भूली हुई यादें- “हेमलता”

डॉ० कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk

“दयारे इश्क़ में अपना मुक़ाम पैदा कर

नया ज़माना, नया सुब्ह-ओ-शाम पैदा कर”

-इक़बाल

ये गुज़ारिश या ये हिदायत, कर कोई भी सकता है, दे कोई भी सकता है, मगर जिससे ये गुज़ारिश की जाती है और जिसको ये हिदायत दी जाती है, उसका ख़ास होना, ज़हीन होना, बेहद ज़रूरी है, और उससे भी ज़रूरी है रज़ामंद होना तक़दीर से, डूब कर हर लम्हे को जी लेने जज़्बा होना, फ़क़ीरों सी बेफ़िक्री और मजाज़ जैसा मिज़ाज, कि “पी भी गए, छलका भी गए|”

ये हिदायतें दे रहे थे नौशाद साहब जैसे अज़ीम मौसिक़ार, और गुज़ारिश कर रहे थे रौशन मुस्तक़बिल के मालिक, रवीन्द्र जैन साहब और जो ये सब सुन रही थीं, उनका नाम था “लता भट्ट”| लता, एक मारवाड़ी ब्राह्मण परिवार में , हैदराबाद में पैदा हुईं और इनका बचपन कलकत्ता में बीता| इनके संगीत के शौक़ की वजह से पूरा परिवार बंबई (अब मुंबई) आ गया और यहाँ आते ही, इन्हें उस्ताद अल्लारखा खां और नौशाद साहब की निगरानी और बेहतरीन तरबियत मिली| लता के नाम से पहले से ही लता मंगेशकर गा रही थीं और उनकी सलाहियत से पूरी फ़िल्मी दुनिया आशना थी| ऐसे में किसी नई गायिका का जगह बना पाना बहुत ही मुश्किल था| लता भट्ट का नाम #हेमलता हो गया और शाहीन की तरह बेपरवाह, वो उड़ने को तैयार थीं| पहली परवाज़, इन्होंने, उषा खन्ना जी की धुनों के साथ, 1968 में भरी| उनका पहला गीत जो दुनिया को सुनाई पड़ा, वो फ़िल्म, “एक फूल, एक भूल” का था|| इसके बाद 1970 से 1972 तक कई मशहूर गानों का कवर वर्ज़न गाया|

हेमलता (PC- Google)

1972-1975 तक रवीन्द्र जैन ने इन्हें “गीत गाता चल” और कुछ और फ़िल्मों में मौक़ा दिया, पर बात नहीं बनी| 1976 में आई “फ़कीरा” के गीत, “सुन के तेरी पुकार” ने उन्हें मशहूर कर दिया| एक शानदार सफ़र का आग़ाज़ हो चुका था| इसका संगीत भी रवीन्द्र जैन ने ही दिया था|

1977 में आई फ़िल्म “चितचोर” में येसुदास के साथ इन्होंने, एक गीत गाया जिसके लिए इन्हें फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड से नवाज़ा गया| गीत के बोल थे, “तू जो मेरे सुर से सुर मिला ले”|

क़िस्मत साल दर साल किश्तों में मेहरबान हो रही थी| 1979 में आई फ़िल्म, “अंखियों के झरोखों से”, का टाइटल गीत, सभी के दिलों में घर कर गया| कुछ ही सालों बाद 1982 में आई फ़िल्म “नदिया के पार” के सारे मशहूर गाने इन्होंने ही गाए| इनका गाया, “बबुआ ओ बबुआ”, “कौन दिसा में ले के”, “जोगी जी धीरे धीरे” और भी कुछ गानों को कोई आजतक नहीं भूल पाया है|

1990 के दशक में अकसर येसुदास के साथ, दूरदर्शन पर इनका एक ग़ैर फ़िल्मी गाना, ” तीस्ता नदी सी तू चंचला, मैं भी हूं बचपन से मनचला”, प्रसारित किया जाता था| ये दशक, टेलीविज़न का था और रामायण, महाभारत, श्री कृष्णा जैसे धार्मिक धारावाहिक, 90 के दशक के शुरूआती सालों तक चले| रामायण और श्री कृष्णा में ज़्यादातर गाने इन्ही के गाए हुए हैं|

येसुदास के साथ सबसे ज़्यादा गाने इन्होंने ही बतौर हिन्दी भाषी गायिका, गाए हैं| ये भारत की एकमात्र ऐसी गायिका हैं, जिन्होंने अमरीका में अपनी अकादमी खोली और भारतीय शास्त्रीय संगीत को फैलाने का काम किया| इन्होंने मो०रफ़ी, महेन्द्र कपूर और मन्ना डे जैसे फ़नकारों के साथ, पूरी दुनिया में घूमकर भारत का परचम लहराया|

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी इन्होंने संगीत के लिए बहुत कुछ किया| पाक़िस्तान के मशहूर क्रिकेट खिलाड़ी (अब प्रधानमंत्री) के कैंसर अस्पताल के लिए, वहां के मशहूर गायक अत्ताउल्लाह ख़ान के साथ मिलकर कई चैरिटी वाले जलसों में शामिल हुईं| अत्ताउल्लाह ख़ान के साथ ही इन्होंने दो एल्बम, “सरहदें” और “इश्क़ भी निकाली|

एक इंटरव्यू में हेमलता (PC- Rajyasabha TV)

हेमलता ने बहुत शोहरत कमाई, लेकिन हमारे देश में, ख़ासकर साहित्य, संगीत और अदाकारी की दुनिया में नायक/नायिका पूजन की ऐसी रस्म है, जिसके आगे कई हुनरमंद या तो गुमनाम हो गए या उन्हें तरजीह नहीं मिली| ऐसे नायक/नायिका आज भी किसी हुनरमंद को देखकर परेशान हो जाते हैं, इनकी एक अपनी दुनिया है, जिसमें सारे इनाम ये एक दूसरे को ही देते हैं, मगर कुछ #हेमलता से भी फ़नकार हुए, जो भले ही ख़यालों में ज़्यादा देर ठहर नहीं पाए लेकिन बिना रुके चलते रहे, एक नई सहर की तलाश में, शब को नकारते हुए, ये सोचते हुए कि:

“काम अपना है सुबह ओ शाम चलना

चलना, चलना मुदाम चलना|”

-इक़बाल

(लेखक जाने-माने साहित्यकार, स्तंभकार, व शिक्षाविद हैं.)

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