बोलती तस्वीरें- “दूरदर्शन”

डॉ० कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk

तस्वीरें, हमेशा ख़ामोशी से सब बयां करने की सलाहियत रखती थीं, लेकिन जब बोलना शुरू किया, तो हमारी हो रहीं और उनकी ख़ुमारी, इस क़दर तारी रही हमारे ऊपर कि हमारी ज़ुबान से लेकर हमारे अंदाज़ तक पर उनका असर आया।  दुनिया के सबसे हैरतअंगेज़ कारनामों में से एक रहा, टेलीविज़न का बनना ।  इसकी शुरुआत और तकनीकी सफ़र एक अलग कहानी है, लेकिन हमारे देश में, “दूरदर्शन” का शुरू होना, बोलती तस्वीरों के आने के जैसा ही था।

15 सितम्बर, 1959 को दूरदर्शन की स्थापना दिल्ली में हुई और इसकी कोई अलग जगह या दफ़्तर नहीं था।  हर रोज़ दूरदर्शन पर कुछ दिखाया जाए, ऐसे इंतज़ाम में 6 साल लगे और 1965 से, रोज़ 5 मिनट के न्यूज़ बुलेटिन की शुरुआत हुई।  प्रतिमा पुरी, भारत की पहली न्यूज़ रीडर थीं।  ये All India Radio के भाग के रूप में ही हो रहा था।

दूरदर्शन की पहली झलक:

इसके 2 साल बाद, 1967 में सलमा सुल्ताना, दूरदर्शन से, बतौर न्यूज़ रीडर जुड़ीं।  1967 इसलिए भी यादगार साल रहा क्योंकि इसी साल गणतंत्र दिवस के दिन से, “कृषि दर्शन” नाम से एक कार्यक्रम की शुरुआत हुई, जो आज भी चलता है, दूरदर्शन पर।

“1976 में दूरदर्शन, All India Radio से अलग हो गया और इसके 6 साल बाद पूरे भारत में कार्यक्रमों का प्रसारण शुरू हो गया और इसी साल यानि की 1982 में, पहले रंगपूर्ण कार्यक्रम प्रसारण के तौर पर, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के स्वतंत्रता दिवस के भाषण को दिखाया गया। “

दूरदर्शन का मोटो, “सत्यम, शिवम, सुन्दरम” रखा गया।  दूरदर्शन का चिन्ह (logo) , NID के छात्र रहे, देवाशीष भट्टाचार्य ने, 1976 में बनाया जो कि सम्यक दृष्टि का द्योतक है, और भी कई अर्थ इसके बताए गए हैं, लेकिन “आंख” और “दृष्टि” सब में समान है।  ख़ुद देवाशीष, इसे यिन और यांग भी बता चुके हैं।  एक निश्चित धुन के साथ घूमता हुआ ये चिन्ह धीरे धीरे  पूर्ण होता था और ऐसे शुरुआत होती थी हर दिन के कार्यक्रमों की।  ये घूमते हुए पूर्ण चिन्ह बन जाने का एनिमेशन, NID के ही छात्र आर०एल० मिस्त्री ने किया था और इसके साथ बजने वाले संगीत का निर्देशन, पं० रवि शंकर और उस्ताद अली अहमद हुसैन ख़ान जैसे महान संगीतज्ञों ने दिया था।  इस धुन और चिन्ह के साथ, पहली बार 1 अप्रैल, 1976 में दूरदर्शन ने अपना दिन शुरू किया था।  इस तपस्या जैसे काम से पूर्णतः अनजान, आज की पीढ़ी के तथाकथित फ़िल्मी कलाकार इस धुन का मज़ाक भी बनाते नज़र आए हैं, अपनी फ़िल्मों में।

दूरदर्शन चिन्ह का मौजूदा रंगरूप

धीरे-धीरे दूरदर्शन, 80 और 90 के दशक में, देश में छा जाने वाला था और उस दौर में बढ़ रहे बच्चों और कामकाजी लोगों के जीवन का हिस्सा बन जाने वाला था।  एक लंबी और कामयाब कहानी लिखी जानी थी और दूरदर्शन शुरुआत कर चुका था।

(लेखक जाने-माने साहित्यकार, स्तंभकार, व शिक्षाविद हैं.)

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