इस मतदान का फैसला वर्ष 1973 में हुए उस जनादेश को उलट रहा है, जिसमें ब्रिटेन ने यूरोपियन इकोनॉमिक कम्युनिटी का सदस्य बने रहने के लिए मतदान किया था और यही समूह बाद में यूरोपीय संघ बन गया था। लोगों को इस संघ से काफी उम्मीद थी लेकिन धीरे-धीरे उनकी उम्मीद पर पानी फिरता चला गया और 23 जून को एक बार फिर इस मामले को लेकर जनमत संग्रह कराया गया जिसका परिणाम 24 जून यानी आज आया जिसने 43 साल पहले के बिट्रेन का बदलता स्वरूप लोगों के सामने रखा।
इस मामले को लेकर ब्रिटेन में दो गुट बने, जिनमें से एक का मत ‘रीमेन’ (Remain या ईयू में बने रहें) था और दूसरे का मत है ‘लीव’ (Leave या ईयू को छोड़ दें) था। दोनों के बीच यहां कांटे की टक्कर हुई जिसमें ‘लीव’ ग्रुप ने 52 प्रतिशत वोट हासिल करके ‘रीमेन’ को पछाड़ दिया।
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने गुरुवार को हुए ऐतिहासिक जनमत संग्रह के बाद अगले कुछ महीनों के बाद पद पर बने नहीं रहने का एलान कर दिया है। वे अक्तूबर में प्रधानमंत्री पद छोड़ देंगे। ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने देश को संबोधित करते हुए कहा,” मैं ब्रिटेन के लोगों के फैसले का सम्मान करता हूं। इससे ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था में सुधार होगा। ब्रिटेन के आर्थिक हालात बहुत बेहतर हैं। यूरोपियन यूनियन से अगल होना ऐतिहासिक फैसला है। हालांकि ईयू से अलग होने में ब्रिटेन को अभी दो साल का वक्त लगेगा।”
कैमरन ने कहा कि वह दुनियाभर के लोगों को यह आश्वासन देना चाहते हैं कि ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था मूलत: मजबूत है। जहां तक यूके में बसे यूरोपियन यूनियन के नागरिकों का सवाल है तो प्रधानमंत्री ने उन्हें साफ किया है कि उनकी स्थिति में फौरी तौर पर किसी तरह का बदलाव नहीं किया जाएगा। कैमरन ने कहा कि वे इस जहाज को स्थिर बनाए रखने की कोशिश करेंगे लेकिन अक्टूबर में इस देश को नया प्रधानमंत्री मिल जाएगा। आपको बता दें कि प्रधानमंत्री कैमरन भी ब्रिटेन के यूरोपीय संघ में रहने के पक्ष में थे।
क्या थी ‘लीव’ की दलील?
‘लीव’ ग्रुप की दलील थी कि ब्रिटेन की पहचान, आज़ादी और संस्कृति को बनाए और बचाए रखने के लिए एग्जिट करना ज़रूरी है। यह ग्रुप ब्रिटेन में भारी संख्या में आने वाले प्रवासियों पर भी सवाल उठा रहा था जिसको भारी संख्या में लोगों ने पसंद किया। ‘लीव’ ग्रुप का यह भी कहना था कि यूरोपियन यूनियन ब्रिटेन के करदाताओं के अरबों पाउंड सोख लेता है, और ब्रिटेन पर अपने ‘अलोकतांत्रिक’ कानून थोपता है।
क्या थी ‘रीमेन’ की दलील?
‘रीमेन’ खेमे के लोगों की दलील थी कि यूरोपियन यूनियन में बने रहना ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद साबित होगा। साथ ही उनका मानना था कि इस फायदे के सामने प्रवासियों का मुद्दा बेहद छोटा है। अधिकतर अर्थशास्त्री इस उनकी इस दलील से सहमत दिखाई दे रहे थे।
ब्रिटिश मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, ब्रिटेन ने इस जनमत संग्रह के जरिए 43 वर्षों बाद ईयू की सदस्यता से हटने के पक्ष में वोट किया है। ‘रीमेन’ अभियान के पक्ष में 15,692,092 वोट पड़े, जबकि ‘लीव’ के पक्ष में इससे 6,835,512 अधिक वोट पड़े। नतीजों से यह साफ हुआ कि पूर्वोत्तर इंग्लैंड, वेल्स और मिडलैंड्स में अधिकतर मतदाताओं ने यूरोपीय संघ से अलग होना पसंद किया है जबकि लंदन, स्कॉटलैंड और नॉर्दन आयरलैंड के ज्यादातर मतदाता यूरोपीय संघ के साथ ही रहना चाहते थे।