भारत-अमेरिका के बीच ‘मेगा डील’, जिसे परमाणु समझौते से भी बड़ी सफलता माना जा रहा

नृपेंद्र कुमार मौर्य | navpravah.com

नई दिल्ली | भारत और अमेरिका के सहयोग से भारत को पहला राष्ट्रीय सुरक्षा सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन प्लांट प्राप्त होने जा रहा है। यह परियोजना अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह न केवल भारत का पहला, बल्कि वैश्विक स्तर पर पहला मल्टी-मटेरियल निर्माण संयंत्र होगा जो राष्ट्रीय सुरक्षा के उद्देश्यों के लिए बनाया जाएगा। यह कदम सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा मील का पत्थर साबित होगा।

भारत और अमेरिका के बीच हुआ यह ऐतिहासिक समझौता केवल सेमीकंडक्टर उत्पादन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उन्नत तकनीकी साझेदारी को भी उजागर करता है। दोनों देशों ने राष्ट्रीय सुरक्षा, अगली पीढ़ी के दूरसंचार, और हरित ऊर्जा के लिए अत्याधुनिक सेंसिंग और संचार तकनीकों के निर्माण हेतु एक स्थायी सेमीकंडक्टर उत्पादन प्रणाली स्थापित करने पर सहमति व्यक्त की है। यह कदम उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि असैन्य परमाणु समझौता, क्योंकि पहली बार अमेरिकी सेना ने उच्च तकनीकी साझेदारी के लिए भारत का समर्थन किया है।

आज के समय में, जब संपूर्ण विश्व सेमीकंडक्टर की भारी कमी से जूझ रहा है, भारत का यह प्रयास उसकी तकनीकी स्वायत्तता को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा। वैश्विक सेमीकंडक्टर उत्पादन पर ताइवान, दक्षिण कोरिया और चीन का प्रभुत्व है। इन देशों के बीच व्यापारिक संघर्षों और वैश्विक महामारी के बाद से चिप्स की आपूर्ति में अवरोध उत्पन्न हुआ, जिससे संपूर्ण विश्व, विशेषकर भारत, पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इस कमी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को गंभीरता से प्रभावित किया है, क्योंकि सेमीकंडक्टर का उपयोग मोबाइल, कम्प्यूटर, और यहां तक कि आधुनिक वाहनों के ब्रेक सिस्टम और इंजन नियंत्रण जैसी प्रमुख तकनीकों में होता है।

इस अत्याधुनिक प्लांट के माध्यम से भारत की 2026 तक अनुमानित 80 अरब डॉलर की सेमीकंडक्टर मांग पूरी करने की दिशा में बड़ा कदम उठाया जा रहा है। यह संयंत्र न केवल आर्थिक विकास को गति देगा, बल्कि रोजगार सृजन के नए अवसर भी प्रदान करेगा।

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