Chintu Ka Birthday Review: छोटी कहानी में गहरी सम्वेदनाओं का ख़ूबसूरत कैनवास है ‘चिंटू का बर्थडे’

अमित द्विवेदी | Cinema Desk

नवप्रवाह रेटिंग : ⭐⭐⭐⭐

विनय पाठक, तिलोत्तमा और सीमा पाहवा अभिनीत वेब फ़िल्म ‘चिंटू का बर्थ डे’ Zee5 पर स्ट्रीम हो रही है। चिंटू का बर्थडे इन दिनों आ रही तमाम फ़िल्मों से अलग है। यह एक ऐसी फ़िल्म है, जिसे पूरे परिवार के साथ बैठकर देखा जा सकता है।

फ़िल्म में सिचुएशनल कॉमेडी, इमोशन, ड्रामा सब कुछ है। लगभग एक घंटे बीस मिनट की फ़िल्म आप को उबाती नहीं। बस फ़िल्म में अरबी भाषा के सबटाइटल हार्डकोडेड नहीं हैं, जोकि निराशाजनक है।

कहानी-
बिहार के मदन तिवारी अपने परिवार के साथ बग़दाद (इराक़) में रहते हैं। सेल्स मैनेजर हैं, एक पानी फ़िल्टर बनाने वाली कम्पनी के। तरक़्क़ी कर के बिहार से बग़दाद आए हैं। सद्दाम हुसैन और अमेरिका के बीच संघर्ष के चलते ईराक तबाही की कगार पर खड़ा हो जाता है, और मदन तिवारी सपरिवार फँस जाते हैं। बग़दाद में रहना नहीं चाहते।

फ़िल्म का एक दृश्य

इसी बीच एक दिन अमेरिकी सेना के जवान तिवारी के घर में आ धमकते हैं। उन्हें इनपुट मिला होता है कि मदन के घर में इराकी विद्रोही छुपा है। जिसे पकड़ने के लिए अमेरिकी जवान घर की तलाशी लेने अंदर घुसते हैं। इनके घुसते ही घर का माहौल बदल जाता है। पूरे घर की तलाशी लेने के बाद उसी घर का मालिक मिलता है, उसी को सेना के जवान विद्रोही समझते हैं, जिसके बाद की स्थित एकदम उलट हो जाती है। सेना के जवानों को लगता है, तिवारी विद्रोहियों के लिए काम करता है। इन सबके बीच चिंटू इस बात को लेकर बड़ा दुःखी होता है कि इस साल भी वो अपना जन्मदिन नहीं मना पाएगा। अब घर वाले चिंटू का बर्थ डे मना पाते हैं या नहीं, क्या मदन तिवारी सेना के जवानों को कनविंस कर पाते हैं? ये सब जानने के लिए फ़िल्म देखनी पड़ेगी।

अभिनय-
एक भी कलाकार ऐसा नहीं है, जिसकी अदाकारी पर ऊँगली उठाई जा सके। बहुत ही संतुलित कलाकार हैं इस फ़िल्म में।

“विनय पाठक, तिलोत्तमा शोम, सीमा पाहवा और सभी बाल कलाकार मंजे हुए हैं। एक सीन मिस नहीं कर सकते हैं आप। संवाद, उसकी अदायगी, पटकथा सब बेहतरीन। विनय एक बार फिर आपको उनसे मुहब्बत करने पर मजबूर करते हैं। हिंदी में भोजपुरी का फ़्लेवर मन मोह लेगा।”

देखें या नहीं-
न देखने की कोई वजह नहीं नज़र आती। ‘दुनिया की चंद सबसे उम्दा’ वाली फ़ेहरिस्त में शुमार रखने लायक फ़िल्म है। ऐसी फ़िल्में कम बनती हैं, जिन्हें परिवार के साथ देखा जा सके। तो फ़ैमिली टाइम का सही इस्तेमाल तो बनता है। सिर्फ़ एक घंटे बीस मिनट की फ़िल्म है, इतना समय निकाला जा सकता है। यकीन मानिए अग़र आपका टेस्ट अच्छा है तो यह फ़िल्म आपके दिल में हमेशा के लिए अपनी जगह बनाने वाली है।

एक बात और, अगली बार ऑस्कर बंटे, और “चिंटू का बर्थडे” नदारद हो तो आँख मूंद कर मान लीजिएगा कि ऑस्कर वाले निरा गँवार हैं। बहरहाल, आप ज़रूर देखें ‘चिंटू का बर्थडे’।

(अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के आधार पर की गई समीक्षा एक जटिल काम है, जिसके अंतर्गत केवल पॉजिटिव कमेंट्स की उम्मीद रखना अनुचित है। हमारे यहाँ पेड रिव्यू जैसी भी कोई व्यवस्था उपलब्ध नहीं है।)

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