डॉ० कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk
1980 का दशक एक ऐसा समय था, जब भविष्य की मज़बूत नींव पड़ रही थी, सामाजिक चेतना का वह दौर शुरू हो चुका था, जिसमें भारत, सदियों की ग़ुलामी और दोहन के बाद, एक बार फिर अदम्य उत्साह से उठने को मचल रहा था। युवा शक्ति तैयार थी, लेकिन सरकारी तंत्र, जहाँ सबसे ज़्यादा ईमानदारी की आवश्यकता थी वहीं सबसे ज़्यादा भ्रष्टाचार था। उस समय किसी भी सरकारी विभाग में कार्यरत अधिकारी का घर देखकर आज भी ये मान लेना असंभव लगता है कि सिर्फ़ वेतन से ये बन कैसे सकता है।
भ्रष्टाचार इतना बढ़ा हुआ था कि सरकारी अधिकारियों का रवैया एकदम ज़िम्मेदारी से भरा नहीं था और इसका सीधा असर पड़ा आम लोगों के जीवन पर। जब भी कभी ऐसी स्थितियां बनती हैं, एक जागरूकता की आवश्यकता होती है और ज़िम्मेदारी होती है कलाकारों और साहित्कारों पर, कि वे आवाज़ उठाएं और बताएं कि क्या ग़लत हो रहा है और साथ ये भी, कि इसे ठीक कैसे किया जा सकता है। 1985 में ये बीड़ा उठाया, निर्भीक “रजनी” ने।
यह धारावाहिक, दूरदर्शन के उन बेमिसाल धारावाहिकों में से है, जो सीधे सामाजिक मुद्दों से जुड़े थे। “रजनी” की भूमिका निभा रही थीं, प्रिया तेंदुलकर, जो कि प्रख्यात साहित्यकार और नाटककार, विजय तेंदुलकर की बेटी थीं।
हर एपिसोड में एक समस्या होती थी और रजनी उस से भिड़ जाया करती थी, उस के समाधान निकाला करती थी। इस धारावाहिक का निर्देशन, बासु चटर्जी ने किया था और इसे करन राज़दान और अनिल चौधरी ने लिखा था। इसके तीन एपिसोड, महान साहित्यकार, मन्नू भंडारी ने भी लिखे।
करन राज़दान, उस दौर में लेखन में बहुत सक्रिय थे और ये वही अभिनेता थे, जो मशहूर फ़िल्म “डिस्को डांसर” में मिथुन चक्रवर्ती के प्रतिद्वंदी डांसर “सैम” बने थे। आगे जाकर इन्होंने, प्रिया तेंदुलकर से शादी भी की। आने वाले वर्षों में ये दूरदर्शन के लिए, अपनी लेखनी से और भी उपहार लाने वाले थे।
“ऐसे भी कई कलाकार थे जो आगे जा कर भारतीय सिनेमा के प्रसिद्ध चेहरे बन जाने वाले थे। सायाजी शिंदे, विक्रम गोखले, अमर उपाध्याय और भी कई नाम थे। इसके एक एपिसोड में शाहरुख ख़ान और एक एपिसोड में सुभाष घई भी दिखे थे। “रजनी” का किरदार पहले पद्मिनी कोल्हापुरे करने वाली थीं, लेकिन उनके मना कर देने के बाद ये रोल प्रिया तेंदुलकर को मिला।”
इसे “वीडियो सिटी इंडिया लि०” के अंतर्गत आनंद महेन्द्रू ने प्रोड्यूस किया था। उस दौर के धारावाहिकों की ख़ास बात ये होती थी, कि इसके शीर्षक गीत बहुत बड़े गायक, कवि और संगीतकार मिल कर बनाते थे।
“रजनी” का शीर्षक गीत, महान आशा भोंसले ने गाया था और इसे योगेश ने लिखा था। संगीत निर्देशन राजू सिंह का था। इसका हर एपिसोड 25 मिनट का होता था और लोग इन लम्हों में अपनी बातों को अभिव्यक्त होते हुए देखना, सुनना ख़ूब पसंद करते थे।
आजकल के टीवी सीरीज़ बनाने वाले लोग, इस धारावाहिक से बहुत कुछ सीख सकते हैं और विवाहेत्तर संबंधों के अलावा भी और भी कई मुद्दे हैं, ये जान सकते हैं।
प्रिया तेंदुलकर का निधन 2002 में हो गया, लेकिन “रजनी”, आज भी ज़िंदा है।
(लेखक जाने-माने साहित्यकार, फ़िल्म समालोचक, स्तंभकार, व शिक्षाविद हैं.)