भूली हुई यादें- “हरीन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय”

डॉ० कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk

Tonight the night to me

Is very dear

The poem is returning .

To the Poet. **

(आज अति-प्रिय कहता हूँ,

रात्रि-छवि को

कविता लौट रही है,

अपने ही कवि को|)***

ये पंक्तियां उस कवि की हैं जिसकी अंग्रेज़ी कविताओं की प्रशंसा, अरविंद घोष जैसे संत करते थे और जिसके हिन्दी में लिखे गीत, रबीन्द्रनाथ टैगोर जैसे महापुरुष को पसंद थे| जो अंग्रेज़ी साहित्य के प्रशंसक हैं या रहे हैं, वो इन्हें एक बहुत ही अच्छे कवि के रूप में जानते हैं और जो सिनेमा में दिलचस्पी रखते हैं, वो इन्हें एक बेहतरीन चरित्र अभिनेता के रूप में जानते हैं| जो इन्हें दोनो तरह से जानते हैं, उन्हें ये नहीं पता कि ये स्वतंत्र भारत के प्रथम चुनाव में विजयवाड़ा के प्रथम सांसद के रूप में लोकसभा में गए थे और जो ये सब जानते हैं, वो ये भूल चुके होंगे कि इनकी बहन का नाम सरोजिनी नायडू था| इस महान व्यक्तित्व का नाम था- हरीन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय|

हैदराबाद में, एक बेहद शिक्षित, सशक्त और कुलीन ब्राह्मण परिवार में इनका जन्म हुआ| इनके पिता, श्री अघोरनाथ चट्टोपाध्याय, एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण और दार्शनिक प्रवृत्ति के शिक्षाविद् थे और माता सुन्दरी देवी, कवयित्री थीं| ऐसी पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण साहित्य और संगीत के प्रति इनका लगाव रहा| उच्च शिक्षा के लिए हरीन्द्रनाथ केंब्रिज गए|

१९७२ की प्रसिद्द फिल्म बावर्ची के एक दृश्य में हरीन्द्रनाथ (PC-YouTube)

1918 में, अंग्रेज़ी में इनकी पहली कविता संग्रह, “The Feast of Youth”, आई और इसी साल इन्होंने “अबू हसन”, नाम का नाटक भी लिखा| इसके बाद वे लगातार कई वर्षों तक लिखते रहे| 60 के दशक से इन्होंने फ़िल्मों में काम करना शुरू किया| 1962 में आई गुरूदत्त की चर्चित फ़िल्म “साहब, बीबी और ग़ुलाम” में इन्होंने अभिनय यात्रा, असरदार ढंग से शुरू की| इसके बाद कई हिन्दी और बांग्ला फ़िल्मों में भी ये काम करते रहे| इन्होंने ज़्यादातर, बतौर चरित्र अभिनेता ही काम किया और इन्हें प्रशंसा भी मिलती रही|

१९६८ की फिल्म आशीर्वाद में ढोलकिया के किरदार में हरीन्द्रनाथ (PC-YouTube)

अभिनेता के तौर पर इन्हें सबसे अधिक प्रशंसा मिली, 1972 में आई फ़िल्म, “बावर्ची” से, जिसमें इन्होंने एक संयुक्त परिवार में रहने वाले विधुर और वृद्ध पिता की भूमिका निभाई थी| हालांकि इसके पहले भी, वे “आशीर्वाद”, “नौनिहाल” और “तीन देवियां”, जैसी मशहूर फ़िल्मों में दिख चुके थे| 80 के दशक तक ये फ़िल्मों में सक्रिय रहे| इन्होंने बच्चों के लिए, हिन्दी में कई कविताएं लिखीं| 1968 में आई, “आशीर्वाद” में अशोक कुमार पर फ़िल्माए गए गीत “रेलगाड़ी, रेलगाड़ी” को इन्होंने ही लिखा था और धुन भी इनकी ही थी| इस गाने को वे आकाशवाणी से कई बार अपनी आवाज़ में भी प्रस्तुत करते थे|

१९६३ की फिल्म तेरे घर के सामने में अभिनेत्री नूतन के साथ हरीन्द्रनाथ (PC-Google)

हरीन्द्रनाथ का वैवाहिक जीवन भी बहुत सुखद नहीं चला. इनकी पत्नी कमलादेवी और इनके बीच जो तलाक़ हुआ, वो संभवतः, स्वतंत्र भारत के इतिहास में अदालत से मंज़ूर हुआ पहला तलाक़ था.

1990 में, हरीन्द्रनाथ का निधन हो गया|

ऐसा नहीं है कि उनका जीवन गुमनामी में बीता| उनका पूरा जीवन, उपलब्धियों और प्रसिद्धि में ही बीता, लेकिन ये सब उनकी सशक्त राजनैतिक उपस्थिति के कारण था| अंग्रेज़ी कविता में आध्यात्मिक परंपरा के कवि के रूप में जो प्रतिष्ठा उन्हें मिलनी चाहिए थी, नहीं मिली और सिनेमा जगत में भी जिस आत्मविश्वास के साथ उन्होंने काम किया, उतनी प्रसिद्धि उन्हें नहीं मिली| यह भारतीय सिनेमा का दुर्भाग्य ही माना जाएगा कि आजतक किसी भी उच्च कोटि के साहित्यकार, संगीतकार या अदाकार को उतना नहीं दे पाया जितना मिलना उनका हक़ था| ऐसा हर बार होना, फ़िल्म जगत के आधारभूत संरचना और व्यापार करने के ढंग पर एक प्रश्नचिन्ह लगाता है|

** यह हरीन्द्रनाथ जी द्वारा लिखित, मूल अंग्रेज़ी कविता का अंश है जो संग्रह, “Spring In Winter”, में आई थी|

*** हिन्दी अनुवाद डॉ. विमलेन्दु सिंह द्वारा किया गया है|

(लेखक जाने-माने साहित्यकार, स्तंभकार, व शिक्षाविद हैं.)

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