सौम्या केसरवानी । Navpravah.com
देश में लगातार बढ़ रहा कैंसर एक अभिशाप बन चुका है। जहाँ एक तरफ लोग जागरूक हो रहें हैं, वहीं आज भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो कैंसर पीड़ितों को हेय दृष्टि से देखते हैं और उनके साथ अमानवीय व्यवहार करते हैं। ऐसा ही एक मामला है, दिल्ली विश्वविद्यालय के एम.ए. के विद्यार्थी चन्दन का।
चंदन कुमार ने अपनी आप-बीती सभी के साथ साझा की। चंदन बिहार के नालंदा जिले के रहने वाले हैं, 25 वर्षीय चंदन को 12 वर्ष की उम्र में ब्लड कैंसर हो गया था। चंदन तीन भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं। चंदन के मुताबिक, सब कुछ अच्छा चल रहा था, एक दिन तेज बुखार और उल्टियां हुईं और जब जांच करवाया तो पता चला कि ब्लड कैंसर है। उसके बाद तो मेरा परिवार, मेरे दोस्त, मेरा घर-स्कूल सब छूट गया।
चंदन ने कहा कि, उस समय ऐसा लग रहा था, जैसे जिंदगी हाथों से फिसल रही है। कैंसर के साथ ही मैंने और मेरे परिवार ने आर्थिक तंगी का भी सामना किया। अब जब मैं ठीक हूं और पढ़ाई के साथ ही पार्ट टाइम काम कर कुछ पैसे कमाने लगा हूं।
चंदन ने बताया कि जो पैसा अब मैं कमाता हूँ उससे, अपने जैसे कैंसर पीड़ित बच्चों पर खर्च कर उनकी जिंदगी बचाने की कोशिश कर रहा हूं, ताकि जो तकलीफें मैंने सही हैं, वैसी तकलीफें उन्हें न हो। चंदन ने अपने बचपन का दर्द साझा करते हुए कहा कि आठ कीमो व रेडिएशन थेरेपी से मैं गुजरा था, कीमो की वजह से सिर के सारे बाल चले गए थे, जब गांव पहुंचा तो किसी ने बात तक नहीं की।
चंदन ने बताया कि घर वालों की मेहनत और भरोसा, चंदन की हिम्मत और अपनों की दुआओं की वजह से अब वह स्वस्थ्य हैं और अब चंदन कैंसर पीड़ित बच्चों के रहने-खाने, चिकित्सकीय परामर्श, आर्थिक और भावनात्मक सहयोग करने में जुटे हैं।