डॉ० कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk
कब सूरत क्या निकल आए, ज़िंदगी ये कभी नहीं बताती,ज़्यादातर बातें पोशीदा, कुछ खिड़कियों से झांकता मुस्तक़बिल सा धूप-छांव का जाल, गलियां हों जैसे बनारस की, ऐसी ही लगती है ज़िंदगी। कुछ लोग गलियों में ठहरते हैं, माहौल का मज़ा लेते हैं, हंसते-हंसाते हैं और जब बदलने लगते हैं नज़ारे, चुपचाप गलियों से निकल कर एक अलग सफ़र पे निकल जाते हैं। देवेन वर्मा ऐसे ही ठहरे, हंसे और जब बदलने लगा माहौल, सब छोड़ कर चल दिए।
देवेन वर्मा का जन्म 1937 में कच्छ, गुजरात में हुआ। इनके वालिद, बलदेव वर्मा चांदी के व्यापारी थे और फिर फ़िल्मों के डिस्ट्रीब्यूशन का काम शुरू किया। अब देवेन परिवार के साथ मुंबई रहने लगे। जब देवेन की बहन पढ़ाई के सिलसिले में पुणे रहने लगीं और मुंबई में लगातार दंगों की वजह से माहौल ख़राब रहने लगा, ये लोग पुणे रहने चले गए और फिर लंबे समय तक वहीं रहे। देवेन ने पुणे के नवरोज़ वाडिया कॉलेज में, ग्रेजुएशन के लिए दाख़िला लिया और यहाँ ऐक्टिंग भी करने लगे। ये ज़बरदस्त मिमिक्री करते थे और एक ड्रामा कंपनी से भी जुड़े हुए थे।
एक बार देवेन नाटक कर रहे थे और दर्शकों की भीड़ में बी०आर० चोपड़ा भी बैठे हुए थे। उन्हें देवेन वर्मा की ऐक्टिंग बेहद पसंद आई और तुरंत उन्होंने अपनी फ़िल्म, “धर्म पुत्र” के लिए इन्हें चुन लिया। ये 1961 की बात है। इसके बाद, देवेन विदेशों में शो करते रहे और जब वापस आए तो AVM Studio के साथ क़रार कर के रूपये 1500/- माह पर चेन्नई चले गए। ये क़रार 3 साल का था। 1963 में ये फ़िल्म,”गुमराह” में नज़र आए और इन्हें ख़ूब सराहा गया। इसके बाद इन्होंने, 3 साल का क़रार एक साल में ही ख़त्म कर दिया और चेन्नई से मुंबई वापस आ गए।
“1966 में ये दो बड़ी फ़िल्मों में दिखे, “देवर” और “अनुपमा” इसके बाद इन्हें ख़ूब काम मिलने लगा। 70 के दशक में ये ख़ूब मसरूफ़ रहे। 1975 में आई फ़िल्म, “चोरी मेरा काम” के लिए, इन्हें फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड भी मिला। इन्हें दो और फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड, “चोरों के घर चोर” और “अंगूर” के लिए मिले थे। एक क़िस्सा ये है कि देवेन ने एक सफ़र के दौरान, अपनी तीनो अवार्ड ट्रॉफ़ियां खो दीं।”
देवेन वर्मा, अज़ीम अदाकार, अशोक कुमार के दामाद थे। इनकी शादी, अशोक कुमार साहब की बेटी रूपा गांगुली से हुई थी। पहले तो अशोक कुमार इस शादी को टालते रहे लेकिन बाद में, किशोर कुमार के कहने पर मान गए। अशोक कुमार ने देवेन वर्मा से कहा था कि वे अपना व्यवहार सबसे अच्छा रखेंगे, तभी टिके रहेंगे और देवेन ने इसका पूरा ख़याल रखा।
देवेन वर्मा ने “यकीन” और “नादान” नाम की दो फ़िल्में प्रोड्यूस भी की। “नादान” के तो डायरेक्टर भी ख़ुद ही रहे। इन्होंने बासु चटर्जी, हृषिकेश मुखर्जी और गुलज़ार समेत कई शानदार फ़िल्मकारों के साथ काम किया। अमिताभ बच्चन की कामयाब फ़िल्म, “बेशरम” के प्रोड्यूसर और डायरेक्टर भी यही थे। इन्होंने 250 से ज़्यादा फ़िल्मों में काम किया।
देवेन बताते थे कि एक बार किसी महिला असिस्टेंट डायरेक्टर ने, जो उनसे बहुत छोटी थीं, उम्र में, सिगरेट पीती हुई आईं और डायरेक्टर से मिल लेने का हुक़्म सा देती चली गईं। देवेन को ये बहुत बुरा लगा और वे समझ गए कि अब फ़िल्मों की दुनिया में उनका हंसना हंसाना बंद हुआ और उन्होंने फ़िल्मों से किनारा कर लिया और 2014 में एक अलग ही सफ़र पर, हम सब को पीछे छोड़ चले गए।
अपनी बेहतरीन कॉमिक टाईमिंग, और ज़बरदस्त लेकिन सहज ऐक्टिंग के लिए और सबसे ज़्यादा, एक ख़ुशमिज़ाज इंसान के तौर पर, देवेन वर्मा, हमेशा याद किए जाएंगे।
(लेखक जाने-माने साहित्यकार, स्तंभकार, व शिक्षाविद हैं.)