एनपी न्यूज़ डेस्क | Navpravah.com
कल सर्किट हाउस में केंद्रीय टीम व स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के बीच बैठक हुई। जिसमें केंद्रीय टीबी नियंत्रण टीम ने कहा है कि शहर के ज्यादातर निजी डॉक्टर क्षय रोग की समस्या बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं। केंद्रीय टीम ने दस बिंदुओं पर डीएम योगेश्वर राम मिश्रा व सीएमओ की संयुक्त कमेटी को रिपोर्ट सौंपी है। 21 सदस्यीय केंद्रीय टीम का नेतृत्व एसटीडीसी आगरा के प्रमुख डॉ. शैलेंद्र भटनागर कर रहें थे।
स्टेट टीबी सेल के सदस्य डॉ. नरेंद्र सिंह ने बताया कि निजी डॉक्टर मरीजों को लंबे समय तक सरकारी अस्पतालों में रेफर नहीं करते हैं। ऐसा भी देखा गया है कि निजी डॉक्टरों द्वारा टीबी के मरीजों को अपने सामने दवायें नहीं खिलाई जाती। इससे एमडीआरटीबी के मामले धीरे-धीरे बढ़ रहे हैं।
टीबी आनुवांशिक नहीं है, यह एक संक्रामक रोग है। कोई भी व्यक्ति इस रोग की चपेट में आ सकता है। जब सक्रिय टीबी से पीड़ित कोई रोगी खुले तरीके से खाँसता या छींकता है, तो टीबी पैदा करने वाले जीवाणु बाहर एरोसोल में प्रवेश कर जाते हैं।
तीन सप्ताह से अधिक अवधि तक निरंतर खाँसी होना, खाँसी के साथ कफ का आना, बुखार, वजन में कमी या भूख में कमी इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं। यदि इनमें से कोई भी लक्षण तीन सप्ताह से अधिक अवधि तक बना रहे, तो पीड़ित व्यक्ति को नजदीकी डॉट्स टीबी केंद्र अथवा स्वास्थय केन्द्र जाना चाहिए और अपने कफ की जाँच करवानी चाहिए।