बोलती तस्वीरें- “अमीन सयानी”

डॉ० कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk

गुज़रता हुआ वक़्त, कोरे सफ़हे जैसा है और आवाज़ के अलावा, कुछ नहीं है रोशनाई ।  माज़ी की तफ़्तीश और मुस्तक़बिल के ख़्वाबों के दरमियान जो सबसे ज़्यादा असर छोड़ जाती है , वो आवाज़ होती है। हम वाक़िफ़ हैं कि किस तरह दूरदर्शन हमारी ज़िन्दगी का हिस्सा बनता चला  गया और वो दौर भी आया जब ज़्यादातर घरों को टेलीविज़न हासिल था और लोग दिन -ब- दिन, दिखाए जाने वाले धारावाहिकों और उनमे आने वाले किरदारों से जुड़ते चले गए। ये नहीं था कि ऐसे किरदारों से उनका जुड़ाव पहले नहीं था।  सिर्फ ज़रिया बदला था, रेडियो की बेशक्ल आवाज़ों को अब चेहरे मिल गए थे और जुड़ाव एक अलग मक़ाम पर जा पहुंचा था। लेकिन जो आवाज़ें आदत बन चुकी थीं, सुनने वालों की वो रेडियो तक रुकी नहीं रही, उन्होंने भी एक सफर तय किया रेडियो से टेलीविज़न तक का और बने रहे मुसलसल लोगों के साथ।

आर.डी.बर्मन, आशा भोसले, और अमीन सयानी

आवाज़ की भी ख़ुसूसियत होती है, और इसे सबसे पहले हिन्दुस्तान में साबित किया अमीन सयानी ने। रेडियो सेलोन के  “बिनाका गीतमाला” से शुरू होकर AIR के पहले प्रायोजित कार्यक्रम “सैरिडॉन के साथी ” से होते हुए “संगीत के सितारों की महफ़िल” तक आते आते , अमीन सयानी साहब ने लगभग 54000 रेडियो कार्यक्रमों के लिए काम किया और अंदाज़न 19000 इश्तेहारों के लिए काम किया। इनकी शानदार आवाज़ इतनी मक़बूल और मशहूर रही कि आज भी आवाज़ से जुड़ा हुआ कोई भी फ़नकार, काम अच्छे से करता है तो पहली तुलना इन्हीं से की जाती है।

अमीन और अमिताभ

अमीन सयानी के बारे में कई दफ़ा बहुत से लोगों ने लिखा और बताया।  यही नहीं, इन्हें कई इनामों से भी नवाज़ा गया जिसके ये हक़दार भी थे। ऐसे भी बहुत से नाम हैं जो अमीन सयानी साहब के बाद हमसे जुड़े और उतने ही असरदार तरीक़े से।  लेकिन उनका कम ही ज़िक़्र हो पाता है।

“80 के दशक तक लगभग सारे इश्तेहार जो टेलीविज़न पर दिखाए जाते थे, उनकी भाषा अंग्रेजी ही होती थी।  चाहे अमूल बटर हो चाहे गोल्ड स्पॉट, चाहे पंजाब नेशनल बैंक हो या मैगी , लगभग सभी इश्तेहार अंग्रेज़ी में ही बनते थे हालांकि 80 के दशक के आख़िरी सालों में हिंदी भी असरदार तरीके से सुनाई पड़ने लगी थी। जब अंग्रेज़ी में इश्तेहार बन रहे थे तब अमीन साहब जैसी ही बुलंद आवाज़ की तलाश टेलीविज़न के लिए प्रचार बनाने वालों को भी थी। “

एक आवाज़ ने आने वाले कई सालों तक अपनी आवाज़ अंग्रेज़ी के इश्तेहारों में दी और ये आवाज़ थी प्रताप शर्मा की जो कि देश के जाने माने साहित्यकार के रूप में भी उभर रहे थे।  इन्होंने बच्चों के लिए ढेर सारी कहानियां लिखी थी, खूब नाटक भी किया था और कुछ फिल्मों में भी काम किया था।  हम पुराने दूरदर्शन के इश्तेहार कई बार यूट्यूब पर देखते और सुनते हैं और यादों में खो जाते हैं, उन इश्तेहारों में जो आवाज़ स्क्रीन पर दिखने वाले किरदारों की लगती है, और फर्राटेदार अंग्रेज़ी, बेहतरीन तलफ़्फ़ुज़ के साथ सुनाई पड़ती है, वो 80 फीसदी प्रताप शर्मा की ही होती है। हिंदी फिल्मों की मशहूर अदाकारा तारा शर्मा, इन्हीं की बेटी हैं।  एक और नाम जो प्रताप शर्मा के अलावा अंग्रेज़ी के इश्तेहारों में कई किरदारों की आवाज़ बना, वो निखिल कपूर का है।

प्रताप शर्मा

शम्मी नारंग ने भी बहुत से इश्तेहारों में अंग्रेज़ी बोली है।  जब हिंदी के प्रचार बहुत मशहूर होने लगे तब लगभग सभी बड़ी कंपनियों ने हिंदी में प्रचार बनाना शुरू कर दिया। “वीको वज्रदंती में हैं 51/45  औषधियों और जड़ी बूटियों  के गुण ” , “ओह्हो दीपिका जी , लीजिये आपका सब सामान तैयार है “, इन संवादों को आज तक कोई नहीं भूला और कितनी बेहतरीन आवाज़ में ये बातें कही जाती थीं, कितनी खनक होती थी उनमें।

ये दोनों संवाद, विनोद शर्मा जी की आवाज़ में थे , जिन्होंने लगभग हर कंपनी के इश्तेहार के लिए अपनी आवाज़ दी।  “आपकी पारखी नज़र और निरमा सुपर”, चश्मा पहन कर जो दुकानदार बने संजीदा बुज़ुर्ग, स्क्रीन पर दिखते थे, वो ख़ुद विनोद शर्मा जी ही थे।  उनकी आवाज़ कई इश्तेहारों में सुनी  जा सकती है। बृज भूषण की आवाज़ भी कई इश्तेहारों में सुनाई पड़ी।

निखिल कपूर

ऐसा नहीं था कि केवल पुरुष ही आवाज़ की दुनिया में नाम कमा रहे थे।  कुछ महिलाएं भी बहुत मशहूर हुईं अपनी आवाज़ के लिए।  सरिता सेठी जो सर्फ़ के फायदे बताती हुई ललिता जी की आवाज़ बनीं या नमिता मथान जो अंग्रेज़ी और हिंदी के कई इश्तेहारों में अपनी खनकदार आवाज़ के साथ सुनाई पड़ीं।  बाद के दौर में हरीश भीमानी, पीयूष मिश्रा , रघुबीर यादव जैसे लोगों ने भी अपनी आवाज़ इश्तेहारों में दी।

सुनें गीतमाला-

अब तो ऐसे कई कलाकार हैं जो इश्तेहारों में अपनी आवाज़ देते हैं, और ये एक बहुत बड़ा और फायदेमंद काम बन चुका है।  लेकिन बीते ज़माने की वो आवाज़ें जो कभी राजू के दांतों की तारीफ़ किया करती थीं, तो कभी हाजमोला की ख़ूबियां गिनाया करती थीं, आज भी हमारे ज़ेहन में ज़िंदा हैं और ताउम्र रहेंगी।

(लेखक जाने-माने साहित्यकार, फ़िल्म समालोचक, स्तंभकार, व शिक्षाविद हैं.)

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