डॉ० कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk
“ख़बररसां” कहते हैं उसे, ख़बरें पहुंचाना उसका काम होता है और जब से इंसान ने मआशरत में रहना सीखा, ख़बर पहुंचाने वाले, हरकारे, डाकिए, हर दौर में हुए। शहज़ादों के इश्क़ की बातें लिए, शहज़ादियों तक उड़ के जाते परिंदे हों या रास्तों पर ग़ुबार सा बना कर दौड़ते घुड़सवार हों। तरीक़ा बदला, दौर बदला, जो न बदला, वो था, ख़ैर-ओ-ख़बर जानने की ललक और इसी से पैदा हुए, रिसाले, अख़बार, और समाचार।
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दूरदर्शन, 15 सितम्बर, 1959 से शुरू हो चुका था और 1965 से न्यूज़ बुलेटिन की शुरुआत हो चुकी थी, जो रोज़ 5 मिनट के लिए, तमाम ख़बरों के साथ आता था। प्रतिमा पुरी और गोपाल कौल, रोज़ टेलीविज़न पर ये ख़बरें पढ़ते नज़र आते थे और यही दूरदर्शन के मशहूर चेहरे बनते जा रहे थे। 1967 में दूरदर्शन में एक और चेहरा शामिल हुआ, जिसे बहुत जल्दी सब पहचान जाने वाले थे, और ये चेहरा था, सलमा सुल्तान का।
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सलमा सुल्तान, 1947 में पैदा हुईं और इनके वालिद, जनाब मो० असग़र अंसारी, कृषि मंत्रालय में अधिकारी थे और बहुत उम्दा ख़यालात के थे। बचपन से ही सलमा की तरबियत इतनी अच्छी हुई कि नुक्ते का ख़याल हो चला और ज़ुबान ख़ूबसूरत। सलमा की स्कूल की पढ़ाई, सुल्तानपुर, मध्य प्रदेश से हुई और इन्होंने भोपाल से ग्रेजुएशन की। M.A. इन्होंने, अंग्रेज़ी को विषय बनाकर, दिल्ली के इन्द्रप्रस्थ कॉलेज से किया और इसके बाद ही, दूरदर्शन में अर्ज़ी दे दी, और चुन भी ली गईं।
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1967 से सलमा सुल्तान दूरदर्शन से जुड़ गईं, लेकिन वे बुलेटिन नहीं पढ़ती थीं, क्योंकि उस दौर में चिल्लाना, उछलना, जासूस या ख़बरगीर बनना, जर्नलिज़्म या पत्रकारिता नहीं कहलाता था, एक संजीदा आवाज़ और शख़्सियत की ज़रूरत होती थी और ये संजीदगी उम्र के साथ ही आती है। जवान जोश के नाम पर बेतरतीबियों और सनसनीख़ेज़ ख़बरें या अफ़वाहें फैलाने का दौर अभी बहुत दूर था दूरदर्शन से। प्रतिमा पुरी या गोपाल कौल ही बुलेटिन पढ़ते थे।
“एक बार कुछ ऐसा हुआ कि गोपाल कौल, बुलेटिन पढ़ना नहीं चाह रहे थे लेकिन सब उनपर, इसके लिए दबाव बना रहे थे। गोपाल कौल अगले दिन सिर मुंडवा कर आ गए और उन्हें इस तरह टेलीविज़न पर नहीं भेजा जा सकता था। यही वो दिन था जब पहली दफ़ा, सलमा सुल्तान से पूछा गया कि क्या वे बुलेटिन पढ़ लेंगी?”
सलमा मान गईं और उस वक़्त, रोज़ाना बुलेटिन,10 मिनट का हो चुका था। सलमा ने बुलेटिन पढ़ा और जब पढ़ कर वापस आईं तो सब ने बताया कि उन्होंने, 10 मिनट का बुलेटिन 5 मिनट में ही ख़त्म कर दिया था और संभालने के लिए फ़िलर डालना पड़ा था। लेकिन एक चीज़ सबने देखी थी कि इनका तलफ़्फुज़ बहुत बेहतरीन है। उसके बाद सलमा की आवाज़ और उनका अंदाज़, दूरदर्शन की पहचान बन गया। बालों में गुलाब लगाए, चेहरे पर ज़हीन होने का नूर लिए और गले के पास साड़ी का V बनाए, सलमा कई सालों तक दूरदर्शन के कभी न भूल पाने वाले चेहरों में में से एक बनी रहीं। साल दर साल, ये कई ख़ुशी और ग़म की ख़बरें हम तक पहुंचाती रहीं। 31 अक्टूबर, 1984 को, श्रीमती इंदिरा गांधी को गोली लगने की ख़बर भी सलमा सुल्तान ने ही पढ़ी थी।
सलमा अदब या साहित्य पढ़ी थीं, सो पढ़ने और रचने का शौक़ उन्हें रहा। लेन्सव्यू प्राइवेट लि० नाम से एक प्रोडक्शन हाउस भी इन्होंने बनाया और बच्चों के के लिए, “पंचतंत्र से” और “सुनो कहानी” जैसे धारावाहिक बनाए। “जलते सवाल” भी इनके प्रोडक्शन हाउस की एक बेहतरीन पेशकश थी।
सलमा सुल्तान के शौहर, आमिर क़िदवई एक बड़े ओहदे के इंजीनियर थे और इनकी बहन मैमूना सुल्तान, भोपाल से चार बार संसद सदस्य बनीं। इनके बेटे साद और बेटी सना अपनी ज़िंदगी में बेहद ख़ुश हैं।
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सलमा सुल्तान, दिल्ली में रहती हैं और आज के दौर के हिन्दुस्तान में, किसी का बचपन, किसी के संघर्ष की याद तो किसी की ज़िंदगी का अहम दौर, इनकी शख़्सियत, इनके अंदाज़, इनकी आवाज़ और इनके चेहरे से सीधा जुड़ा हुआ है। सलमा सुल्तान को उम्र मिले, सेहत मिले, शिफ़ा मिले, ऐसी हम दुआ करते हैं।
(लेखक जाने-माने साहित्यकार, फ़िल्म समालोचक, स्तंभकार, व शिक्षाविद हैं.)