सुरों की आवश्यकता थी और ये पूरी हुई, 1927 में आई, दुनिया की पहली सवाक् और संगीतमयी फ़िल्म, “द जैज़ सिंगर” के द्वारा।
इस फ़िल्म का निर्माण, वॉर्नर ब्रदर्स के बैनर तले हुआ और इसके निर्देशक थे, ऐलेन क्रोसलैंड। ये पहली फ़िल्म थी जिसमें किरदार बोलते थे और संगीत भी था। फ़िल्म के लिऐ, संगीत, पहले ही रिकॉर्ड कर लिया गया था। फ़िल्म के मुख्य कलाकार, ओल जॉलसन ने 6 गाने गए।
” फ़िल्म की कहानी, एक ऐसे लड़के की है जो यहूदी है और उसके पिता, उसे साइनेनेगॉग का पुजारी बनाना चाहते थे और वो गायक बनना। इसी बात से प्रेरित होकर, फ़िल्म की बाक़ी घटनाएं, एक दूसरे से मिलती रहती हैं और गायक बनने के फ़ैसले के सही साबित होने तक, कहानी को बढ़ाती हैं। फ़िल्म, इसी नाम के एक नाटक से प्रेरित रही है, जो सैमसन रफ़ैलसन ने लिखी थी। “
ये एक 96 मिनट लंबी फ़िल्म थी और पूरी दुनिया सवाक् फ़िल्में देखकर न केवल आवाक् थी बल्कि उसका स्वागत भी कर रही थी। ऐसा नहीं था कि इस फ़िल्म के तुरंत बाद मूक फ़िल्में बंद हो गईं या सिर्फ़ सवाक् फ़िल्में बनने लगीं, लेकिन बिना कुछ कहे, ये तो साबित हो गया था कि भविष्य की फ़िल्में टॉकी यानि सवाक् ही होंगी। परिवर्तन के इस दौर को कुछ फ़िल्म कंपनियों ने ख़ूब भुनाया, मसलन, 1930 में जब “ऐना क्रिस्टी” आने वाली थी तब महान अभिनेत्री ग्रेटा गार्बो के बारे में, पोस्टरों पर लिखा जाता था, “गार्बो टॉक्स”।
1996 में इस फ़िल्म के 70 साल पूरे हुए और इसे “नैशनल फ़िल्म रजिस्ट्री” में संरक्षित कर लिया गया। चूंकि ये पहली टॉकी फ़िल्म थी और इसमें संगीत भी था, सिनेमा पढ़ने, बनाने और देखने वाले लोगों को, इसे देखना चाहिए।
(लेखक जाने-माने साहित्यकार, स्तंभकार, व शिक्षाविद हैं.)