डॉ० कुमार विमलेन्दु सिंह | Cinema Desk
कई क्षेत्रीय फ़िल्में, 1960-1970 के बीच, यथार्थवाद से प्रेरित होकर, समाज और उसमें होने वाली घटनाओं को प्रदर्शित कर रही थीं, लेकिन हिन्दी सिनेमा ने ऐसी प्रस्तुतियां, 1950-1960 के बाद कम ही कर दी थीं। हृषिकेश मुखर्जी और बासू चटर्जी जैसे निर्देशक, अपनी फ़िल्मों में इसकी झलक ज़रूर दिखाते रहे। 1973 में आई फ़िल्म, “सौदागर”, कई मायनों में एक बेहद ख़ास फ़िल्म थी क्योंकि इसने दो बातें प्रमाणित कर दी थीं। पहली ये कि, हिन्दी फ़िल्में भी अनजान नहीं थी सार्थक सिनेमा के महत्व से, और दूसरी ये कि अमिताभ बच्चन की अभिनय क्षमता का कोई जवाब नहीं।
1973 में, मई के महीने में “ज़ंजीर” आई थी और “ऐंग्री यंग मैन” वाली छवि, दर्शकों के मन में घर कर गई थी और इसी साल अक्टूबर में, “सौदागर” में, अमिताभ बच्चन, गुड़ बेचने वाले “मोती मियां” के किरदार में दिखे।
ये फ़िल्म, नरेन्द्रनाथ मित्रा की कहानी, “रस” पर आधारित थी और इसे सुधेन्दु रॉय ने डायरेक्ट किया था। फ़िल्म में महजबीं (नूतन), खजूर के रस से गुड़ बनाती हैं और मोती (अमिताभ बच्चन) उस गुड़ को बाज़ार में बेचता है। महजबीं, विधवा होती है और मोती, ये सोच कर शादी का प्रस्ताव रखता है कि पत्नी बन जाने पर ज़्यादा आराम से और ज़्यादा मात्रा में गुड़ बन सकेगा। लेकिन महजबीं के लिए ये प्रेम जैसा होता है। दोनों शादी करते हैं और उनका गुड़ भी ख़ूब बिकने लगता है। कुछ ही दिनों बाद मोती को ख़ूबसूरत फूलबानो (पद्मा खन्ना) दिखती है। मोती उसकी सुन्दरता देख, उससे भी शादी करना चाहता है और महजबीं को छोड़ देता है। फूलबानो, एकदम घटिया गुड़ बनाती है और मोती का धंधा डूबने लगता है और फिर उसे महजबीं की याद आती है, जो कहीं और घर बसा चुकी होती है। महजबीं, पहले तो मोती की मदद करने से मना करती है लेकिन फिर माफ़ कर देती है।
“मोती, मनुष्य है, साधक है और महजबीं उसकी प्रतिभा, त्याग और सद्भावना। जब तक साधक इन गुणों के साथ होता है, उसे जगत (गुड़ के बाज़ार) में प्रशंसा मिलती है और फूलबानो पथभ्रष्ट करने वाले आकर्षणों का द्योतक है। उसके साथ क्षणिक सुख तो है, प्रशंसा और उपलब्धि नहीं। “
फ़िल्म का संगीत, रवीन्द्र जैन ने दिया है और “सजना है मुझे, सजना के लिए”, “तेरा मेरा साथ रहे”, कभी न भूलने वाले गीत।
वैसे तो सभी ने बहुत अच्छी ऐक्टिंग की है लेकिन अमिताभ बच्चन ने ये बताया है कि क्यों वे महान अभिनेता हैं। अमिताभ का अभिनय इस फ़िल्म में, जवाब है उन सभी स्वघोषित महान अभिनेताओं को जो उन्हें कुछ ख़ास नहीं मानते।
कुल मिलाकर ये फ़िल्म, साधक (अमिताभ बच्चन/मोती मियां) और साध्य (गुड़) की कहानी है और इसे महानतम फ़िल्मों की सूची में रखना चाहिए।
(लेखक जाने-माने साहित्यकार, स्तंभकार, व शिक्षाविद हैं.)